Surdas Jayanti: भगवान का भक्त हो तो सूरदास जैसा, श्रीकृष्ण के चरणों चढ़ा दीं अपनी आखें, आज व्रत करने से मिलता है मोक्ष!

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आज सूरदास जयंती है। सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के सच्चे भक्त थे। बताया जाता है कि वो देख नहीं पाते थे, लेकिन उनकी भक्ति भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इतनी सच्ची थी, कि भगवान को खुद उन्हें वरदान देने के लिए आना पड़ा। भगवान ने प्रसन्न होकर सूरदास को आंखों की रोशनी लौटने का वरदान दिया लेकिन सूरदास ने ये कहते हुए मना कर दिया कि वो श्रीकृष्ण के अलावा किसी को नहीं देखना चाहते। इस पर भगवान कृष्ण प्रसन्न हुए। इसलिए आज के दिन सूरदास और भगवान श्रीकृष्ण को स्मरण करते हुए व्रत रखना अति शुभ माना जाता है। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति, जो शरीर से लाचार हो या फिर देख नहीं पाता हो, वो सूरदास जयंती के दिन भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कर लें। उसके सारे कष्ट दूर हो जाते है।</p>
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<strong>पहली कथा- </strong>संत सूरदासजी का जन्म 17 मई को मथुरा के रुनकता नाम के गांव में हुआ। शुरु में सूरदासजी मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। वहीं में दैन्य भाव से विनय के पद गाकर गुजर बसर करते थे। कहते हैं कि वे जन्म से सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्में थे। सूरदास के पिता रामदास भी गायक थे इसीलिए सूरदास भी गायक बने। वहीं कुछ विद्वानों का मानना हैं कि सूरदास का जन्म सीही नाम गांव में हुआ और वे बाद में गऊघाट पर आकर रहने लगे थे।</p>
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वहीं उनकी वल्लभाचार्य से भेंट हुई। जनश्रुति के अनुसार उनके बचपन का नाम मदनमोहन था। वल्लभाचार्य जब आगरा-मथुरा रोड पर यमुना के किनारे-किनारे वृंदावन की ओर आ रहे थे तभी उन्हें एक व्यक्ति दिखाई पड़ा जो बिलख रहा था। ये व्यक्ति आंखों से देख नहीं सकता था। इस व्यक्ति से वल्लभ ने कहा- तुम रिरिया क्यों रहे हो? कृष्ण लीला का गायन क्यों नहीं करते? सूरदास ने कहा- मैं अंधा मैं क्या जानूं लीला क्या होती है?</p>
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तब वल्लभ ने सूरदास के माथे पर हाथ रखा। विवरण मिलता है कि पांच हजार वर्ष पूर्व के ब्रज में चली श्रीकृष्ण की सभी लीला कथाएं सूरदास की बंद आंखों के आकाश पर तैर गईं। गऊघाट में गुरुदीक्षा प्राप्त करने के पश्चात सूरदास ने 'भागवत' के आधार पर कृष्ण की लीलाओं का गायन करना प्रारंभ कर दिया। अब वल्लभ उन्हें वृंदावन ले लाए और श्रीनाथ मंदिर में होने वाली आरती के क्षणों में हर दिन एक नया पद रचकर गाने का सुझाव दिया।</p>
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<strong>दूसरी कथा-</strong> सूरदास की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें अंतर्मन में ही दर्शन दिए थे। एक बार जब गुरू वल्लभाचार्य के पास बैठकर सूरदास कृष्ण भजन कर रहे थे तब गुरुजी मानसिक पूजा कर रहे थे। उस पूजा के दौरान वो श्रीकृष्ण को हार नहीं पहना पा रहे थे। सूरदास जी ने उनके मन की बात जानकर बोल दिया कि हार की गांठ खोलकर भगवान के गले में डालें फिर गांठ लगा दें। इस तरह भगवान को हार पहना लेंगे। इसके बाद गुरु वल्लभाचार्य जी समझ गए कि सूरदास पर भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा है।</p>
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<strong>तीसरी कथा- </strong>एकबार श्रीकृष्ण भक्ति में डूबे हुए सूरदास नहीं देख नहीं पाने की वजह से किसी कुएं में गिर गए। श्रीकृष्ण भक्ति में डूबे होने के कारण सूरदास घबराए नहीं। इस पर कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कृपा से उन्हें बचाया और उन्हें अंत:करण में दर्शन भी दिए। इसके बाद भगवान ने प्रसन्न होकर सूरदास को आंखों की रोशनी लौटने का वरदान भी दिया लेकिन सूरदास ने ये कहते हुए मना कर दिया कि वो श्रीकृष्ण के अलावा किसी को नहीं देखना चाहते। इस पर भगवान कृष्ण प्रसन्न हुए।</p>

आईएन ब्यूरो

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