उत्तराखंड: हर क्षेत्र में अपनी मेहनत और लगन के बदौलत महिलायें अपना भविष्य ख़ुद लिख रही हैं। आत्मनिर्भर बनकर अपना पूरा परिवार चला रही हैं,साथ में दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा का श्रोत भी बन रही हैं।
चमोली के आईटीसी रौली ग्वाड में 40 स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत लेन्टाना से फ़र्नीचर और घर के लिए दूसरे उपयोगी सामग्री बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है। 15 दिन के इस प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में पहुंचे मुख्य विकास पदाधिकारी डॉ. ललित नारायण मिश्र ने प्रशिक्षु महिलाओं द्वारा लेन्टाना से बनाये उत्पादों की काफ़ी सराहना की,औऱ इससे जुड़ी आजिविका को प्रोत्साहित भी किया।
आपदा को निर्माण में बदलती दमदार महिलाएं !
मगर, कहने-सुनाने में जितना ही यह आसान है, लेन्टाना केमरा की कहानी उतनी ही पेंचदार है।यह एक सदाबहार झाड़ीनुमा पौधा होता है। इसका वैज्ञानिक नाम लैन्टाना केमरा है। इसे वनों का कैंसर कहते हैं। अंग्रेज़ों ने इस पौधे को अपने घरों में सजाने के लिए सन 1809 में ऑस्ट्रेलिया से भारत लाया था। लेकिन, आज वहीं लेन्टाना पूरे भारत में विशेषकर उत्तर भारत में एक मुख्य समस्या बन गया है।ऐसा इसलिए,क्योंकि यह रक्तबीज की तरह जहां-तहां उग जाता है और फैलता ही चला जाता है। लेकिन, समस्या को समाधान ही नहीं वरदान में कैसे रूपांतरित किया जाता है,इसकी एक मिसाल चमोली की महिलाओं का निर्माण कार्य है। इन महिलाओं ने वनों के इस कैंसर से सुंदर फ़र्नीचर गढ़ दिया और जो लोग कहते हैं कि ज़िंदगी में मौक़े कहां नसीब होते,उनके लिए एक सबक भी रच दिया।इन महिलाओं ने अहसास करा दिया है कि धरती पर कोई भी वस्तु अनुपयोगी नहीं होती।
40 स्वयं सहायता समूह से जुड़ी इन महिलाओं ने लैंटाना से ख़ूबसूरत फ़र्नीचर और घरों के लिए और भी दूसरी उपयोगी सामग्री बनाकर एक मिसाल क़ायम कर दी है। यह मिसाल सिर्फ़ तारीफ़ ही नहीं पा रही,बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पहल करने के लिए प्रेरित भी कर रही है। प्रशिक्षण शिविर में शामिल स्वयं सहायता समूह की इन महिलाओं ने बताया कि उन्हें प्रशासन का बहुत सहयोग मिला है। इनके इस काम से दूसरी महिलाओं को आत्मनिर्भर होने का प्रोत्साहन भी मिल रहा है।
प्रशिक्षण के ज़िला मिशन प्रबंधक महेश कुमार भी इन महिलाओं की इस उपलब्धि से अचंभित हैं। वह कहते हैं कि जनपद में काफ़ी मात्रा में लेन्टाना है,जिसका स्वास्थ्य और कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इधर लेन्टाना का उपयोग फर्नीचर बनाने में किए जाने से इन महिलाओं को न सिर्फ आजीविका संवर्द्धन की दिशा में एक बल मिलेगा,बल्कि इस पौधे का उन्मूलन भी साकारात्मक तरीक़े से किया जा सकता है।
लेन्टाना का उत्पादन स्वास्थ्य के लिहाज़ से जहां हानीकारक साबित हो रहा है,वहीं इसके इस्तेमाल से यहां की महिलायें आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कड़ी और जोड़ने में लग गयी हैं।शाप को वरदान में कैसे बदला जाता है,कांटों के बीच फूल कैसे उगाये जाते हैं।इस सवाल का जवाब चमोली की ये महिलायें बख़ूबी देती हैं।ये एक नयी राह दिखा रही हैं।
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