Wednesday Remedies: खास पूजा विधि से करें मां दुर्गा की पूजा, शत्रुओं को होगा अंत, आर्थिक स्थिति बनेगी मजबूत

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गुप्त नवरात्रि जारी है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। यह दिन मां दुर्गा को समर्पित होता है। अष्टमी तिथि को पूजन करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। वैसे तो प्रत्येक माह की अष्टमी का महत्व है। लेकिन माघ माह की दुर्गा अष्टमी का विशेष महत्व है। गुप्त नवरात्रि के कारण माघ माह की दुर्गा अष्टमी का महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन जो साधक साधना करते हैं उनकी हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है। इस दिन देवी के कई मंत्रों का जप करना और दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है।</p>
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<strong>मासिक दुर्गाष्टमी का शुभ मुहूर्त</strong></p>
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अष्टमी तिथि आरंभ: 8 फरवरी मंगलवार, सुबह 6 बजकर 15 मिनट से शुरू</p>
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अष्टमी तिथि समाप्त: 9 फरवरी, बुधवार, सुबह 8 बजकर 30 मिनट तक</p>
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<strong>मासिक दुर्गाष्टमी पूजा विधि</strong></p>
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मासिक दुर्गाष्टमी करने वाले साधकों को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। साथ ही रात्रि में भूमि पर शयन करना चाहिए। इसके अगले दिन यानी अष्टमी तिथि को ब्रह्म बेला में उठकर घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई कर गंगाजल से पवित्र करें। तदोपरांत, गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। फिर लाल रंग का नवीन वस्त्र धारण कर आमचन करें और अपने आप को पवित्र कर लें। इस समय माता का ध्यान कर व्रत संकल्प लें। अब पूजा गृह में एक चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित कर षोडशोपचार करें। मां दुर्गा को लाल रंग अति प्रिय है। अतः पूजा में उन्हें लाल पुष्प और लाल फल अवश्य भेंट करें। साथ ही सोलह श्रृंगार और लाल चुनरी भी चढ़ाएं। अब मां दुर्गा की पूजा धूप-दीप, दीपक आदि से करें। पूजा करते समय दुर्गा चालीसा का पाठ करें और निम्न मंत्र का जाप करें।</p>
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सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके।</p>
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शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥</p>
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या देवी सर्वभूतेषु मां दुर्गा-रूपेण संस्थिता।</p>
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नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥</p>
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अंत में आरती आराधना करें। दिन भर उपवास रखें। साधक चाहे तो दिन में एक बार फल और जल ग्रहण कर सकते हैं। शारीरिक शक्ति का दमन न करें। जथा शक्ति तथा भक्ति के भाव से व्रत उपवास करें। शाम में आरती-अर्चना के बाद फलाहार करें। रात्रि में जागरण कर भजन कीर्तन कर सकते हैं। अगले दिन नवमी तिथि को नियमित तरीके से पूजा-पाठ कर व्रत खोलें।</p>
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आईएन ब्यूरो

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