आशुतोष कुमार
Food Court at Town Hall In Shimla:ब्रिटिश काल के शहर के इस राजसी Town Hall को विश्व स्तरीय रेस्तरां सह कैफ़े में परिवर्तित किए जाने से शिमला के पर्यटकों के लिए यह एक नया आकर्षण है।
यह हाई-एंड फूड कोर्ट टाउन हॉल के भूतल पर बन रहा है, जो शिमला के स्वतंत्रता-पूर्व युग के इतिहास और वास्तुकला का ख़ज़ाना है।
शिमला नगर निगम ने Town Hall के निचले हिस्से को अगले 10 वर्षों के लिए एक प्रमुख फ़ास्ट-फ़ूड कंपनी को सौंपने का फ़ैसला किया है। नगर निगम को कैफ़े से हर महीने 13 लाख रुपये की कमाई की उम्मीद है।
Town Hallमें नया कैफ़े पिज्जा, बर्गर, रोस्टेड/फ़्राइड चिकन और आइसक्रीम के वैश्विक ब्रांड बेचेगा।
1908 में निर्मित इस टाउन हॉल में अपनी मनमोहक भव्यता के साथ-साथ शिमला नगर निगम कार्यालय के साथ-साथ शिमला के मेयर, डिप्टी मेयर और आयुक्त के कक्ष रिज की ओर ऊपरी मंज़िल पर स्थित थे, जबकि निचली मंजिल पर सहायक आयुक्त, जल आपूर्ति, स्वच्छता और स्वच्छता विभाग का कार्यालय था।
2014 में एशियाई विकास बैंक से जुटाये गये 8.50 करोड़ रुपये के निवेश के साथ इसके संरक्षण को पूरा करने और इसके पुराने गौरव को बहाल करने के लिए टाउन हॉल को ख़ाली कर दिया गया था।
नगर निगम के इस क़दम पर शिमला के पूर्व मेयर संजय चौहान ने भी अपना विरोध दर्ज कराया है।
जैसा कि इतिहास से पता चलता है, टाउन हॉल भवन को ब्रिटिश भारत के प्रसिद्ध वास्तुकार हेनरी इरविन द्वारा डिज़ाइन किया गया था। Town Hall को वर्तमान स्वरूप मिलने से पहले इसकी इमारत 1860 में ऐतिहासिक गेयटी थिएटर के बगल में बनायी गयी थी।
पुराने लोग याद करते हैं कि Town Hall में एक पुस्तकालय, एक विशाल हॉल, एक ड्राइंग रूम, कार्ड-रूम, बॉलरूम, शस्त्रागार, पुलिस स्टेशन और एक रिटायरिंग रूम था। इमारत के निर्माण के लिए उपयोग किए गए पत्थर “बारोग स्टोन्स” थे। धुंआ उगलती चिमनियां पहाड़ियों का बेहतरीन अहसास करा रही थीं।
Town Hall की इमारत आधी लकड़ी वाली ट्यूडर शैली में है, जिसमें पूरी तरह से लकड़ी के फ्रेम और खपरैल की छतें शामिल हैं। इसके बाहरी और आंतरिक भाग को पत्थर के काम की पॉलिश और मरम्मत करके नवीनीकृत किया गया था।
दीवारें पत्थरों से बनायी गयी थीं, बेहतरीन लकड़ी का भी उपयोग किया गया था, जबकि छतें ग्रे स्लेट से तिरछे तरीक़े से बनायी गयी थीं। ट्यूडर शैली की इस इमारत में कई अनूठी विशेषतायें हैं। इंजीनियरों ने प्राकृतिक रोशनी का ध्यान रखा और खिड़कियों को चौड़े शीशों से सजाया। इसने सर्दियों के दौरान शिमला की जमा देने वाली ठंड को सहन किया।
यह इमारत फ़िल्म शूटिंग के लिए भी लोकप्रिय थी। इसकी पृष्ठभूमि और यहां तक कि इस आवास का उपयोग फ़िल्म की शूटिंग के लिए जाता रहा है।
एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी, मोहन चौहान कहते हैं, “दुनिया भर में पुरानी विरासत इमारतों को व्यावसायिक गतिविधियों के लिए पट्टे पर देने, धन सृजित करने और इस पैसे का उपयोग उनके रखरखाव के लिए करने की एक नई अवधारणा है।
चौहान उस समय निदेशक (पर्यटन) थे, जब Town Hall का एडीबी द्वारा वित्त पोषित संरक्षण किया गया था, उन्होंने नगर निगम के आयुक्त के रूप में भी काम किया था।
वह बताते हैं,“यह निगम एक फंड की कमी वाली इकाई है। इसे अपने नागरिक कार्यों को पूरा करने के लिए निश्चित रूप से धन की आवश्यकता है। निगम ने इमारत का केवल एक हिस्सा इन गतिविधियों के लिए सौंपने का फ़ैसला किया है। इससे इसके संरक्षण और रखरखाव के लिए धन जुटाया जायेगा अन्यथा समय-समय पर रखरखाव के अभाव में इमारत क्षतिग्रस्त हो जाएगी या अंततः ढह जायेगी।”
यही विचार निगम के अन्य शीर्ष अधिकारी भी व्यक्त कर रहे हैं।
हालांकि, इस फ़ैसले ने शिमला में एक विवाद भी खड़ा कर दिया है, क्योंकि कई प्रमुख नागरिकों, साहित्यकारों और विरासत प्रेमियों ने इन ऐतिहासिक इमारतों के धीरे-धीरे व्यवसायीकरण होने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
इतिहासकार सुमित राज वशिष्ठ सवालिया अंदाज़ में कहते हैं: “शिमला नगर निगम द्वारा व्यवसायीकरण के लिए एक व्यावसायिक श्रृंखला को संपत्ति पट्टे पर देने का निर्णय बेहद आपत्तिजनक है। शिमला आने वाले हज़ारों पर्यटक औपनिवेशिक युग के इन स्थलों और इसके इतिहास का आनंद लेने के लिए शहर में घूमते हैं। हम क्या प्रदर्शित करने जा रहे हैं – एक भोजनालय ? क्या हम वास्तव में शिमला के अतीत, उसके गौरव और विरासत को संरक्षित कर रहे हैं।”
वीरभद्र सिंह के बेटे और राज्य के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह का कहना है कि उन्हें भी नागरिकों से बहुत सारे फ़ोन आये हैं, जो फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर कर रहे हैं और उनसे हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। वह कहते हैं,”मैं विवरण प्राप्त करने और शिमला के मेयर सुरिंदर चौहान के साथ मुद्दा उठाने का प्रयास करूंगा।”
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