राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिंदू स्प्रिचुअल सर्विस फाउंडेशन की ओर से आयोजित प्रकृति वंदन कार्यक्रम में पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने लोगों से प्रकृति को जीतने की भावना त्यागने की अपील की।
उन्होंने कहा कि पिछले तीन-साढ़े तीन सौ साल में प्रकृति के शोषण से जो खराबी हुई है, अगर प्रकृति संरक्षण करेंगे तो सौ-दो सौ साल में उस खराबी को दूर किया जा सकता है। मोहन भागवत ने कहा कि हम भी प्रकृति के एक अंग है, इस बात को समझना होगा।
संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, पर्यावरण, यह शब्द आजकल बहुत सुनने को मिलता है, बोला भी जाता है और उसका एक दिन मनाने का भी एक कार्यक्रम है। उसका कारण है कि अभी तक दुनिया में जो जीने का तरीका है, वो पर्यावरण के अनुकूल नहीं है, वो तरीका प्रकृति को जीतकर मनुष्यों को जीना है, ऐसा मानता है।
मोहन भागवत ने कहा, मनुष्य का पूरा अधिकार प्रकृति पर है, लेकिन उसका कोई दायित्व नहीं है। ऐसा हम गत दो-ढाई सौ साल से जी रहे हैं। उसके दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं। उसकी भयावहता अब दिख रही है। ऐसे ही चला तो सृष्टि में जीवन जीने के लिए हम लोग नहीं रहेंगे। यह भी हो सकता है कि सृष्टि भी नहीं रहेगी। और इसलिए मनुष्य अब विचार करने लगा, तो उसको लगा कि पर्यावरण का संरक्षण होना चाहिए।
संघ के सरसंघचालक ने प्राचीन भारतीय संस्कृति में प्रकृति संरक्षण के उदाहरण दिए। उन्होंने कहा, हमारे यहां कहा जाता है कि शाम को पेड़ों पर मत चढ़ो। क्योंकि पेड़ सो जाते हैं। हमारे यहां रोज चीटियों को दाना डाला जाता है। कुत्ते, पक्षियों को आहार दिया जाता था। हमारे यहां वृक्षों, नदियों, पर्वतों की पूजा होती है। गाय और सांप की भी पूजा होती है। इस प्रकार का अपना जीवन था। लेकिन भटके हुए तरीके के प्रभाव में आकर हम भूल गए। आज हमको भी पर्यावरण दिन के रूप में मनाकर स्मरण करना पड़ रहा है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने प्रकृति संरक्षण से जुड़े नागपंचमी, गोवर्धन पूजा, तुलसी विवाह जैसे त्यौहारों से नई पीढ़ी को जोड़ने पर जोर दिया। मोहन भागवत ने कहा, हमें प्रकृति से पोषण पाना है, प्रकृति को जीतना नहीं है। इस प्रकार का विचार करके आगे की पीढ़ी चलेगी। पिछले तीन से साढ़े तीन सौ साल में खराबी हुई है, उसे सौ-दो सौ वर्षों में सृष्टि सुरक्षित कर पाएंगे। पर्यावरण दिवस कोई मनोरंजन का कार्यक्रम नहीं है।.
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