अदिति भादुड़ी
डॉ. बातर किटिनोव रूसी संघ के एक स्वायत्त क्षेत्र, काल्मिक क्षेत्र में स्थित रूसी संघ के एक देसी बौद्ध हैं। वह इस समय इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओरिएंटल स्टडीज़, रशियन एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़, मॉस्को के लीडिंग रिसर्च फेलो हैं। हाल ही में दिल्ली में वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन में भाग लेने आये थे। उन्होंने अदिति भादुड़ी से रूसी संघ में बौद्ध समुदाय के बारे में बात की। उन्होंने कई सवालों के जवाब दिए,जैसे कि कैसे बौद्ध धर्म भारत से मंगोलिया और चीन होते हुए रूस कैसे पहुंचा; कैसे युद्ध और साम्राज्यवाद की लंबी उथल-पुथल भरी शताब्दियों के दौरान बौद्ध अपने आस्था पर क़ायम है और आज रूस में बौद्ध समुदाय की वर्तमान स्थिति क्या है।
डॉ. बातर किटिनोव से लिए गए साक्षात्कार के अंश:
इंडिया नैरेटिव: बौद्ध धर्म सबसे पहले कब और कैसे रूस पहुंचा ?
डॉ. बातर किटिनोव: बौद्ध धर्म सबसे पहले मंगोलिया होते हुए चीन से रूस के सुदूर पूर्व में दिखायी दिया। यह चीनी बौद्ध धर्म ही था, और ऐसा आठवीं शताब्दी ईस्वी में हुआ था। बौद्ध धर्म रूस में तीन लहरों में आया। दूसरी लहर पंद्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में दिखायी दी। यह भी कुछ तिब्बती विशेषतायें लिए चीनी बौद्ध धर्म का एक रूप था। तीसरी और अंतिम लहर 16वीं शताब्दी के अंत में आयी और यह तिब्बती बौद्ध धर्म था।
यह काल्मिक ही थे, जो कई कारणों से पहली बार दक्षिण साइबेरिया से कैस्पियन सागर (अस्त्रखान) तक रूसी संघ के क्षेत्र में चले गये। सही मायने में “कलमक” एक तुर्किक शब्द है। हम ख़ुद को “ओइरात” कहते हैं। 13वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में काल्मिक बौद्ध बन गये। तब तक वे श्रमवादी और आंशिक रूप से ईसाई थे। 15वीं शताब्दी के मध्य में तिब्बती बौद्ध धर्म की गेलुक शाखा- येलो हैट्स- इस क्षेत्र में पहुंची और काल्मिकों ने बौद्ध धर्म की इस शाखा को अपना लिया। वास्तव में यह काल्मिक ही थे, जिन्होंने 1652 में पांचवें दलाई लामा के साथ तिब्बती बौद्धों पर दलाई लामा की सत्ता स्थापित करने में मदद की थी।
18वीं सदी के उत्तरार्ध में बुरात क्षेत्र के लोग बौद्ध बन गये। 13वीं शताब्दी में तुवा में लोगों के पास पहले से ही बौद्ध मंदिर थे, शायद ये उइघुर मंदिर थे। जब वे जुंगर खानटे का हिस्सा बने, तो वे येलो हैट शिक्षण के अनुयायी बन गए।
इंडिया नैरेटिव: आज रूस में बौद्ध समुदाय कितना बड़ा है ?
डॉ. बातर किटिनोव: रूस में इस समय लगभग दस लाख बौद्धों रहते हैं। बुरात स्वायत्त गणराज्य में लगभग 400,000 बौद्ध हैं, काल्मिकिया में 135,000 बौद्ध हैं, तुवा गणराज्य में 100,000 हैं, और बाकी अधिकतर रूसी धर्मान्तरित हैं।
इंडिया नैरेटिव: अपने जन्मस्थान से इतनी दूर इस क्षेत्र में सदियों से बौद्ध धर्म को कैसे संरक्षित रखा गया ?
डॉ. बातर किटिनोव: इसका जवाब आसान नहीं है। बुराटिया और तुवा के लोग रूस के यूरोपीय भाग से बहुत दूर रहते थे। दूसरी ओर काल्मिकों को कई युद्धों का सामना करना पड़ा। इसलिए, उनके लिए आस्था को बनाये रखना कठिन था। फिर भी, उन्होंने ज़बरदस्त बाधाओं का सामना किया। दलाई लामा के प्रति उनकी आस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनकी आस्था- कर्म में – ने एक और प्रमुख भूमिका निभायी। हम मानते थे कि सब कुछ कर्म है, और यदि हम आस्था रखेंगे, तो यह हमारे कर्म को शुद्ध रखेगा।
इंडिया नैरेटिव: आप रूस के बौद्ध समुदाय और रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च के बीच के सम्बन्धों का वर्णन कैसे करेंगे ?
डॉ. बातर किटिनोव: बौद्धों और (रूसी रूढ़िवादी) चर्च के बीच का सम्बन्ध तो इस समय अच्छा है। बौद्धों को एक आधिकारिक अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता प्राप्त है। हालांकि, रूसी ज़ारिस्ट साम्राज्य के तहत, उन्होंने कभी-कभी “पगानों” को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने की कोशिश की, क्योंकि यह राज्य की नीति थी। हालांकि, ज़ारिस्ट शासन के अंत के साथ ही इंडोफ़ाइल्स और विशेष रूप से बौद्ध धर्म में रुचि रखने वालों की एक लहर दिखायी दी, जैसे कि अलेक्जेंडर शर्बत्स्की, और यह हमारे लिए मददगार था। यूएसएसआर के दौरान केवल बौद्ध ही नहीं, सभी धर्मों को दबा दिया गया था।
रूसी संघ में राज्य और धर्म अलग-अलग हैं। इसलिए हम कोई दबाव महसूस नहीं करते। हमारे लिए आज़ादी है, लेकिन हमारे पास और भी मुद्दे हैं। हम एक कमज़ोर और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय हैं। इसलिए, हमें कभी-कभी अपनी पहचान बनाये रखना मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए, राज्य हमें एक मंदिर के लिए भूमि दान में देता है, लेकिन हम उसे बनाने के लिए संसाधन नहीं ढूंढ पाते हैं। हमें राज्य का संरक्षण चाहिए।
हालांकि, बौद्ध शिक्षायें आज रूस में कई लोगों के लिए वास्तव में आकर्षण का केंद्र हैं। रूस में आज बौद्ध अध्ययन का विकास हो रहा है।
इंडिया नैरेटिव: क्या भारत रूस में बौद्ध समुदाय के लिए कुछ कर सकता है ?
डॉ. बातर किटिनोव: भारत विभिन्न तरीक़ों से रूस में बौद्धों और बौद्ध धर्म की मदद कर सकता है। वे पाली और संस्कृत के शिक्षक भेज सकते हैं और हमारे बीच ऐसे शिक्षकों को प्रशिक्षित कर सकते हैं। वे संग्रहालय प्रदर्शनियों आदि को बढ़ावा दे सकते हैं।
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