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उत्तराखण्ड में आई आपदा ने पूरे भारत को हिला कर रख दिया है। इस आपदा से तपोवन बिजली परियोजना और ऋषि गंगा परियोजना ध्वस्त हो गईं। इस आपदा से हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई तो संभव है लेकिन वक्त और आदमी की जिंदगियों के नुकसान की भरपाई असंभव है। 7 फरवरी को उत्तराखण्ड के नंदा देवी पर्वत श्रंखला में रहस्यमयी ढंग से हुए हादसे ने भी सैकड़ों की जिंदगियां लील हैं। यह न समय वापस आ पाएगा और न वो लोग। इतने संवेदनशील हादसे के बाद कुछ खास विशेषज्ञों ने दुर्घटना का सही कारण जाने बिना ही राय देनी शुरू कर दीं। किसी ने कहा ग्लेशियर टूट कर गिर गया। किसी ने ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है। किसी ने कहा कि सरकार की अनदेखी है। कुछ ने अनसीन फोर्सेस की बात कह दी। मतलब यह कि जितने मुंह उतनी बातें। उनमें गंभीरता के नाम पर कुछ नहीं। उत्तराखण्ड के सीएम त्रिवेंद्र विक्रम सिंह रावत सामने आए और भ्रांतियों को खत्म करने की कोशिश की। उन्होंने स्पष्ट कहा कि ग्लेशियर नहीं टूटा है। पहाड़ दरकने और बड़ी चट्टान पानी में गिरने से हादसा हुआ।</p>
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उत्तराखण्ड के सीएम का बयान गंभीर-तथ्य परक और सुबूतों के आधार पर है कि <span dir="RTL">&#39;</span>चट्टान&nbsp;पानी में गिरने से हादसा हुआ<span dir="RTL">&#39;!</span>सवाल यह उठता है कि नन्दा देवी पर्वत श्रंखला की कोई चट्टान बिना किसी कारण के अचानक कैसे टूट कर गिर सकती है? क्या नंदा देवी पर्वत के नीचे कोई हलचल हो रही है और हमारे वैज्ञानिक उस हलचल से अंजान हैं?कई सवाल हैं। इन सवालों के बीच एक और थ्योरी सामने आ रही है कि नंदा देवी पर गुम हुई रेडियो एक्टिव डिवाइस के फट जाने से पहाड़ फट पड़े।</p>
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ऐसा कहा जाता है कि1965 से इन चोटियों में एक राज दफन है, जो इंसान के लिए विनाशकारी आशंका को बार-बार जिंदा करता है। शीतयुद्ध का दौर था और उस वक्त दुनिया दो ध्रुवों में बंटी हुई थी। भारत और अमेरिका ने 1965 में मिशन नंदा देवी के रूप में एक खुफिया अभियान चलाया था। चीन की परमाणु गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए ये सीक्रेट मिशन शुरू हुआ था। चीन पर निगरानी के लिए अमेरिका ने भारत से मदद मांगी। कंचनजंगा पर खुफिया डिवाइस लगाने का प्लान बनाया गया। लेकिन भारतीय सेना ने जब इसको टेढ़ी खीर बताया को 25 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित नंदा देवी पर रेडियोऐक्टिव डिवाइस लगाने का फैसला हुआ। यह डिवाइस इसी इलाके में रहस्यमय ढंग से गायब हो गई थी। जो अब फटी और यह हादसा हो गया।</p>
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यहां यह ध्यान देने वाली बात भी है कि चीन को इस खुफिया मिशन की जानकारी हो गई थी। चीन को यह भी पता लग गया था कि डिवाइस इंस्टॉल होने के बजाए कहीं गुम हो गई है। चीन ने भी अपने खुफिया सेटेलाइट्स से कई बार उस डिवाइस की लोकेशन जानने की कोशिश की थी। यह बात भी अब किसी से नहीं छिपी है &nbsp;चीन लेजर वेपन विकसित कर चुका है। तो क्या यह मान लिया जाए कि चीन ने खुफिया सेटेलाइट से लेजर वेपन का इस्तेमाल किया है? इस आखिरी थ्योरी को गॉशिप ही माना जा रहा है। क्यों कि दुनिया को कोरोना वायरस मामले में सारे सुबूत होने के बावजूद जब चीन क्लीन चिट हासिल कर सकता है तो फिर खुफिया सैटेलाइट से भारत के नंदा देवी पर्वत पर गुम हुई डिवाइस को ढूंढ कर उड़ा देने का तो सुबूत धरती पर तो है ही नहीं!</p>
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1965 में मिशन नंदा देवी के टीम लीडर कैप्टन मनमोहन सिंह कोहली इस अभियान के खिलाफ थे। उन्होंने कहा था कि नंदा देवी चोटी 25 हजार फीट से ज्यादा ऊंची है। इतनी ऊंचाई पर खतरनाक रेडियोऐक्टिव सामान ले जाने के खतरे के बारे में उन्होंने आगाह किया था। लेकिन अमेरिकी खुफिया एजेंसी की टीम हर हाल में मिशन को अंजाम देना चाहती थी। ऐसे में उनकी सलाह को दरकिनार कर दिया गया। इसके बाद भारत-अमेरिका की टीम को वहां जाना पड़ा। 14 अक्टूबर 1965 को टीम का बर्फीले तूफान से सामना हुआ। ऐसे में टीम के सदस्यों की जान खतरे में थी। टीम लीडर कोहली ने फिर सभी को वापस बेस कैंप लौटने के निर्देश दिए। इसके बाद 1 जून 1966 को टीम फिर कैंप-4 पहुंची लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद वहां कुछ भी नहीं मिला।</p>
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पर्यावरण वैज्ञानिक मानते हैं कि उत्तराखण्ड की दुर्घटना का कारण जलवायु परिवर्तन है, यह हमारी जिंदगियों पर असर डाल रहा है और वह भी कई तरीके से। दूसरी बात यह कि हमें लंबे वक्त तक चलने वाले जलवायु परिवर्तन के असर से बचने के कदम उठाने के साथ-साथ इसका सामना करने पर बहुत ज्यादा ध्यान देना चाहिए। तीसरी बात यह कि हिमालय दुनिया में सबसे कम मॉनिटर किया जाने वाला क्षेत्र है। इसलिए हमारे ग्लेशियर्स को और ज्यादा मॉनिटर करने पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए ज्यादा संसाधन जुटाने चाहिए। जितना ज्यादा इन्हें स्टडी किया जाएगा, उतना ज्यादा असर हमें पता चलेगा जिससे ऐसी घटनाओं से बचने के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। लेकिन जहां यह हादसा हुआ वहां के स्थानीय लोग अगर गुम हुई रेडियो एक्टिव डिवाइस में विस्फोट की आशंका व्यक्त कर रहे हैं तो इसकी भी तथ्यात्मक इन्वेस्टिगेशन होनी ही&nbsp;चाहिए न!</p>
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