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Pakistan की ब्लैकमेलिंग से तंग चीन इंडिया के सामने टेक रहा है घुटने! देखें रिपोर्ट

LAC विवाद, India-China

चीन की समझ में आ गई पाकिस्तान की ब्लैकमेलिंग 

पिछले 74 सालों में पहली बार भारत की ऑफेंसिव डिप्लोमेसी और पाकिस्तान की ब्लैकमेलिंग के बाद चीन को समझ आने लगा है कि भारत के साथ संघर्ष नहीं समन्वय के साथ काम करना होगा। लगभग सभी सीमाओं पर दूसरे देशों के साथ विवाद की स्थिति में संभवतः भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जो चीन को न केवल जमीनी नुकसान पहुंचा सकता है बल्कि भारत से निकली एक आवाज चीन को कई हिस्सों में विभाजित तो कर ही सकती है बल्कि स्पेस में भी भारी नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए चीन ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के सामने अनौपचारिक बातचीत के दौरान 1980 की एलएसी पर जाने का प्रस्ताव रखा है। यह प्रस्ताव संभवतः ताशकंत में हुई मुलाकात के दौरान रखा गया है। भारत ने चीन के इस प्रस्ताव को पहली बार में ही नकार दिया है। चूंकि यह प्रस्ताव अभी औपचारिक वार्ता की टेबल तक नहीं पहुंचा इसलिए ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन चीन के इस प्रस्ताव को लेकर नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया में सुगबुगाहट जरूर है।

चीन ने LAC पर 1980 की स्थिति पर वापस जाने का दिया प्रस्ताव

भारतीय खेमे की ओर से चीन को बता दिया गया है कि चीन शांति और सद्भाव जैसे भारी-भरकम शब्दों को इस्तेमाल करने से पहले अपनी विस्तारवादी सोच पर अंकुश लगाना होगा। भारत के साथ बराबरी की बात करने से पहले 1980 नहीं 1959 से पहले की स्थिति में जाना होगा। 1959 से पहली की स्थिति का मतलब यह कि भारत सरकार ने चीन के सामने अनौपचारिक तौर पर कह दिया है कि 1865 में निर्धारित जॉनसन लाइन को ही वास्तविक एलएसी माना जाए। इस एलएसी के अनुसार अक्साई चिन तक 38 हजार वर्ग किलोमीटर का बलातकब्जा चीन को छोड़ना पड़ेगा। भारत ने कहा है कि इससे कम पर कुछ भी मंजूर नहीं है।

चीन को अपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए भारत की जरूरत

भारत के इस रुख को देखते हुए चीन के कम्युनिस्ट शासन में बहस तेज है। भविष्य में चीन को सुरक्षित रखने के लिए उसे भारत जैसे मजबूत पड़ोसी की जरूरत है। भारत के साथ समझौता भी करना चाहता है लेकिन अहंकार और विस्तारवादी नीति चीन की कम्युनिस्ट सरकार के आड़े आ रही है। चीन यह भी जानता है कि भारत के पास न केवल परमाणु हथियार हैं। बल्कि भारत के पास स्पेस वॉर की टैक्नोलॉजी और हथियार भी हैं। युद्धकी स्थिति में भारत चीन को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए चीन भारत के साथ पूर्ण युद्ध की स्थिति में जाने के बजाए प्रोपेगण्डा वॉर यानी मनोवैज्ञानिक युद्ध उलझाना चाहता है।

स्पेस में चीन के ठिकानों पर किसका निशाना

भारतीय राजनयिक और कूटनयिक खेमा चीन के कम्युनिस्ट शासन में चल रही उथल-पुथल को समझ रहा है। भारत भी युद्ध की स्थिति में तो नहीं जाना चाहता लेकिन चीन को यह अच्छी तरह से समझा चुका है कि उसके परमाणु ठिकाने नहीं बल्कि वो टेक्नोलॉजी भारत के निशाने पर जिसके सहारे परमाणु मिसाइल दागी जाती हैं। मतलब यह कि भारत ने जमीन पर नहीं बल्कि स्पेस मेंभी चीन के ठिकानों को निशाना साध रखा है। भारत स्पेस आयुद्धों के मामले में चीन से आगे है। हालांकि, चीन की तरह भारत ने तो कभी प्रोपेगण्डा किया है और न ही स्पेस आयुद्धों के बारे में दिखावा ही किया है। चीन भारत की इस क्षमता के बारे में जनता है। यही कारण कि वो एलएसी पर 1980 की स्थिति को कायम करना चाहता है।

चीन के BRI प्रोजेक्ट की निकली हवा

इसके साथ यह भी है कि 2015 में शुरू हुए चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट की हवा निकल चुकी है। पाकिस्तान ही नहीं बल्कि कैरिबियन देशों में भी चीन के इस प्रोजेक्ट को नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालांकि, एक दर्जन से ज्यादा गरीब देशों की जमीनों पर चीन कब्जा कर चुका है, लेकिन इन कब्जों से चीन को पैसा नहीं मिल रहा है। उस जमीन के टुकड़ों पर भी चीन को निवेश करना पड़ रहा है। पाकिस्तान का सीपेक बीआरआई की सबसे महंगी और महत्वाकांक्षी परियोजना थी। इस परियोजना को शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट भी कहा जाता है। सीपेक के पूरा होता ही चीन सेंट्रल एशिया में सीधी पहुंच बना सकता था।

पाकिस्तान में डूब गया 73 बिलियन डॉलर की CPEC प्रोजेक्ट 

शी जिनपिंग को भरोसा था कि वो इस परियोजना को पूरा कर भारत पर दबाव बना लेगा। लेकिन जिस पाकिस्तान ने अमेरिका के अरबों-खरबों डॉलर हजम कर लिए वो चीन के 73 बिलियन डॉलरों को हजम करने में कितने दिन लगाता। सीपेक 40 बिलियन डॉलर की लागत से शुरू हुआ था। इस समय इसकी लागत 73 बिलियन डॉलर हो चुकी है। ये लागत बढ़ती ही जा रही है। अब चीनी कंपनियों और चीनी नागरिकों पर हमले भी होने लगे हैं। कोहिस्तान में दासू हाईड्रो पॉवर प्रोजेक्ट जा रही चीनी इंजीनियरों की बम पर आतंकी हमले ने तो चीन के सब्र को तोड़ दिया है।

चीन को चीन रहना है जॉनसन लाइन को LAC मानना होगा

चीन को पाकिस्तान में इन हालातों का अहसास पहले से हो गया था। इसलिए बैक डोर डिप्लोमेसी के जरिए एलएसी पर 1980 की स्थिति बहाल करने का प्रस्ताव भी दिया। भारत ने भी संकेत भेज दिया है कि 1865 की जॉनसन लाइन की स्थिति बहाल होती है तो बात आगे बढ़ाई जा सकती है। एलएसी निर्धारित करते समय तिब्बत भी एक पार्टी  होगा।