क्या हिंदुओं को आजादी के पहली बार अधिकार मिलने जा रहे हैं या फिर मुसलमानों से अल्पसंख्यकों (Hindu in Minority in India) का दर्जा छीना जा रहा है? यह बात गिलास आधा खाली या आधा भरा दोनों तरह से देखी जा सकती है। दरअसल, केंद्र सरकार ने उन राज्यों में हिंदुओं को अल्प संख्यकों (Hindu in Minority in India) का दर्जा देने का पक्का बना लिया है, जहां वो जनसंख्या के हिसाब से मुसलमानों से कम हो चुके हैं। भारत की संघीय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राज्य सरकारों की ओर से प्रतिक्रिया मिलने के कारण देरी हो रही है। इसलिए हिंदुओं को अल्प संख्यकों (Hindu in Minority in India)का दर्जा देने में दिक्कत आ रही है।
संघीय सरकार ने कहा है कि यह मामला काफी संवेदनशील है और इसके दूरगामी प्रभाव होंगे। अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय और अन्य की याचिकाओं के जवाब में दायर अपने चौथे हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि उसे इस मुद्दे पर अब तक सिर्फ 14 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों से ही टिप्पणियां मिली हैं।
संघीय सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ परामर्श बैठकें की हैं। इन बैठकों में गृह मंत्रालय, कानूनी मामलों के विभाग- कानून और न्याय मंत्रालय, उच्च शिक्षा विभाग- शिक्षा मंत्रालय, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग (NCMEI) के प्रतिनिधि भी शामिल हुए।
संघीय सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों ने इस मामले पर अपनी राय बनाने से पहले सभी हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श करने के लिए अतिरिक्त समय का अनुरोध किया है। राज्य सरकारों से अनुरोध किया गया था कि तात्कालिकता को देखते हुए इस मामले में उन्हें तेजी से कार्य करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राज्य सरकार के विचारों को अंतिम रूप दिया गया है और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को जल्द से जल्द अवगत कराया गया है।”
संघीय सरकार ने कहा है कि, “14 राज्य सरकारें जैसे पंजाब, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, ओडिशा, उत्तराखंड, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और 3 केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव और चंडीगढ़ ने अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।”
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि 2002 के टीएमए पई फैसले के बाद 23 अक्टूबर, 1993 की अधिसूचना के द्वारा केंद्र सरकार ने मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया था। आखिरी बार 2014 में केंद्र सरकार ने जैनियों को इस सूची में जोड़ा था।
गौरतलब है कि सिख और बौध पंथ पहले ही अल्पसंख्यकों में शामिल थे। उसके बाद जैनों को भी यह दर्जा मिल गया अब बंगाल कुछ इलाकों और कश्मीर में अल्प संख्यक बन चुके हिंदुओं को अल्पसंख्यक श्रेणी का लाभ मिल सकता है।
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