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बॉबी घोष जैसे बुद्धिजीवी कैसे मैक्रॉन को कमतर साबित करके जिहाद का समर्थन करते हैं

कोई एक लेख अगर जिहाद को सफल बनाने में हमारे बुद्धिजीवियों के विविध उपायों और उनकी भूमिका को व्यापक रूप से चित्रित कर सकता है, तो मैं <strong>‘</strong><a href="https://theprint.in/world/macron-erdogan-imran-khan-must-respond-as-leaders-not-politicians/533732/"><strong>Macron, Erdogan, Imran Khan must respond as leaders, not politicians</strong></a><strong>’</strong> की सिफारिश करूंगा। जिसे <strong>‘The Print’</strong> वेबसाइट पर पोस्ट किया गया है। इसे पढ़कर आपको महसूस होगा कि लेखक बॉबी घोष कितने बीमार हैं। वह हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व प्रधान संपादक, एक स्तंभकार और ब्लूमबर्ग ओपिनियन में संपादकीय बोर्ड के सदस्य हैं। मुख्य धारा की मीडिया में यह बीमारी बड़े पैमाने पर दिखाई देती है।

घोष का सबसे बड़ा दोष बेशर्मी से सभी को नैतिकता के तराजू के एक ही पलड़े पर रख देना हैं। उन्होंने तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोवान और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन को भी एक बराबर धरातल पर रख दिया है। मैक्रॉन ने अभिव्यक्ति की आजादी का पुरजोर समर्थन करके और इस्लामी आतंकवाद को एक खतरा बताते हुए महानता दिखाई है। दूसरी ओर एर्दोवान और खान, जिहाद को हवा दे रहे हैं और फ्रांस और फ्रांसीसी राष्ट्रपति के खिलाफ मुसलमानों को उकसा रहे हैं।

घोष ने लिखा, "यह कोई संयोग नहीं है कि एर्दोवान और खान की तरह वर्तमान में मैक्रॉन को घरेलू तौर पर राजनीतिक और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।" वह सुझाते दिखते हैं कि वे सभी राजनेता हैं, नेता नहीं। "इस महीने के शुरू में मैक्रॉन ने इस्लाम को संकट में डालने वाला धर्म घोषित करके और फ्रांस में विश्वास को पुनर्गठित करने का आह्वान करके खुद ही देश और विदेश में मुसलमानों को नाराज कर दिया। घोष ने लिखा, "विश्लेषकों को शायद ही इसके राजनैतिक पहलू की याद आती है: राष्ट्रपति, फ्रांसीसी दक्षिणपंथ के हमलों से खतरे में हैं, जो मुसलमानों और उनके धर्म को बलि का बकरा बना रहे हैं।"

इस समान तुलना पर ध्यान दें। मैक्रॉन भी एर्दोवान और खान की तरह संकट का सामना कर रहे हैं। और एर्दोवान और खान की तरह मैक्रॉन भी गंदी चालों में लिप्त हैं, उन्होंने भी दक्षिणपंथियों के तुष्टीकरण के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बना दिया है। जैसे कि कुछ हफ्ते पहले सैमुअल पैटी की गर्दन काटने वाला कोई सीरियल किलर था और मैक्रॉन ने दुर्भावनापूर्ण और लापरवाही से मुसलमानों को इस हत्या के लिए दोषी ठहराया था!

इस बीमारी का सही नाम ‘इस्लामिक आतंकवाद’ बताने के लिये फ्रांसीसी राष्ट्रपति के नैतिक साहस की प्रशंसा करने के बजाय घोष उनकी आलोचना कर रहे हैं। जबकि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा कभी भी ऐसा नहीं कर सके। घोष ने लिखा, "मैक्रॉन ने पेटी के हत्यारे की प्रेरणा को ध्यान में रखकर प्रतिक्रिया दी और भय से अभिव्यक्ति की आजादी का त्याग नहीं करने का वादा किया। उनका लक्ष्य फ्रांसीसियों को आश्वस्त करना था कि फ्रांसीसीपन (Frenchness) में कोई कमजोरी नहीं होगी।”

और फिर स्टिंग और झूठ आए: "लेकिन यह पता लगाने के बजाय कि फ्रांसीसी जीवन पद्धति इतने सारे प्रवासियों से सामंजस्य बैठाने के लिए संघर्ष क्यों करती है, मैक्रॉन ने अपनी हार्डलाइनर आंतरिक मंत्री गेराल्ड डर्मैनिन को कठोर कार्रवाई शुरू करने के लिए अधिकृत किया।"

ध्यान दें " फ्रांसीसी जन-जीवन का तरीका इतने सारे प्रवासियों से सामंजस्य बैठाने के लिए संघर्ष क्यों करता है।" यही 'मूल-कारण' सिद्धांत है। हिंदुओं, बौद्धों, सिखों और अन्य धर्मों के लोगों को फ्रांस, इंग्लैंड और अन्य देशों में सामंजस्य बैठाने में कोई समस्या नहीं है, केवल मुसलमानों को है। घोष जैसे बुद्धिजीवियों से पूछा जाना चाहिए कि केवल मुसलमानों को दूसरे देशों में सामंजस्य बैठाने में समस्या क्यों है, इसके बजाय वे सामंजस्य बैठाने में मुसलमानों की विफलता, बल्कि अनिच्छा के लिए हर किसी को दोष देते हैं।

घोष के पास मैक्रॉन के लिए उपदेशों और सुझावों की एक लंबी सूची है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति को फ्रांस के मुस्लिम नागरिकों के गुस्से और चिंताओं के बारे में भी बात करनी चाहिए। उन्हें यह आश्वस्त करना होगा कि कुछ चरमपंथियों के कार्यों के लिए पूरे समुदाय को निशाना नहीं बनाया जाएगा। उन्हें कानून प्रवर्तन और सुरक्षा एजेंसियों से मुसलमानों की प्रोफाइलिंग से बचना चाहिए, और वास्तव में उन्हें अति दक्षिणपंथी चरमपंथियों के हमले से बचाना चाहिए। उन्हें अपने आंतरिक मंत्री को भी हद में रखना चाहिए।”

जैसे कि फ्रांसीसी पुलिस ने कट्टरपंथी मुस्लिमों के साथ-साथ आम मुसलमानों के साथ भी मुठभेड़ की है। कानून-प्रवर्तन अधिकारियों को मुस्लिम संवेदनाओं का सम्मान करना चाहिए और आंतरिक मंत्री को बाहर कर देना चाहिए। आमतौर पर एक समझदार वकील की तरह मुसलमानों के लिए एक शब्द भी नहीं कहा गया है।

घोष की बातों के हिसाब से पूरी दुनिया को इस्लाम और मुसलमानों का सम्मान करना है, मैक्रॉन जैसे लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी जैसे बेवकूफाना विचारों को लोकर कोई उपद्रव नहीं खड़ा करना चाहिए। घोष ऐसे लोगों में शामिल हैं जो दावा करते हैं कि वे कट्टरता के खिलाफ हैं। अपने ट्विटर प्रोफाइल में घोष कहते हैं, "मैं कट्टरों को ब्लॉक करता हूं।" अगर उनमें सच्चाई होती, तो वह लिखते, “मैं गैर-मुस्लिम कट्टर लोगों से नफरत करता हूं।“ लेकिन बुद्धिजीवी कभी भी सच्चे नहीं होते हैं।.

डॉ. शफी अयूब खान

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