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इस्लामी दुनिया के भीतर गहरे विभाजन ने पूरी दुनिया में आतंकवाद और हिंसा को बढ़ाया

औपनिवेशिक दासता से आजाद हो जाने के बाद इस्लामी देशों ने राजनीतिक गठबंधनों और शासन की पुरानी खिलाफत  की परंपराओं के प्रति झुकाव नहीं दिखाया। इस प्रक्रिया में मुस्लिम जगत के हर हिस्से ने अपनी स्वायत्तता और स्वतंत्रता का दावा किया। जिसने उनकी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को जन्म दिया और इसलिए संघर्ष और युद्ध हुए। यह उलझन मुस्लिम देशों के सुरक्षा मामलों पर विशेष रूप से पिछले एक सौ वर्षों से हावी रही है। सांप्रदायिक विघटन, जातीय विविधता और आर्थिक प्रतिस्पर्धा इन संघर्षों में इजाफा कर रही है। हाल ही में हिज्बुल्लाह पर लेबनान के बेरुत में घातक विस्फोटों का आरोप लगाया गया है। यही हाल सीरिया और लीबिया का है।

सांप्रदायिक विभाजन और कई स्कूलों के अनुयायियों के संदर्भ में इस्लामी दुनिया का अध्ययन करने पर साफ पता चलता है कि ये गुटीय वर्गीकरण बहुत बड़े हैं। इसके अलावा ये विभाजन और वर्गीकरण राजनीति, अंतर-राज्य और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता, अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, आर्थिक हितों और हाल के समय मे आतंकवाद से जुड़ गए हैं। सैकड़ों साल पुराने काल्पनिक विचारों और सपनों के गुब्बारे में उड़ते निर्दयी आतंकवादी समूह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सुरक्षा चुनौतियों को लगातार बढ़ा रहे हैं। रक्षा और सुरक्षा पर भारी खर्चों की वजह से देशों को अपने राजनीतिक और सामरिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए छोटे आतंकी समूहों को शरण देना और प्रोत्साहित करना ज्यादा सुविधाजनक और कम खर्चीला है।

कई अध्ययनों से पता चलता है कि आतंकवादी समूहों की वैचारिक संरचनाओं के अनुरूप जरूरी कांट-छांट के बाद सैद्धांतिक और वैचारिक आधार उपलब्ध कराने के लिए अच्छी तरह से योजनाबद्ध अनुसंधान इकाइयों को तैयार किया गया है। जो पुरुष और महिलायें सीरिया में इस्लामिक स्टेट को छोड़कर आये हैं। उनके कामकाज के तरीकों के अनुभवों से ये सभी जानकारी सामने आई है। यह महसूस करना जरूरी है कि यह एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति है और दुनिया को इससे निपटना होगा। कुछ देशों ने रिकॉर्ड पर कहा है कि वे अपने प्रतिद्वंद्वियों को सबक सिखाने के लिए भाड़े के सैनिक या हथियारबंद लश्करों को भेजेंगे। इस अर्थ में तो अब युद्ध लड़ने के पुरातन तरीकों का उपयोग करके इस्लामी जगत सैकड़ों वर्ष पीछे की दुनिया में वापस लौट रहा है।

इस्लामी जगत की सरलता इस अर्थ में अद्भुत है कि एक स्तर पर तो वह आगे बढ़ रहा है और दूसरे स्तर पर एक रिवर्स गियर पर हैं। यह मानना कोई दूर की कौड़ी नहीं हो सकती है कि आतंकी समूह अकेले या एकजुट होकर बड़े क्षेत्रों पर नियंत्रण करने के लिए एक संयुक्त रणनीतिक और सुरक्षा नीति अपना सकते हैं। आतंकी समूह विशाल भू-भाग पर कब्जा कर सकते हैं और देशों के मालिक के रूप में उभर सकते हैं। इस तरह की स्थिति की कल्पना की जा सकती है। अफगानिस्तान में तालिबान इसी श्रेणी में आता है। यह मान लेना एक सरलीकरण होगा कि अफगानिस्तान में तालिबान का खतरा खत्म हो गया है। सामरिक नीति निर्माताओं को  इसे रोकने के लिए और ज्यादा गहराई से उतरने की जरूरत है। इन स्थितियों के सामरिक निहितार्थों का अंदाजा लगाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा संप्रदाय शिया इस्लाम है। सुन्नी इस्लाम के बाद शिया इस्लाम के उद्भव के लिए होने वाले घटनाक्रम यह बताने के लिए ऐतिहासिक तथ्य प्रदान करते हैं कि कुछ घटनाएं किसी आस्था या धार्मिक विश्वास को विकसित करने के लिए किस तरह से आधार प्रदान करती हैं। समय के साथ-साथ अन्य कारक जैसे घटनाएं, नेतृत्व के लिए दावों और व्याख्याओं का भेद किसी नए धर्म के उदय या पहले से मौजूद धर्म से संप्रदाय को उत्पन्न होने में सहायक होता है।

शिया कुरान और हदीस (पैगंबर मोहम्मद के शिक्षण) में विश्वास करते हैं। यही आस्था सुन्नी इस्लाम के भी बुनियाद की नींव है। हालांकि, शियाओं का मानना ​​है कि पैगंबर मोहम्मद के परिवार को, जिसे अहल-उल-बैत (हाउस ऑफ द पीपल) कहा जाता है, जिसमें उनके वंशज शामिल हैं, जिन्हें इमाम के रूप में जाना जाता है। उनका पूरे समुदाय पर विशेष आध्यात्मिक और राजनीतिक अधिकार है।

शिया इस्लाम की विशिष्ट विशेषता यह है कि वे मानते हैं कि पैगंबर मोहम्मद के चचेरे भाई और दामाद अली इब्न अबी तालिब पहले इमाम थे और मोहम्मद के जायज उत्तराधिकारी थे। हजरत अली ने खलीफाओं को लोकतांत्रिक तरीके से चुनने के लिए तय किए गए नियमों और प्रक्रिया को स्वीकार किया था। इन नियमों और प्रक्रिया के बाद अली चौथे खलीफा बन गये और खुल-फई-रशीदुन युग के आखिरी खलीफा थे। यह मुद्दा सुन्नी और शिया मुसलमानों के बीच अत्यधिक विवादित है।

शिया आबादी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में व्यापक रूप से फैली हुई है। रिपोर्टों से पता चलता है कि शिया दुनिया की कुल मुस्लिम आबादी का 10% -15 या 20% तक हैं। कुछ देशों में शिया बहुसंख्यक आबादी है, इसलिए वे एक अलग पहचान और खूबियों को पेश करते हैं। उनके पास विश्व मामलों में अलग-अलग रणनीतिक गठबंधन की स्थितियां भी हैं। शिया बहुसंख्यक देश ईरान, इराक, लेबनान, बहरीन और अजरबैजान हैं। शिया सीरिया और तुर्की में महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक हैं।

सुन्नी और शिया की श्रेणी में इस्लाम का प्रमुख विभाजन आगे और विभाजन और नए संप्रदायों के उद्भव को रोक नहीं पाया। पिछले दो सौ वर्षों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, सामाजिक विज्ञान, मानवविज्ञान आदि की उन्नति के साथ इस प्रक्रिया से नए संप्रदायों और समूहों का उदय हुआ है। कई नए समूह उभर रहे हैं और समय के साथ वे बड़े हो जाएंगे। उनमें जमीयत-उल-अहल-ए-हदीस, जमीयत-उल-इस्लामी, देवबंदी और इस्लाम का बरेलवी स्कूल शामिल हैं।.

डॉ. शफी अयूब खान

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