स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में कई अनसुने नायकों ने भी बलिदान दिया । अपने प्रसिद्ध राष्ट्रीय नायकों को नमन करना स्वाभाविक है लेकिन ऐसे अनेक अनसुने नायकों के योगदान को भी मान्यता देने की जरूरत है जो अपने-अपने क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय थे और जिन्होंने वीरतापूर्वक अंग्रेजों से लोहा लिया था।
उन्हें केवल क्षेत्रीय नायक के रूप में नहीं बल्कि ‘राष्ट्रीय नायकों’ के रूप में ही माना जाना चाहिए और उनके साहस और बलिदान के कार्यों से देश भर के प्रत्येक नागरिक को परिचित होना चाहिए। इन स्वतंत्रता सेनानियों का आभारी होना चाहिए, जिनके निस्वार्थ प्रयासों का फल हमें एक संप्रभु और जीवंत संसदीय लोकतंत्र के नागरिकों के रूप में प्राप्त हो रहा है। विशेष रूप से युवाओं को इन अनसुने नायकों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरुक बनाया जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की धरती से एक से बढ़कर एक क्रांतिकारी निकले। आजादी के रणबाकुरों ने न तो अपनी परवाह की न अपने परिवार की। निकल पड़े आजादी की जंग में आहुति देने। लेकिन अफसोसजनक ये रहा कि कुछेक को छोड़कर पूर्वांचल के विभिन्न ग्रामीण अंचलों से निकले इन सेनानियों को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह वाकई हकदार थे। आलम यह हुआ कि ऐसे लोगों को आने वाली पीढ़ियां लगभग भूलती सी जा रही हैं।
देवरिया जिले के भटनी ब्लॉक से निकलकर सिंगापुर तक आजादी का बिगुल बजाने वाले कुछ सेनानियों के साथ भी ऐसा ही हुआ। जिले के खोरीबारी गाँव के निवासी आजाद हिंद फौज के सेनानी स्व. रामनगीना राय व उनके साथ मधुबन तिवारी और करामद मियां तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस के एक आह्वान पर सब कुछ छोड़कर देश को आजाद कराने सिंगापुर तक चले गए और आजादी के बाद ही घर लौटे।
यह घटना तब की है जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजादी की जंग के लिए आजाद हिंद फौज के गठन की योजना बनाई। अपना सैन्य बल मजबूत करने के लिए नेताजी ने हिंदुस्तान के युवाओं का आह्वान किया। जिसके बाद रामनगीना राय समेत अन्य क्रांतिकारी साथी वर्ष 1939 में देश की आजादी के लिए निकल पड़े। इस बात की जानकारी घरवालों को कानों-कान भी नहीं हुई।
रामनगीनाराय के साथ गांव के ही मधुबन पंडित, करामद मियां, सरल भगत, शिवनाथ हज्जाम, बच्चन राय, रामायण शास्त्री समेत पास के गांव के कई क्रांतिकारी निकले। इधर घर पर इन युवाओं की खोज जारी रहती है काफी खोजबीन करने के बाद भी किसी का कोई पता नहीं चलता है। अंततः थक हार कर घर वाले भगवान भरोसे बैठ जाते हैं।
<strong>समुद्र का खारा पानी पीते हुए पहुंचे सिंगापुर</strong>
ये क्रांतिकारी छोटे-छोटे गांवों से एकत्र होकर कलकत्ता के रास्ते पानी के जहाज से समंदर का खारा पानी पीते हुए सिंगापुर तक पहुँच गए और ये सभी आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गए। इन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस का सिंगापुर टाउनहॉल और रंगून में दिया गया ऐतिहासिक भाषण सुनने का इनको सौभाग्य मिलता है। कई भाषणों के दौरान इतनी तेज बारिश होती है कि इनके घुटनों तक पानी भर जाता है, लेकिन ये सेनानी टस से मस नहीं होते थे।
<strong>दो साल तक सिंगापुर जेल में बंद  रहे </strong>
आजाद हिंद फौज में सब कुछ तयशुदा अनुशासन में होता रहा, लेकिन अचानक नेताजी के विमान के क्रैश होने की सूचना आई और सब कुछ बदल गया। सारी योजना धराशायी हो गई और इन सेनानियों को दो साल तक सिंगापुर जेल में बंद रहना पड़ा। ये जेल ऐसी थी कि जहां पानी तक बमुश्किल नसीब होता था। दो-तीन दिन पर इन्हें एक बार पानी दिया जाता था। किसी तरह वहां की सजा काटने के बाद सभी भारतीय वापस वतन लौटने के लिए निकल पड़े।
इसी आपाधापी के दरम्यान मधुबन तिवारी जी और करामद मियां का कोई अता-पता नहीं चल पाता। सभी सेनानी दिल्ली आते हैं और तब तक देश सेवा और आजादी की लड़ाई में जुटे रहते हैं, जब तक देश आजाद नहीं हो जाता। आखिरकार 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ  और ये स्वाधीनता सेनानी पंडित जवाहरलाल नेहरू के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेते हैं।
<strong>10 साल बाद हुई घर वापसी</strong>
तकरीबन 10 साल के संघर्ष के बाद ये सेनानी काफी परेशान हाल में घर वापसी करते हैं। कई वर्ष बीतने और असहाय स्थिति में होने के कारण इनकी बदहाली देखकर सभी दंग रह जाते हैं। बाद में ऑल इंडिया रेडियो पर उनका इंटरव्यू भी प्रसारित हुआ। तब आकाशवाणी के पत्रकार अर्जुन तिवारी उनसे बातचीत करने घर आये थे।
<strong>गुम हुए सेनानियों के नाम पर रखी विद्यालय की नींव</strong>
बाद में  रामनगीना राय ने  लापता हो गए मधुबन तिवारी और करामद मियां के नाम पर एक विद्यालय बनाने का प्रस्ताव रखा और ग्रामीणों से जमीन मांगी। उनके इस प्रस्ताव को गांव के सभी लोगों ने स्वीकार किया और इस तरह खोरीबारी में वर्ष 1948 में शहीद मधुबन करामद कॉलेज की नींव पड़ी। जिसे बाद में सरकारी मान्यता मिली और यह शहीद मधुबन करामद इंटरमीडिएट कॉलेज हो गया जो आज भी उन शहीदों की याद में संचालित है। रामनगीना राय का समर्पण इतना था कि कॉलेज में अपने सगे संबंधी और स्वयं खुद भी कोई पद नही लिया।.
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