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POK Election 2021: POK की कहानी- गुलाम कश्मीरियों की जुबानी, Pakistan की रेजिडेंसी है POK, पीएम के हाथ में बाबा जी का ठुल्लू

पाकिस्तान की ऐशगाह है गुलाम कश्मीर POK

गुलाम कश्मीर (POK) मेंइसी महीने (जुलाई) की 25 तारीख को एक बार फिर चुनावों का स्वांग किया जा रहा है। इसी बहाने से गुलाम कश्मीर के लोगों के दिल का दर्द जुबान पर आ गया है। गुलाम कश्मीर के लोगों का कहना है कि उनकी लाइफ गुलामों से भी ज्यादा बदतर है। पाकिस्तान की सरकार ने नाम आजाद कश्मीर और गिलगिट बल्टिस्तान रखा है हक-हकूक गुलामों से भी कम हैं। गुलाम कश्मीर और गिलगिट बाल्टिस्तान के लोगों की 1947 से पहले के हालातों से भी बदतर हैं। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के साथ भारत के साथ हुए मुहायदे संवैधानिक दस्तावेजों के तौर पर हम भारत की रियाआ हैं, लेकिन हम पर हुक्म पाकिस्तान चला रहा है। भारत की सरकारों ने भी उस शिद्दत से हमारे लिए लड़ाई नहीं जिस शिद्दत से होनी चाहिए थी, और पाकिस्तान ने हम (गुलाम कश्मीर और गिलगिट बल्टिस्तान के) लोगों को लेंट ऑफिसर्स (LentOfficers) का गुलाम बना दिया है। इन लेंट ऑफिसर्स की मर्जी के बिना गुलाम कश्मीर का न कथित प्रधानमंत्री कुछ कर सकता है न गिलगिट का।

कौन हैं ये लेंट ऑफिसर्स

जेकेजीबीएलटी की नेशनल इक्वैलिटी पार्टी के चेयरमैन सज्जाद राजा बताते हैं कि ये लेंट ऑफिसर गुलाम कश्मीर और गिलगिट में पाकिस्तानी राज चलाने के लिए पाकिस्तान की सरकार के तैनात किए जाने वाले अफसर हैं। उन लेंट ऑफिसरों की तैनाती ठीक उसी तरह से होती है जिस तरह से 1947 से पहले संयुक्त भारत (बांग्लादेश-पाकिस्तान और भारत एक ही हुआ करते थे) में महारानी विक्टोरिया अपना वायसराय तैनात करती थी। भारत के राजे-महाराजे, नबाब कलगी कितनी भी ऊंची लगा लें, लेकिन वायसराय के हुक्म के बिना वो सांस भी नहीं ले सकते थे। यही हालात गुलाम कश्मीर और गिलगिट बालटिस्तान के हैं। गुलाम कश्मीर में पाकिस्तान सरकार अडिशनल सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी को गुलाम कश्मीर का चीफ सेक्रेटरी तैनात करती है। इसी अधिकारी के पास गुलाम कश्मीर के लोगों पर शासन का अधिकार होता है। पाकिस्तान सरकार दूसरा अधिकारी फाइनेंस सेक्टरी तैनात करती है। ये गुलाम कश्मीर के रेवेन्यु और इनमक एक्सपेंडिचर को देखता है। तीसरा अधिकारी है आईजीपी यानी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस। ये भी पाकिस्तान से ही आता है। मतलब यह ये तीनों अधिकारी पाकिस्तानी होते हैं। गुलाम कश्मीर के नहीं। गुलाम कश्मीर के सीनिय मोस्ट अफसरों को पाकिस्तान से आने वाले इन जूनियर अफसरों की मातहती और जी हजूरी करनी पड़ती है।

26 सीनियर पुलिस अफसरों ने एक साथ दिया इस्तीफा

राजा बताते हैं इमरान खान ने एक इतने जूनियर अफसर को गुलाम कश्मीर का आईजीपी बनाकर भेज दिया कि उससे सीनिय 26 अफसरों ने उसकी मातहती करने से इंकार कर दिया। नतीजतन, इमरान सरकार ने उनसे इस्तीफे मांग लिए। सभी 26 अफसरों ने अपनी गैरत-जमीर को जिंदा रखते हुए इस्तीफा दे दिया और घर पर बैठ गए।

गुलाम कश्मीर (पीओके) के प्रधानमंत्री की हैसियत

गुलाम कश्मीर (पीओके) के प्रधानमंत्री की हैसियत लगाम कसे हुए घोड़े या जंजीर में बंधे हए कुत्ते से ज्यादा नहीं है। जो पीठ पर बैठे मालिक का चाबुक खाकर चल देता है और लगाम खींचने पर खड़ा हो जाता है। या जंजीर में बंधा कुत्ते को मालिक जब बोलता है टॉमी शू…तो कुत्ता भौंकने लगता और जब मालिक हड्डी का टुकड़ा टाल देता है तो वो कूं-कू करता हुआ दुम हिलाने लगता है। उसके लोकल मालिक पाकिस्तान सरकार के वो अफसर हैं जो गुलाम कश्मीर में तैनात हैं। चीफ सेक्रेटरी के दस्तखत के बिना कोई कानून नहीं बन सकता। फाईनेंस सेक्रेटरी की लिखित इजाजत के बिना कोई बिल पास नहीं हो सकता और आईजीपी की इजाजत के बिना गुलाम कश्मीर का प्रधानमंत्री किसी के खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज नहीं करवा सकता। 1948 तक कश्मीर की अपनी फौज होती थी। अब ये फौज एक बटालियन बनकर आर्मी हेडक्वार्टर की शोभा बढ़ा रही है। बटालियन का कमाण्डिंग अफसर पाकिस्तानी होता है। कश्मीरी नहीं। इस बटालियन को गुलाम कश्मीर में तैनात नहीं किया जाता। गुलाम कश्मीर में पाकिस्तानी फौज और पाकिस्तानी रेंजर तैनात हैं।

गुलाम कश्मीर का चुनाव अधिकारी

राजा कहते हैं कि गुलाम कश्मीर के चुनाव एक स्वांग है। क्यों कि यहां जो इलेक्शन अफसर तैनात है वो पाकिस्तानी है। पिछले चुनावों के समय नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान की सरकार में थी इसलिए राजा फारुख हैदर सो कॉल्ड प्रधानमंत्री सिलेक्ट हुए। इस बार इमरान खान पाकिस्तान का प्रधानमंत्री है तो इस बार गले में पट्टा पीटीआई के कंडीडेट के गले में पड़ जाएगा। चुनाव में वही होना है जो इमरान खान का हुक्म होगा। वोटिंग तो दिखावा है। जब यहां के सो कॉल्ड पीएम को कोई हक-हकूक नहीं है तो गुलाम अवाम को क्या हकूक होंगें।