Saudi Arabia Banned Loudspeaker: इतिहास सही मायने में दुनिया के बदल जाने का लेखा-जोखा होता है। मगर,कभी-कभी नहीं बदलने की ज़िद हमें इतिहास के कालखंड के ऐसे मोड़ पर सदियों या दशकों तक खड़ा कर देती है,जहां ठहराव से तरक़्क़ी को नुक़सान पहुंचता है। मध्ययुग में जिस इस्लामिक जगत में ज्ञान की ज्योत जगमगाती थी, वही इस्लामिक जगत आज अंधेरे के हवाले है। नहीं बदल पाने की ज़िद से ज्ञान-विज्ञान को तो नुक़सान पहुंच ही रहा है, इस्लाम का असली पैग़ाम मुसलमानों तक भी नहीं पहुंच पा रहा है।
रमज़ान से पहले कुछ जरूरी गाइडलाइंस जारी
ऐसे में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (Mohammed bin Salman Al Saud) को एक ऐसे शासक के रूप में देखा जा सकता है,जो रवायत से रूढ़ीवाद को छांटते हुए इस्लाम के बुनियादी पैग़ाम को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी ही कोशिशों में वह दस सूत्री गाइडलाइंस भी है, जो रमज़ान से पहले जारी किए गए हैं।
-इन गाइडलाइन्स में कहा गया है कि रमज़ान के पवित्र महीने में मस्जिदों के भीतर इफ़्तार नहीं होगा।
-सऊदी अरब सरकार ने मस्जिद में लाउडस्पीकर बजाने, नमाज़ के प्रसारित करने और बिना आईडी के एतफ़ाक में बैठने पर रोक लगा दी है।
-नमाज़ियों से बच्चों को मस्जिदों में नहीं लाने का अनुरोध यह कारण बताते हुए किया गया है कि इससे नमाज़ियों को परेशानी होती है और उनकी इबादत में बाधा पैदा हो सकती है।
-शुक्रवार को इस्लामिक मामलों के मंत्री अब्दुल लतीफ़ अल-शेख़ की ओर से जारी दस्तावेज़ के मुताबिक़ इफ़्तार के आयोजन के लिए चंदा जुटाने पर भी पाबंदी लगा दी गयी है।
-इसी दस्तावेज में रमज़ान के आख़िर दस दिनों के दौरान ख़ुद को एकांत में रखने वाले नमाज़ियों की निगरानी और दान पर प्रतिबंध जैसे दिशा निर्देश भी शामिल हैं।
-उल्लेखनीय है कि रमज़ान के आख़िर दस दिन अल्लाह की इबाद के ख़्याल से बेहद अहम माने जाते हैं और इस दौरान नमाज़ी ख़ुद को मस्जिद के भीतर एकांतवास करते हैं,ताकि दुनियावी तौर-तरीक़ों से वे ख़ुद को पूरी तरह अलग कर सकें और अपना पूरा ध्यान और मन अल्लाह की इबादत में लगा सकें। इस इस्लामिक परंपरा को एतकाफ़ के रूप में जाना जाता है।
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पूरी पवित्रता के साथ मुकम्मल करें
सऊदी अरब (Saudi Arabia) सरकार के ये दिशा निर्देश नामाज़ियों के एतकाफ़ के ऐतबार से ज़रूरी हैं। लेकिन,दुनिया भर के कट्टर मुसलमानों को लगता है कि ये दिशा निर्देश सऊदी अरब में अबतक चली आ रही इस अध्यात्मिक परंपरा में दखल हैं। मगर सचाई तो यही है कि इस परंपरा की गहराई और संवेदना को देखते हुए यह ज़रूरी था कि इसे किसी भी तरह के पड़ने वाले खलल से बचाया जाए और नमाज़ियों को एक ऐसा माहौल उपलब्ध कराया जाए,जिसमें वे अपने एतकाफ़ को पूरी पवित्रता के साथ मुकम्मल कर सकें।
मगर, मिडिल ईस्ट की ख़बरें देने वाली वेबसाइट के मुताबिक़ दुनिया भर के कट्टर उलेमा जारी किए गये इस दिशा-निर्देश से भड़क गये हैं। उनका आरोप है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान सार्वजनिक जीवन में इस्लाम के असर को कम करना चाहते हैं। उनका यह भी आरोप है कि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के ये प्रतिबंध ट्यूनिशिया के पूर्व तानाशाह जीन अल अबिदीन और पूर्व सोवियत संघ की उन कोशिशों की तरह है,जिसका मक़सद सार्वजनिक जीवन में इस्लाम को बेअसर करना है। अपने इस कथन के समर्थन में उनका कहना है कि “सऊदी सरकार किंगडम की सोसाइटी को खोलने की इस कोशिश की कड़ी में ही लोकप्रिय पश्चिमी कलाकारों और पॉप सिंगर जैसी हस्तियों को बुलाती है।
सऊदी सरकार इस तरह के संगीत समारोहों को बढ़ावा दे रही है और अंतरराष्ट्रीय ऑडियेंस को लुभाने का पयास कर रही है।’ लेकिन,एक चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इस्लामिक मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल्ला अल-एनेजी का कहना है कि, “हम मस्जिदों में इफ़्तार करने से नहीं रोक रहे, बल्कि इसे व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहे हैं। इससे मस्जिद की पवित्रता और स्वच्छता को क़ायम रख पाने में मदद मिलेंगी।
कोई संदेह नहीं कि एतकाफ़ जैसे आयोजनों में बरती जाने वाली ज़रूरी पवित्रता के बरते जाने में सऊदी अरब (Saudi Arabia) के ये दिशा-निर्देश मददगार ही साबित होंगे और इस ख़्याल से यह एक सुंदर बदलाव है। इस बदलाव का विरोध कर रहे कट्टरपंथियों को भी इस बात का समझना ज़रूरी है कि मूल चरित्र को क़ायम रखते हुए बदलाव के साथ तालमेल बिठाना ही वजूद के क़ायम रखने की पहली शर्त होती है।इस लिहाज़ से सऊदी अरब के इन दिशा-निर्देश एक स्वागत योग्य क़दम माना जा सकता है।
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