तिब्बत के अपहरण के 61 साल हो चुके हैं। साठ दशकों में एक भी ऐसा दिन नहीं बीता जब भारत और तिब्बत ने एक दूसरे के लिए सांस ली और न छोड़ी हो । इसीलिए कहा जाता है कि तिब्बत भारत के दिलों में बसता है और तिब्बत हर क्षण भारत के लिए कुर्बान है। हर कोई तिब्बती चाहता है कि वो भारत मां के लिए अपनी जान न्यौछावर करने के गौरव हासिल करे। तिब्बतियों में इस सम्मान को पाने के लिए होड़ लगी है। ये होड़ लगी भी क्यों न हो, भारत तिब्बतियों के लिए अपनी मातृ भूमि से भी बढ़कर है। महामहिम दलाई लामा कहते हैं कि भारत उनका गुरु देश है। तिब्बतियों की जाम-मान-सम्मान भारत के लिए समर्पित है।
हर भारतीय और भारतीय सेना भी महामहिम दलाई लामा और तिब्बतियों की भावना का आदर करते हुए प्रयास में है तिब्बतियों को उनकी मातृ भूमि पर ससम्मान वापसी हो , वे लोग भी अपनी मातृ भूमि की आजाद फिजाओं में सांस ले सकें। पटोला पैलेस में महामहिम दलाई लामा की पुनः प्रतिस्ठापना हो। तिब्बत की मोनेस्टरियों में फिर से 'ओम मणि पद्मे हुम' के गगन गुंजायमान उच्चारण हो। उन पर किसी कम्युनिस्ट शासन की काली छाया न हो। भारत मां के प्रति तिब्बतियों के समर्णप की एक छठा अभी कुछ दिन पहले लद्दाख में दिखाई दी। जब तिरंगे में लिपटे तेनजिंग नीमा का शव तिरंगे में लिपटा हुआ आया। तेनजिंग नीमा सीमा पर कम्युनिस्ट चीन की आर्मी की बिछाई हुई बारुदी सुरंग की चपेट में आ कर घायल हो गये थे। उन्होंने न केवल जी जान से लड़कर दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए बल्कि लम्बे समय तक मौत से भी लड़ते रहे। आखिरकार, नीमा ने शहादत के परम पद को हासिल किया।
तेनजिंग नीमा की शहादत के बाद ही पहली दुनिया के सामने भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का नाम आया है। इस फोर्स में अधिकांश तिब्बती युवा हैं। जो चीन से अपनी और अपने पुरखों की जमीन वापस लेने के लिए संकल्पवद्ध हैं। तेनजिंग नीमा की शहादत से प्रेरणा लेकर तिब्बती कवि तेनजिन फुंचोक ने लाखों तिब्बतियों के मनोभावों को हिंदी में कागज पर उतारा है। तेनजिंग फुंचोक के ये कागज पर उतारे हुए शब्द केवल शब्द नहीं हर भारत-तिब्बत को समर्पित अनमोल मोती हैं। भारत ने तेनजिंग फुंकचोक के इन शब्दों को सिर-आखों पर रखा है। सोशल मीडिया पर तेनजिंग फुंकचोक ने जैसे ही अपने शब्द रूपी मोतियों को शेयर किया वैसे ही लाखों-लाख ने इसे एक दूसरे को शेयर कर दिया। तेनजिंग फुंकचोक की इस प्रस्तुति से भारत में तिब्बितियों के प्रति सम्मान-सद्भाव और तिब्बत की मुक्ति का संकल्प और मजबूत हो गया है।.
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