‘जल ही जीवन है’; ‘बिन पानी सब सून’। इस तरह की लोकोक्तियां हम हर रोज़ कहीं न कहीं कह-सुन रहे होते हैं।लेकिन,हमें इस बात का अंदाज़ा बिल्कुल नहीं होता कि हम कितने बड़े जल संकट की ओर बढ़ रहे हैं। तभी तो हम अपने आस-पास हर रोज़ नल से निरंतर बहते पानी को देख रहे होते हैं;ज़रूरत से ज़्यादा पानी व्यर्थ का इस्तेमाल कर रहे होते हैं और पानी के साथ हम इस क़दर पेश आते हैं,जै कि वह एक ऐसा संसाधन हो,जिसका मोल कौड़ी का हो। मगर ऐसा नहीं है।पानी का क्या मोल है,इसका अंदाज़ा हम इस बात से लगा सकते हैं कि कहा जाता है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जायेगा।
संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट, 2022 के अनुसार जलधाराओं, झीलों, जलनिकायों और मनुष्य के बनाये जलाशयों से ताज़े जल की निकासी तेज़ी से हो रही है। इससे विश्व भर में पानी को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। बदलती जलवायु प्रवृत्तियों, बार-बार सामने आती प्राकृतिक आपदाओं और महामारियां इस स्थिति को और भी गंभीर बना दे रही है।
भारत की अर्थव्यवस्था 3 ट्रिलियन की है और लक्ष्य 5 ट्रिलियन डॉलर की।ऐसा तभी संभव है,जब प्रगति की रफ़्तार बहुत तेज़ हो। भारत की आबादी दुनिया की जनसंख्या का लगभग 17% है।लेकिन, विश्व के ताज़े जल संसाधनों का सिर्फ़ 4% ही है। ऐसे में यह हमत्वपूर्ण हो जाता है कि पानी का उपोयग विवेक के साथ हो और कुशल जल प्रबंधन इसका एक अचूक उपाय है।
जब किसी समय में पानी की मांग उपलब्ध पानी की मात्रा से अधिक हो जाती है या जब पानी की खराब गुणवत्ता इसके उपयोग को सीमीति कर देती है,तो इस स्थिति को जल तनाव कहा जाता है।जल तनाव के तीन घटक हैं- पानी की उपलब्धता,पानी की गुणवत्ता और पानी की सुलभता।
इस समय भारत दुनिया के भू-जल का सबसे अधिक निकालता है। यह मात्रा विश्व के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े पानी निकालने वाले देश चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के संयुक्त मात्रा से कहीं ज़्यादा है।यद्यपि भारत में निकाले गये भू-जल का केवल 8% ही पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता है; 80% भाग सिंचाई में उपयोग किया जाता है और बाक़ी 12% का उपयोग उद्योगों में किया जाता है।
नीति आयोग (NITI Aayog) ने भारत में आ रहे जल संकट के बारे में चेताते हुए कहा है कि देश के 600 मिलियन से ज़्यादा लोग पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं।अनुमान है कि साल 2030 तक देश की पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति के मुक़ाबले दोगुनी हो जायेगी।
भारत में बहुत तेज़ी से शहरीकरण हो रहा है। बड़ी संख्या में ग्रामीण शहरों की तरफ़ जा रहे हैं।ऐसे में शहरों में पानी के उपयोग और मांग में ज़बरदस्त रूप से बढ़ोत्तरी हो रही है। इस मांग का दबाव गांवों पर पड़ने लगा है।,क्योंकि ग्रामीण जल निकायों से शहरी क्षेत्रों में पानी को स्थानांतरित किया जा रहा है।शहर में गांव के पानी को स्थानांतरित किए जाने से ग्रामीणों में शहरी लोगों के प्रति शत्रुताभाव आ सकता है और इससे गांवों और शहरों के बीच का संघर्ष पैदा हो सकता है।अगर जल प्रबंधन ठीक से नहीं किया गया,तो पानी की कमी का खाद्य उत्पादन पर असर पड़ सकता है और इससे खाद्य असुरक्षा पैदा हो सकती है। इससे सामाजिक तनाव बढ़ा सकता है।
पानी के साथ अन्य समस्या जल प्रदूषण की है। घरेलू, औद्योगिक और खनन अपशिष्टों की बड़ी मात्रा जल निकायों में बहा दी जाती है।इससे इस प्रदूषित पानी से रोग पैदा हो सकते हैं। प्रदूषित पानी से पारिस्थितिक तंत्र पर भी गंभीर असर पड़ता है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड के हालिया आंकड़े बताते हैं कि भारत के 700 ज़िलों में से 256 ज़िलों में भू-जल का अत्यधिक दोहन किया गया है।इससे कुएं, पोखर, तालाब आदि सूख रहे हैं। लिहाज़ा जल संकट गहराता जा रहा है।
ऐसा अकारण नहीं है कि हाल में प्रधानमंत्री ने श्री अनाज योजना शुरू की है।इस योजना में मोटे अनाज उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। जहां-जहां पानी का अभाव है,वहां-वहां दलहन, तिलहन और बाजरा जैसे मोटे अनाज उगाये जा सकते हैं।
पानी कितना महत्वपूर्ण है,यह इसी बात से समझा जा सकता है कि ऋग्वेद का 10/75 सूक्त ‘नदी सूक्त’ है। इसमें एक साथ अनेक नदियों का उल्लेख :
इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परुष्णया
असिक्न्या मरूद्ष्टधे वितस्तयाSSर्जिकीये शणुह्या सुषोमाया।।
इस में जिन नदियों का उल्लेख है, वे हैं- गंगा, यमुना, सरस्वती, शतुद्रि, परुष्णी, असिक्नी, मरुद्वृषा (चेनाव की एक सहायक नदी), वितस्ता, आर्जिकीया, सुषोमा। नदी सूक्त के ही अगले मंत्र में (10.75.6) सिन्धु की पश्चिमी सहायक नदियों का उल्लेख है-
तृष्टामया प्रथमं यातवे सजूः सुसर्त्वा रसया प्रवेत्या त्या।त्वं सिन्धो कुमया गोमतीं क्रुमुं मेहल्वा सरथं यामिरीयसे।।
अर्थात् तुष्टामा, सुसर्तु, रसा, श्वेती, कुभा, गोमती, क्रुमु, मैहलू। इन नदियों के अतिरिक्त सुवास्तु, सरयू, विदारा, आपया, दुषद्वती सदानीरा, अंशुमती। अथर्ववेद और ऋग्वेद में 90 और 99 नदियों का उल्लेख है। ऋग्वेद से यह जानकारी मिलती है कि सप्त सिंधुओं में मिलने वाली छोटी-छोटी पहाड़ी नदियां भी हैं। अथर्ववेद और ऋग्वेद में इनको ‘नाव्याः’ अर्थात् नौका से तरण योग्य बताया है।यानी कि पानी नहीं तो सभ्यता नहीं;पानी नहीं तो जीवन नहीं। यही कारण है कि “जल ही जीवन है” और “बिन पानी सब सून” जैसी लोकोक्तियां पानी की अहमियत के लिहाज़ से हमारे जीवन में रची-बसी हैं।
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