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UP Panchayat Election: योगी के भविष्य को लॉक करेंगे यूपी के पंचायत चुनाव नतीजे, इन पर क्यों लगी हैं देश भर की निगाहें- देखें रिपोर्ट

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जिन चुनावों में राजनीतिक दल सक्रिए हो कर प्रत्याशियों को चुनाव नहीं लड़ाया, प्रत्याशियों को अपना चुनाव चिह्न नहीं दिया, प्रत्याशियों का प्रचार नहीं किया वही चुनाव सभी दलों की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है, उसी चुनाव को यूपी की सत्ता का सेमिफाइनल कहा जा रहा है?जी हां, हम चर्चा कर रहे हैं त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की। यूपी के पंचायत चुनाव वास्तव में सत्ता का सेमिफाइनल हैं। क्यों कि जिस पार्टी के जितने समर्थक ग्राम प्रधान जीत कर आएंगे उस पार्टी का गांवों में उतना ही ज्यादा वोट आधार होगा।</p>
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इसीलिए अब सबकी निगाहें 2 मई को होने वाली मतगणना पर देर शाम तक लगभग साफ हो जाएगा कि गांवों में किसकी सरकार है। यूं तो किसानों के खाते में सीधे रकम पहुंचने से किसानों का रुख बीजेपी की ओर है लेकिन ये रुख संसदीय चुनावों में बीजेपी को लाभ पहुंचाता है। गांवों के स्तर पर हवा का रुख कल (2 मई) को ही स्पष्ट होगा।</p>
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ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष पर जो पार्टी अपना कब्जा जमाएगी वही आगामी चुनाव में अपना वर्चस्व कायम रख पाएगी।</p>
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उप्र में पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े गए हैं। बावजूद इसके सियासी दलों ने पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव 2022का सेमीफाइनल मानते हुए एड़ी चोटी का जोर लगाया। आरक्षण को लेकर पहले हाईकोर्ट और फिर कोविड काल में चुनाव स्थगित करने से लेकर मतगणना रोकने तक के लिए उच्चतम न्यायालय कानूनी लड़ाई लड़ी गयी। हर जगह सत्ताधारी बीजेपी ने जोरदार पैरवी की। तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों और कोरोना संक्रमण के बीच चुनाव हुए। और अंतत: 2मई को ही नतीजे घोषित करने का निर्णय शीर्ष कोर्ट ने सुनाया।</p>
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गांव की सरकार बनाने के लिए सत्ताधारी दल भाजपा ने परोक्ष तौर पर पूरी ताकत झोंकी ही मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस के अलावा यूपी में अपना दमखम आजमाने के लिए चुनाव को मजबूती से लड़ा।</p>
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यूपी में कुल 58176ग्राम पंचायतें हैं। यानी इतने ही ग्राम प्रधान चुने जाएंगे। 7लाख 32हजार 845ग्राम पंचायत सदस्यों के लिए वोट डाले गए गए हैं। 3,051सदस्य क्षेत्र पंचायत के अलावा 826ब्लाक प्रमुख चुने जाएंगे। बाद में 75जिला पंचायत अध्यक्षों का चुनाव होगा। हालांकि, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होगा। इस चुनाव में कुल 12करोड़ 43लाख से ज्यादा मतदाता थे। उप्र में जिला पंचायत अध्यक्ष की हैसियत एक विधायक से कहीं ज्यादा होती है। इसी तरह ब्लॉक प्रमुख और ग्राम प्रधान भी पहले की तुलना में ज्यादा ताकतवर हैं। जनमत बनाने में इनकी बड़ी भूमिका होती है। इसीलिए हर पार्टी अपने-अपने ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष जिताना चाहती हैं।</p>
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पंचायत के चुनाव को जीतने के लिए बीजेपी ने तो बाकायदा लखनऊ में पार्टी दफ्तर में एक वॉर रूम बनाया था। पार्टी ने जिलेवार बैठकें कीं। मंत्रियों के साथ ग्राम चौपाल लगायीं। विधायक, सांसद भी गांव-गांव गए। समाजवादी पार्टी ने कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर के जरिए कार्यकर्ताओं में जोश भरा। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव तो खुद कई कार्यक्रमों में गए। पंचायत चुनाव को लेकर बीएसपी प्रमुख मायावती भी पहली बार काफी संजीदा दिखीं। दिल्ली से लखनऊ आकर उन्होंने लगातार मंडल स्तर पर बैठकें कीं। सेक्टर प्रभारियों ने जिला पंचायत सदस्य पद के उम्मीदवारों के नाम फाइनल किए। 32साल से यूपी की सत्ता से बाहर कांग्रेस ने पहली बार न्याय पंचायत स्तर तक अपनी कमेटी बनाई और पूरे प्रदेश में इसके लिए संगठन सृजन अभियान चलाया गया। इन दलों के अलावा प्रसपा, अपना दल और सुभासपा के अलावा हो या ओवैसी की एआईएमएईएम ने भी खूब मेहनत की।</p>
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अब इन सब की मेहनत का परिणाम आने वाला है। शनिवार तक सारे रहस्य खुल जाएंगे। पता चल जाएगा कि कोरोना काल में हुए चुनाव में सत्ता किसके हाथ में जा रही है।</p>

Rajeev Sharma

Rajeev Sharma, writes on National-International issues, Radicalization, Pakistan-China & Indian Socio- Politics.

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