विज्ञान

अब मेड इन इंडिया का कमाल, वायु सेना को मिलेंगे अत्याधुनिक रडार और वार्रिनिंग रिसीवर

रक्षा मामलों में ‘आत्मनिर्भरता’ हासिल करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण छलांग लगाते हुए रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायु सेना (आईएएफ़) की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के साथ 3700 करोड़ रुपये से अधिक के दो बड़े अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए हैं।
जहां पहला अनुबंध भारतीय वायुसेना के लिए मीडियम पावर रडार (एमपीआर) ‘अरुधरा’ की आपूर्ति से सम्बन्धित है, वहीं दूसरा लगभग 950 करोड़ रुपये की कुल लागत पर 129 डीआर-118 रडार चेतावनी रिसीवर (आरडब्ल्यूआर) से सम्बन्धित है।
DR-118 रडार वार्निंग रिसीवर (RWR) Su-30 MKI विमान की इलेक्ट्रॉनिक वारफ़ेयर (EW) क्षमताओं में काफ़ी वृद्धि करेगा।
ख़रीद {भारतीय-आईडीएमएम (स्वदेशी रूप से डिजाइन विकसित और निर्मित)} श्रेणी के तहत दोनों परियोजनायें वायु सेना की निगरानी, चिह्नित करने, ट्रैकिंग और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं को बढ़ायेंगी।
वे अनिवार्य रूप से ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना को भी साकार करते हैं और रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए देश की यात्रा को आगे बढ़ाने में मददगार होंगे।
मीडियम पावर रडार अरुध्र को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और विकसित किया गया है और इसका निर्माण BEL द्वारा किया जायेगा। इसका सफल परीक्षण भारतीय वायुसेना पहले ही कर चुकी है।
यह एक 4डी मल्टी-फ़ंक्शन फ़ेज्ड ऐरे रडार है, जिसमें दिगंश और ऊंचाई दोनों में इलेक्ट्रॉनिक स्टीयरिंग है, जो हवाई लक्ष्यों की निगरानी, पता लगाने और ट्रैकिंग के लिए है। इस प्रणाली में एक साथ स्थित पहचान मित्र या शत्रु प्रणाली से पूछताछ के आधार पर लक्ष्य की पहचान होगी।
यह परियोजना औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र में विनिर्माण क्षमता के विकास के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगी।
अधिकांश सब-एसेंबल और पुर्जों को स्वदेशी निर्माताओं से प्राप्त किया जाएगा। यह परियोजना एमएसएमई सहित भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स और संबद्ध उद्योगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देगी और प्रोत्साहित करेगी। यह साढ़े तीन साल की अवधि में दो लाख से अधिक मानव-दिवस का रोज़गार भी सृजित करेगा।

आईएन ब्यूरो

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