विज्ञान

भारत पर मंडराया बड़ा संकट! पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसेंगे भारत के करोड़ों लोग

Himalayan Glaciers Ice India: एशिया में जलसंकट को लेकर हाल ही में आई एक रिपोर्ट ने डरा दिया है। इसमें कहा गया है कि एशिया के 2 अरब लोग पानी के लिए तरस सकते हैं। दरअसल, इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने इस बात की चेतावनी दी है कि हिंदू कुश से लेकर हिमालय तक का ग्लेशियर तेजी से कम होते जा रहा है। यही नहीं मौजूदा हालात में दुनिया की सबसे ऊंची चोटियां हिंदू कुश और हिमालय के ग्लेशियर साल 2100 तक अपनी वर्तमान मात्रा का 80% तक घट जाने का ख़तरा झेल रही हैं। काराकोरम रेंज ने भी साल 2010-2019 के बीच ग्लेशियर के द्रव्यमान में गिरावट दिखाई है, जो 0.09 मीटर प्रति वर्ष की औसत गिरावट है। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर ऐसा हुआ तो इस पर निर्भर दो अरब लोगों के जीवन अमूल चूल रूप से बदल जाएगा। इसके गंभीर नतीजे सामने आयेंगे।

इस काम के लिये वैज्ञानिकों ने पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर भारत और पूर्व में म्यांमार तक 1.6 मिलियन वर्ग मील (4.1 मिलियन वर्ग किलोमीटर) तक फैले क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की जांच की है। रिपोर्ट में पाया गया कि हिंदू कुश और हिमालय पर्वत श्रृंखला क्षेत्र में ग्लेशियर, पिछले दशक की तुलना में 2010 के दशक में 65% तेजी से पिघला है जो ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रहे धरती के तापमान के असर को दर्शाता है।

पानी की कमी: हिंदूकुश और हिमालय के पहाड़ों में मौजूद हिमपात और बर्फ, एशिया के 2 अरब लोगों को ताजा पानी उपलब्ध कराती है। जलवायु परिवर्तन की वजह से अभूतपूर्व दर से ग्लेशियरों के लुप्त होने के मद्देनज़र, वैज्ञानिकों ने बदलते क्रायोस्फीयर के क्षेत्रों से लोगों और प्रकृति के लिए विनाशकारी परिणामों की चेतावनी दी है। हिमालय से ही भारत में गंगा, सिंधु समेत कई नदियों को पानी मिलता है। इसी से उत्‍तराखंड, उत्‍तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, बांग्‍लादेश के करोड़ों लोगों को पानी मिलता है।

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रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इस क्षेत्र में हिमपात और बर्फ से 12 नदियां जल प्राप्त करती हैं जो चीन, भारत और पाकिस्तान सहित 16 देशों में दो अरब लोगों को ताजा पानी उपलब्ध कराती हैं। इसके कम होते जाने से पानी की भारी किल्‍लत होगी। लोगों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। इसी समूह ने 2019 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें पाया गया था कि जहां औसत ग्लोबल वार्मिंग पूर्व-औद्योगिक तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक सीमित थी, उस क्षेत्र में भी अपने ग्लेशियरों का कम से कम एक तिहाई हिस्सा खो देगा।

लोगों को बचाने के लिए तत्‍काल ऐक्‍शन ले

इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डेवलपमेंट, बांग्लादेश के निदेशक और सीओपी28 के सलाहकार बोर्ड में शामिल प्रोफेसर सलीम उल हक ने जलवायु परिवर्तन को लेकर आगाह किया है। उन्‍होंने कहा कि इस रिपोर्ट से पता चलता है कि हिंदू कुश हिमालय ग्लेशियर विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं। इस क्षेत्र और इसके लोगों की रक्षा के लिए अभी कार्रवाई करनी चाहिए।

आईएन ब्यूरो

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