बच्चों के रूप में हम सभी कुछ न कुछ सपने ज़रूर देखते हैं, लेकिन बहुत कम लोग होते हैं,जो अपने सपने को साकार कर पाते हैं। डॉ. बिनीश देसाई उर्फ़ द रीसायकल मैन ऑफ इंडिया ने अपनी कड़ी मेहनत, धैर्य और नवीन विचारों से इसे संभव कर दिखाया और कचरे को धन में बदल दिया।
asia.nikkei.com की रिपोर्ट के अनुसार, 29 वर्षीय यह सामाजिक उद्यमी इको इक्लेक्टिक टेक इमारतों और संरचनाओं के निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री बनाने के लिए औद्योगिक कचरे का उपयोग करते हैं। औद्योगिक अपशिष्ट रिसाइक्लिंग में विशेषज्ञता रखने वाले सूरत, गुजरात के इस नवप्रवर्तक के पास पर्यावरण इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री और पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी में मानद पीएचडी है।
अमेरिकी टेलीविज़न श्रृंखला “कैप्टन प्लैनेट एंड द प्लैनेटियर्स” को देखकर देसाई में न केवल पर्यावरण और इस ग्रह को बचाने की महत्वाकांक्षा पैदा हुई थी, बल्कि इसके बारे में कुछ ठोस करने की भी इच्छा हुई। जिज्ञासु, रचनात्मक और सीखने की इच्छा रखने वाले देसाई की पहली मशीन ने रसोई में उस वाष्प को पानी में बदल दिया, जिसका उपयोग बागवानी के लिए किया जाता था।
कचरे को बिल्डिंग ब्लॉक्स में बदलने का विचार तब आया, जब वह महज़ 11 साल के थे। अपनी पतलून की जेब में एक काग़ज़ में लिपटी च्युइंग गम भूल जाने के बाद, उन्होंने कुछ दिनों बाद इसे एक कठोर ठोस ब्लॉक के रूप में पाया। लाइफ़ बियॉन्ड नंबर्स से बात करते हुए उन्होंने कहा: “इससे मुझे उन्नत ईंट 1.0 के साथ आने का विचार आया। 2010 में 16 साल की उम्र में मैंने अपनी फ़र्म, Eco-Eclectic Tech Group की स्थापना की।”
ग़रीबी से जूझ रहे लोगों के लिए बदहाल आवासों से द्रवित होकर उन्होंने विभिन्न सामग्रियों जैसे गेहूं का आटा और पेपर मिल के कचरे और गोंद को उत्पादित टिकाऊ सामग्रियों में मिलाने का प्रयोग किया। आज उन्नत संस्करण की ईंट रद्दी काग़ज़ और बाइंडरों से बनायी जाती है। इसके अलावा, इस्तेमाल किए गए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण और सर्जिकल मास्क हर जगह बिखरे हुए पाए गए, उन्होंने उन्हें भी जोड़ा। आज यह कुल घटकों का 52 प्रतिशत है।
ये ईंटें पारंपरिक लाल ईंटों से तीन गुना ज़्यादा मज़बूत हैं। इसके अलावा, वे हल्के, फिर से उपयोग में आने वाले हैं और अच्छी तरह से प्लास्टर किए जा सकते हैं, जबकि इसकी क़ीमत मानक ईंटों से आधी है।
ईंटों का निर्माण पर्यावरण के अनुकूल होने के अलावा ग्रामीण महिलाओं को रोज़गार भी प्रदान करता है, जिससे वे सशक्त होती हैं। इनमें से सैकड़ों गांवों की वंचित तबकों की महिलाएं ईंटें बनाने के काम में लगी हुई हैं।
पिछले साल 5 जून को मनाए गए विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर NH Studioz ने इस प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पर एक बायोपिक की घोषणा की। इसके बारे में बात करते हुए स्टूडियोज़ के श्रेयांस हिरावत ने कहा कि यह फ़िल्म नई पीढ़ी को प्रेरित करने के उद्देश्य से ग्रह को बचाने के लिए एक आदमी की यात्रा के बारे में है कि कैसे वे अपनी छोटी उम्र के बावजूद बिना किसी साधन के और दूरस्थ स्थान से अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।
पर्यावरण के बारे में जागरूकता फैलाने की कोशिश करते हुए बायोपिक को शून्य कार्बन उत्सर्जन के साथ शूट किया जाएगा। देसाई ने खुद सेट पर नो वेस्ट पॉलिसी का पालन करते हुए इसके उपाय कर रखे हैं।
देसाई भारत को एक ऐसे शून्य-अपशिष्ट प्रौद्योगिकियों के एक अग्रणी समाधान प्रदाता के रूप में उभरने के लिए उत्सुक हैं, जो स्थानीय स्तर पर सिर्फ़ बनाई ही नहीं जाती,बल्कि विश्व स्तर पर बेची भी जाती हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में उन्हें उद्धृत करते हुए उल्लेख किया गया है: “भारत में हमारी संस्कृति में रिसाइक्लिंग और रियूज़ है और, हमारी मातायें सबसे बड़ी पुनर्चक्रणकर्ता,यानी रिसाइक्लर हैं। तो आइए, हम अपनी जड़ों से प्रेरित हों और कुछ नया करें।
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