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Tokyo में छाए भारतीय Hockey Team के इस खिलाड़ी को हॉकी से पहले पसंद था ये गेम- बचपन में ही छोड़ दिया था घर

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भारतीय मेंस हॉकी टीम ने टोक्यो में पोडियम फिनिश किया है। भारतीय टीम ने जर्मनी के खिलाफ अपना ब्रॉन्ज मेडल मैच जीत लिया है। इस बड़े मुकाबले में भारत ने जर्मनी को 5-4 से हराया। जर्मनी की टीम साल 2008 के बाद पहली बार हॉकी में ओलिंपिक मेडल जीतने से चूक गई। भारतीय गोलपोस्ट की दीवार बनकर डटे रहे पीआर श्रीजेश के बारे में कम ही लोग जानते हैं कि उनके सफर में काफी उतार चढ़ाव रहा है, यहां तक उन्होंने पैसों की वजह से काफी परेशानी उठाई है।</p>
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पीआर श्रीजेश के खेल के बारे में बात करे तो, भारतीय टीम के अनुभवी खिलाड़ी होने के साथ-साथ टीम की कप्तानी भी कर चुके हैं। लगभग 13 साल के करियर में उन्होंने न सिर्फ टीम को बड़ी जीत दिलाई है बल्कि खुद को एक शानदार गोलकीपर के तौर भी साबित किया है। वह साल 2014 के एशियन गेम्स की गोल्ड मेडलिस्ट और साल 2014 के कॉमनवेल्थ की सिल्वर मेडलिस्ट टीम का हिस्सा रहे हैं। इतनी उपलब्धियां हासिल करने के बाद भी उन्होंने काफी परेशानियों का समाना किया हालांकि, वह डटे रहे और हिम्मत नहीं हारें।</p>
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<strong>एथलेटिक्स और वॉलीबॉल में थी दिलचस्पी</strong></p>
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एक किसान परिवार में जन्मे श्रीजेश शुरुआत में पहले हॉकी की जगह एथलेटिक्स में दिलचस्पी रखते थे। उन्होंने वॉलीबॉल भी खेला, जिले स्तर पर शानदार खेल के कारण उन्हें तिरुवनंतपुरम के स्पोर्ट्स सेंट्रिक स्कूल में पढ़ने का मौका मिला। यह स्कूल उनके गांव से 200 किमी था। 12 साल की उम्र में अपने परिवार से घर से दूर रहना उनके लिए आसान फैसला नहीं था। श्रीजेश इसी स्कूल में हॉकी खेलना शुरू किया और कोच के कहने पर गोलकीपिंग शुरू की। फिर हरेंद्र सिंह की नजर में आए।</p>
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<strong>अच्छे किट के लिए पिता के पास नहीं थे पैसे</strong></p>
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2013 में दिल्ली में हुए जूनियर कैंप के लिए हरेंद्र सिंह ने श्रीजेश का चयन किया। इस चयन के बाद उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। उन्हें हिंदी बोलनी नहीं आती थी जिसके कारण टीम के बाकी खिलाड़ी उन्हें खुद से अलग ही रखते थे। उनका जब दिल्ली के लिए चयन हुआ तो उनके पिता ने किसी तरह से 15 हजार रुपए का इंतजाम कर उन्हें गोलकीपर की किट दिलाई। लेकिन ये किट काफी आम थी, जिसकी वजह से ट्रेनिंग के दौरान बाकी के बच्चे उनका मजाक उड़ाते थे। प्रैक्टिस के दौरान वह जानबूझकर उनके शरीर पर अटैक किया करते थे। इसी वजह से श्रीजेश अकसर दर्द में रहते थे। हालांकि, इन सबा का असर उनके खेल पर कभी नहीं पड़ा। और उन्होंने अपने दम पर पहले जूनियर और फिर सीनियर टीम में डेब्यू किया था।</p>
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अब तक करीब 240 मैचे खेल चुके श्रीजेश के लिए सबसे यादगार पल 2014 का एशियन गेम्स रहा जहां टीम को गोल्ड दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही थी। पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल मैच में उन्होंने दो पेनल्टी गोल सेव किए थे।</p>
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आईएन ब्यूरो

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