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India का Ronaldo: उत्तराखण्ड के दुर्गम इलाके में छुपा टैलेंट! पहाड़ काट कर खुद बनाया मैदान, CM पुष्कर धामी भी हैरान

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चाहे कोई क्रिकेटर हो या फिर फुटबॉलर या फिर कोई अन्य खिलाड़ी। हर कोई तपती हुई भट्टी में खुद को तपाया होता है। इसके पीछे सालों की मेहनत होती है। हर खिलाड़ियों की अपनी अलग-अलग कहानी होती है। शायद ही कोई ऐसा खिलाड़ी हो जिसका शुरुआत गरीबी में न बीता हो। लेकिन, वो अपने मुकाम को हासिल करने के लिए न तो दिन देखते हैं और ना ही रात। उन्हें सिर्फ अपने गोल नजर आता है जिसके लिए वो अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। अब दुनिया के सबसे मशहूर फुटबॉलर रोनाल्डो को ही ले लें। इनका भी बचपन बेहद ही गरीबी में बीता है। बेकहम हो या मेसी हर किसी ने तपती धूप से लेकर कड़क़डाती ठंड और बारिश में भी अपने सपने को साकार करना नहीं छोड़ा। अज भारत में भी एक ऐसा खिलाड़ी है जो इन फुटबॉलरों की याद दिलाता है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें उत्तराखंड के मुनस्यारी के एक दूरदराज के गांव में 15 साल का जड़का जब गोल ठोकता है तो राज्य के मुख्यमंत्री भी उसकी तारीफ करने से नहीं थकते।</p>
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उत्तराखंड के मुनस्यारी के एक दूरदराज के गांव के साढ़े 15 साल के लड़के हेमराज जोहरी जिस तरह से गोल कर रहे हैं वो बिल्कुल रोनाल्डो, बेकहम और मेसी की याद दिलाते हैं। कॉर्नर किक से गेंद गोलकीपर को छकाती हुई सीधे गोलपोस्ट के अंदर नेट में झूल जाती है। अब हेमराज 'उत्तराखंड के रोनाल्डो' के नाम से वायरल हैं। लेकिन इस अविश्वनसीय गोल के दूसरी तरफ संघर्ष का एक लंबा सफर भी है। जिसे हेमराज ने जिया है और जी रहे हैं। यह सफर उस सीमांत गांव से शुरू होता है, जहां हेमराज रहते हैं। जहां आज तक सड़क नहीं पहुंची है। जहां फुटबॉल के मैदान की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। लेकिन यकीन मानिए यह गोल मुनस्यारी से करीब 22 किलोमीटर दूर गांधी नगर के उसी दुर्गम गांव से निकला है।</p>
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वायरल हो रहे गोल के बाद नवभारत टाइम्स की टीम ने हेमराज से बात की। इस गोल को कर पाने के पीछे उनके जीवट और संघर्ष की वह कहानी जानी, जो शायद आप तक पहुंची हो। बातों-बातों में इस खुशमिजाज लड़के ने इसे बताया। लेकिन गर्व के साथ। पिता टेलरिंग का काम करते हैं। हेमराज की चार बहनें हैं। पूरी जिम्मेदारी पिता पर ही है। वजन घटाने के लिए दुनिया परेशान है, लेकिन हेमराज जब घर लौटते हैं, तो जरूरी डाइट पर मन मार जाते हैं। पिता की जेब इसकी इजाजत नहीं देती। मुनस्यारी में अपने गांव से देहरादून के स्पोर्ट्स कॉलेज के लिए निकलते हैं, तो एकबारगी सोचते हैं। क्योंकि किराए के लिए पिता को उधार कर पैसों का जुगाड़ करना पड़ जाता है। उत्तराखंड के सीमांत इलाके के इस उभरते हुए फुटबॉलर के इंटरव्यू के कुछ हिस्से हम ज्यों के त्यों यहां रख दे रहे हैं। आप उन्हें पढ़ेंगे तो समझ जाएंगे कि जिस राज्य में फुटबॉल स्टेट गेम है, वहां चार बार नैशनल खेल चुके हेमराज जैसे हीरे किन हालातों में चमकते हैं…</p>
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उत्तराखण्ड राज्य में युवा प्रतिभा की कोई कमी नही है, सीमांत क्षेत्र मुनस्यारी के हेमराज जौहरी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। राज्य सरकार नई खेल नीति के माध्यम से ऐसे प्रतिभावान युवाओं को उचित मंच प्रदान करने का कार्य कर रही है। हेमराज को उज्ज्वल भविष्य हेतु ढेरों शुभकामनाएं। <a href="https://t.co/G4W9k4Ubyo">pic.twitter.com/G4W9k4Ubyo</a></p>
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) <a href="https://twitter.com/pushkardhami/status/1534924958677311488?ref_src=twsrc%5Etfw">June 9, 2022</a></blockquote>
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<strong>क्या आपको अंदाजा था कि कॉर्नर किक से बॉल गोलकीपर को छकाती हुई सीधे गोलपोस्ट में समा जाएगी?</strong></p>
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हेमराजः हां, मुझे पता था कि गोल हो जाएगा, क्योंकि कीपर आगे आ गया था। मेरे और प्लेयर पीछे थे। मैंने सोचा कि मैं कर्व मारूंगा और सेकेंड बार पर गेंद जाएगी।</p>
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<strong>इस मैच का नतीजा क्या रहा?</strong></p>
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हेमराजः यह मैच हमारी टीम ने 9-0 से जीता। मैंने इसमें अकेले पांच गोल किए थे।</p>
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<strong>उत्तराखंड में तो सीढ़ीदार खेत हैं, फिर फुटबॉल का शौक कहां से लगा?</strong></p>
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हेमराज: मेरे गांव तक न तो रोड है। ना ही कोई ग्राउंड है। मैं जब 11 साल का था, तो पहली बार मुनस्यारी आया। मैंने यहां बच्चों को खेलते हुए देखा। मैं जब पहली बार ग्राउंड में उतरा तो मेरे पास जूते-वूते भी नहीं थे। मैंने नंगे पैर खेलना स्टार्ट कर दिया। फिर बाद मैं मैंने मुनस्यारी बॉयज नाम के क्लब को जॉइन किया। उन्होने मुझे फुटबॉल शूज वगैरह दिए और फिर मैंने खेलना स्टार्ट किया। …मेरा पापा का सपना है कि मैं इंटरनैशनल फुटबॉलर बनूं। हमारे पास इतने पैसे तो नहीं हैं कि हम आगे खेल पाएं।</p>
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<strong>आपको किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?</strong></p>
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हेमराजः डाइट को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। जब मैं घर आता हूं तो खाने को इतना नहीं होता कि डाइट पर अच्छे से ध्यान दे पाऊं मैं। खाने के लिए कम ही होता है। हॉस्टल में तो ठीक ही होता है, जब कॉलेज जाता हूं मैं। जब घर में आता हूं तो खाने के लिए थोड़ा कम ही रहता है। पैसे इतने हैं नहीं पापा के पास की जो चिकन-विकन खिला पाएं। बस डाइट थोड़ी कम हो जाती है।</p>
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<strong>अपने परिवार के बारे में बताइए? गुजारा कैसे चलता है?</strong></p>
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हेमराज: परिवार में मेरी चार बहनें हैं। एक मैं भाई हूं। पापा जब कमाते हैं, परिवार तभी चल पाता है। वैसे नहीं चल पाता इतना। कभी-कभी पैसे इतने होते हैं कि मतलब सीमित होते हैं। कभी-कभी देहरादून जाने के लिए पैसे नहीं होते मेरे पास। तो उधार करके मांगते हैं पापा, तब देते हैं।</p>
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<strong>आपके सपने क्या हैं?</strong></p>
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हेमराजः मेरा सपना है कि मैं अच्छे लेवल पर खेलूं। इंटरनैशनल लेवल पर खेलूं। मेरे पापा का भी सपना है कि मैं इंटरनैशनल लेवल पर खेलूं।</p>
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<strong>आपको फुटबॉल की कोचिंग कहां से मिली?</strong></p>
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हेमराजः मैं अपने गांव में था, तो मैं खेतों में खेला करता था। सीढ़ी वाले खेत हुआ करते थे। मैंने पैसे इकट्ठे करके एक बॉल खरीदी थी। मैंने खुद एक ग्राउंड बनाया था और खुद खेलना स्टार्ट कर दिया था।</p>
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<strong>क्या खेत में फुटबॉल खेलने थे! तो डांट नहीं पड़ती थी?</strong></p>
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हेमराजःएक खाली जमीन थी। पहाड़ों वाला इलाका था। वहां ढलान थी। मैंने खोद-खोदकर एक छोटा सा मैदान बनाया था। वहां मैं अकेले खेला करता था।</p>
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<strong>(साभार नवभारत टाइम्स डॉट कॉम)</strong></p>
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आईएन ब्यूरो

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