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Milkha Singh की ‘फ्लाइंग सिख’ बनने की कहानी, पाक तानाशाह अय्यूब खां ने कहा, ‘मिल्खा आज तुम दौड़े नहीं, उड़े हो’

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दुनिया के महान एथलीट मिल्खा सिंह नहीं रहे। शुक्रवार को उनका चंड़ीगढ़ में निधन हो गया। उन्हें कोरोना हुआ था औऱ वो अस्पताल में भर्ती थे। लोग उन्हें 'फ्लाइंग सिख' कहा करते थे। बेशक, यह नाम उन्हें उनकी रफ्तार की वजह से मिला था लेकिन उन्हें ये नाम पाकिस्तान ने दिया था। 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में मिल्खा सिंह ने गोल्ड मेडल जीता था। यह आजाद भारत का पहला गोल्ड मेडल था। हालांकि इसके बाद 1960 के रोम ओलिंपिक में मिल्खा पदक से चूक गए थे। इस हार का उनके मन में गम था।</p>
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साल 1960 में ही उन्हें पाकिस्तान के इंटरनैशनल ऐथलीट कंपीटीशन में न्योता मिला। मिल्खा के मन में बंटवारे का दर्द था। वह पाकिस्तान जाना नहीं चाहते थे। हालांकि बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पाकिस्तान में उस समय अब्दुल खालिक का जोर था। खालिक वहां के सबसे तेज धावक थे। दोनों के बीच दौड़ हुई। मिल्खा ने खालिक को हरा दिया। पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। मिल्खा की जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने 'फ्लाइंग सिख' का नाम दिया।</p>
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अब्दुल खालिक को हराने के बाद अयूब खान मिल्खा सिंह से कहा था, 'आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं।' इसके बाद ही मिल्खा सिंह को 'द फ्लाइंग सिख' कहा जाने लगा।</p>
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<strong>एशिया में चलता था मिल्खा का सिक्का</strong></p>
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मिल्खा सिंह की पहचान एक ऐसे ऐथलीट के रूप में थी जो बेहद जुनूनी और समर्पित ऐथलीट के रूप में थी। 1958 के तोक्यो एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर में गोल्ड मेडल हासिल किया। मेलबर्न ओलिंपिक में मिल्खा फाइनल इवेंट के लिए क्वॉलिफाइ नहीं कर पाए थे। लेकिन उनमें आगे बढ़ने की तलब थी। उन्होंने अमेरिका के चार्ल्स जेनकिंस से बात की। जेनकिंस 400 मीटर और 4×400 मीटर रिले के गोल्ड मेडलिस्ट थे। उन्होंने जेनकिंस से पूछा कि वह कैसे ट्रेनिंग करते हैं। उनका रूटीन क्या है। जेनकिंस ने बड़ा दिल दिखाते हुए मिल्खा के साथ सारी बातें साझा कीं।</p>
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<strong>एशियन गेम्स में बनाया था नैशनल रिकॉर्ड</strong></p>
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मिल्खा की उम्र तब 27 साल थी। अगले दो साल वह बड़ी शिद्दत के साथ जेनकिंस के रूटीन पर चले। इसका फायदा भी हुआ। मिल्खा ने 1958 के एशियन गेम्स में नैशनल रेकॉर्ड बनाया। मिल्खा सिंह को 400 मीटर की दौड़ बहुत भाती थी। यहां उन्होंने 47 सेकंड में गोल्ड मेडल हासिल किया। सिल्वर मेडल जीतने वाले पाब्लो सोमब्लिंगो से करीब दो सेकंड कम वक्त लिया था मिल्खा सिंह ने।</p>

आईएन ब्यूरो

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