'नारायणी' ने घर डूबाया, अब 'नारायण' से आस

बिहार के उत्तरी हिस्से के करीब 12 जिलों में आई बाढ़ ने कई लोगों की गृहस्थी उजाड़ दी।  नारायणी कही जाने वाली गंडक ने तो गोपालगंज और चंपारण जिले में कहर बरपा दिया है। लोगों की बसी-बसायी गृहस्थी उजड़ गई है,अब इन्हें भगवान (नारायण) पर भरोसा है। जबकि बिहार का शोक कही जाने वाली नदी कोसी इस साल अब तक अपने रौद्र रूप में नहीं आई है।

लोगों के घर में पानी में डूब गए हैं और नारायणी की तेज धार में लोगों के चप्पल, झोले, लिपस्टिक के डब्बे, बच्चों के कपड़े तथा कई खाली डब्बे बह रहे हैं। लोग-बाग अपने घर को छोड़ शिविरों में जाना तो नहीं चाहते थे, लेकिन अपनी जिंदगी बचाने के लिए उन्हें उंचे स्थानों या सरकार द्वारा बनाए गए राहत शिविरों में पनाह लेना पड़ रहा है।

गोपालगंज के सदर प्रखंड, कुचायकोट, मांझा, बरौली, सिधवलिया, बैकुंठपुर प्रखंड में गंडक का पानी तबाही मचा रहा है। इन प्रखंडों के गांव के लोग पलायन कर गए हैं। अपने घर को छोड़ने का दर्द और अपनों से बिछुड़ने का गम इन लोगों के चेहरे पर साफ झलकता है, लेकिन अब इन्हें 'नारायण' पर भरोसा है।

मानिकपुर उच्च विद्यालय के बाढ़ राहत शिविर में अपनी नन्हीं सी बिटिया को कलेजे से चिपकाए एक गांव की रहने वाली सुषमा कहती हैं कि वे लोग अपना घर नहीं छोड़ना चाहते थे, लेकिन स्थानीय लोग उन्हें यहां ले आए। उनके पति अपने घर को छोड़ना नहीं चाहते थे। वे घर की देखभाल के लिए घर में ही रहना चाहते थे, लेकिन लोगों की जिद के कारण उन्हें भी यहां आना पड़ा।

वे कहती है, "नारायणी ने सबकुछ डूबा दिया अब नारायण पर ही भरोसा है। भगवान ने जन्म दिया है तो खाने की भी व्यवस्था भी वही करेंगे।"

गोपालगंज जिलाधिकारी अरशद अजीज कहते हैं कि जिले के 14 पंचायत पूरी तरह पानी में डूबे हुए हैं, जबकि 37 पंचायत आंशिक रूप से प्रभवित हैं। उन्होंने बताया कि 1़ 78 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई है।

इधर, प्यारेपुर गांव की हालत बहुत खराब है। गांव पूरी तरह पानी में डूबा हैं। लोग सड़कों के किनारे या राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। प्यारेपुर के रहने वाले केश्वर अपने परिवार के साथ सड़क के किनारे तंबू लगाकर अपना जीवन गुजार रहे हैं। वे कहते हैं कि कहीं कोई सरकारी सहायता नहीं है। सामुदायिक रसोई घर खुले हैं, लेकिन बच्चों को तो बराबर खाना चाहिए।

वे कहते हैं, "मेरा तो सबकुछ उजड़ गया है। घर में पानी घुसा और सबकुछ तबाह। कच्चा का मकान था वह भी होगा या नहीं भगवान ही मालिक।"

वे कहते हैं कि आंखों के सामने उनके आशियाने को गंडक में आई बाढ़ ने उजाड़ दिया। शायद कुछ बच जाए जो भविष्य की नींव रखने के काम आए लेकिन अब शायद तिनका भी नहीं बचा होगा।

गोपालगंज के जिलाधिकारी कहते हैं कि बाढ़ प्रभावित इलाकों से 1़ 33 लाख लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है। उन्होंने कहा कि अभी भी बाढ़ प्रभावित इलाके में राहत और बचाव कार्य चल रहा है। जिले में 13 राहत शिविर केंद्र चलाए जा रहे हैं, जिसमें 5100 से ज्यादा लोग रहे रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिले में 112 सामुदायिक रसोईघर चलाए जा रहे हैं।.

राकेश सिंह

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