Hindi News

indianarrative

कट्टरपंथियों का मामला सामने आते ही गेंद केंद्र की ओर उछाल देते हैं CJI

Law Makers and Supreme Court

सासंद- विधायकों (Law Makers) के सामने तो समस्या होती है कि उन्हें चुनाव में जाना होता है लोक लुभावन वादे करने होते हैं और डिप्लोमैटिक बातें करनी होती हैं। मुद्दा मुसलमानों का हो या हिंदुओं का सासंदों (Law Makers) की फितरत हर कोई जानता है लेकिन ज्यूडिशियरी को क्या हो गया है। जब मुसलमानों से संबंधित किसी सामाजित विषय पर फैसला लेना होता है तो गेंद सरकार उन्ही लॉमेकर्स (Law Makers) की ओर उछाल दी जाती है। न्यायालय के फैसले से कोई सहमत हो या न हो लेकिन लॉ मेकर्स (Law Makers) सार्वजनिक तौर पर यह जरूर कहता है कि हम न्यायालय का सम्मान करते हैं। लॉ मेकर्स (Law Makers)  न्यायालय के फैसलों का सार्वजनिक तौर पर सहमति ही जताते हैं। और सम्माननीय न्यायालय क्या करते हैं-  खुली अदालत में लॉमेकर्स  (Law Makers)के फैसले को ‘नाकाम’ बना देते हैं।

ओवैसी, मदनी और तौकीरी

यह बात अलग है कि ओवैसी, मदनी और तौकीरी जैसे लोग न्यायालय के फैसलों से नाराज होते हैं तो उसकी भड़ास सत्ता पक्ष जाहिर है बीजेपी पर निकाल लेते हैं। हां, यहां एक बात और, वो यह कि लॉ मेकर्स (Law Makers) किसी कारखाने में नहीं बनते, ये संसद और विधानसभाओं में बैठे हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधि ही होते हैं। सत्ता पक्ष के हों या विपक्ष के यह सभी मिलकर, सहमति से असहमति से या फिर विसहमती से देश और देश की जनता के लिए कानून बनाते हैं। इन कानूनों से देश की बाकी संस्थाओं की तरह खुद संसद और न्यायपालिक भी बंधी होती है।

आपके परिश्रम-शोध सराहनीय

हम अपनी न्यायापालिका का ह्रदय के अन्तःस्थल से सम्मान करते हैं। हम न्यायापालिका से त्वरित और निष्पक्ष न्याय की अपेक्षा भी रखते हैं। हम यह भी जानते हैं कि किसी भी मुकदमे पर फैसला करने से पहले रातों-रात जाग कर न्यायाधीश फाइलें पढ़ते हैं, सबूत खोजते हैं, सबूतों की सत्यता खोजते हैं, जितना रिसर्च खुद वकील और मुवक्किल नहीं करते उससे कहीं ज्यादा न्यायाधीश रिसर्च भी करते हैं। लेकिन कुछ मुकदमों-याचिकाओं पर तुरंत निर्णय करने की दृढ़ता दिखाने के बजाए न्यायाधीश यूनियन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया की ओर गेंद उछाल कर आगे क्यों बढ़ जाते हैं?

हिंदू हो या मुस्लिम 15 साल की लड़की शादी उचित है क्या

हमारा यह सवाल आजकल की परिस्थितियों से संबंधित है। एक मामले में हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट ने नाबालिग मुस्लिम लड़कियों की शादी के कट्टपंथी फतबे पर मुहर लगा दी। कट्टरपंथी कहते हैं कि उनकी किताब में लिखा है कि जब मुस्लिम लड़की रजस्वला हो जाए तो वो शादी (निकाह) करने के योग्य हो जाती है। दुनिया भर की लड़कियां देशकाल-वातावरण और खान-पान की परिस्थितियों के अनुसार रजस्वला होती हैं। ऐसा नहीं है कि रजस्वला होते ही मुस्लिम लड़कियों की शारीरिक या मानसिक अवस्था खास तौर पर बच्चे पैदा करने योग्य हो जाती है। कुछ कट्टरपंथियों के हिसाब से उनकी किताब में लिखा है कि जैसे ही लड़की रजस्वला हो उसका निकाह कर दो। यहां एक खास बात और वो यह कि वो ‘अपनी मर्जी के मर्द से शादी’ करने योग्य हो जाती है। यहां पर ‘अपनी मर्जी के मर्द से शादी’ एक मुस्लिम बच्चियों के साथ मनोवैज्ञानिक छलावा है। जो अपनी मर्जी से कपड़े नहीं पहन सकतीं वो अपने मर्जी के मर्द से शादी कैसे कर सकती हैं?

14 सौ साल पहले लिखे सफों पर लिखी बातों का कोई सबूत है? 

बहरहाल, सामान्यतः 13 साल से बच्चों में हारमोनल चैंज आते हैं। लड़कों की आवाज भारी होने लगती है। चेहरे और मूछों पर सुनहरे वाल झलकने लगते हैं और लड़कियों को मासिक धर्म शुरु होने लगते हैं। सरकार, साइंस और समाज के जिम्मेदार लोगों ने समझा कि 18 साल के बाद लड़कियों की शारीरिक स्थिति गर्भ धारण के योग्य हो जाती है। चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान। इसलिए लड़की की शादी की उम्र 18 साल तय की गई। लेकिन कट्टरपंथी हैं कि मानने को तैयार ही नहीं है। वो 14 सदी के किस सफे पर अटके हुए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि हरियाणा-पंजाब हाई कोर्ट ने भी 14 सदी के सफे पर लिखी बात को ठीक ठहरा दिया।

बच्चियों के अरमानों का गला मत घोट देना मीलॉर्ड

हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट के इस ‘ज्ञानभरे फैसले’ से एनसीडब्लू हैरान रह गया। उसने नेशलन चाइल्ड राइट्स कमीशन को जगाया। सरकार को जगाया और फिर उच्चतम न्यायालय के सामने इंसाफ का घण्टा बजाया।
एनसीडब्लू ने सर्वोच्च न्यायालय को उन्हीं की बात याद दिलाई कि 18 साल कम उम्र की लड़की के साथ तो उसकी सहमति से किया गया सेक्स भी पोक्सो के अन्तर्गत अपराध है मीलॉर्ड। तो फिर ये 15 साल की मुस्लिम लड़की को शादी की इजाजत कैसे दी जा सकती है। यह तो मुस्लिम बच्चियों के अधिकारों पर हमला है। 14 सौ साल पुराने किसी सफे पर लिखी किसी बात से मुस्लिम बच्चियों के अरमानों का गला कैसे घोटा जा सकता है।

एक संप्रदाय में ‘कट्टरपंथ’ पर सवालों बगलें क्यों झांकी जाती हैं

बेहद संवेदनशील और नागरिक और बाल अधिकारों के हिमायती हमारे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने एनसीडब्लू (पर अहसान करते हुए) उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया। वो चाहते तो  एनसीडब्लू की याचिका को पहली सुनवाई में खारिज  भी कर सकते थे। यह उनका  विशेषाधिकार क्षेत्र है। संभवतछ एनसीडब्लू का जोश थोड़ा ठण्डा पड़ जाए इसलिए केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा है। यह वही उच्चतम न्यायालय है जहां 14 सौ साल पहले किसी सफे पर लिखी हई इबारत को सुधारने में बगलें झांकनी पड़ती हैं लेकिन एनजेएसी एक्ट को एक झटके में नॉनएक्टिव कर दिया जाता है। राम मंदिर जमीन से अवैध कब्जा हटाने में पांच सौ साल लगा दिए, और कृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा ऊपर तक पहुंचे ही नहीं इसके इंतजाम हो रहे हैं। सीएए एनसीआर को लेकर दर्जनों याचिकाएं स्वीकार की गई हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ पर 14 सौ साल पुराने सफों की सच्चाई पर सवाल या तर्क नहीं किए जाते। काशी में विशेश्वर महादेव के तमाम साक्ष्यों के बावजूद पूजा-अभिषेक की इजाजत नहीं दी जारही।

कश्मीरी जनसंहार के सबूत चीख रहे हैं मीलॉर्ड, जख्म रिस रहे हैं

ये कैसा न्याय है कि 14 सौ साल पुराने पुष्ट अपुष्ट सफों पर लिखी-कही-सुनी-सुनाई बातों को किसी भी मामले का आधार मान लिया जाता है और जब कश्मीरी हिंदू-सिख 1989-90 के दंगों के जिंदा सबूत सामने रखते हैं तो उनका दुखड़ा सुनने और उनके जख्मों पर मरहम लगाने के बजाए पुनर्विचार याचिका ही रद्द कर दी जाती है। हे संवेदनशील मीलॉर्ड कश्मीरियों की फाइल के पन्नों पर हिंसा और घृणा की स्याही से लिखी गई इबारत अभी तक जस की तस है। कुछ तो रहम खाईए मीलॉर्ड! कश्मीरी इसी देश के निरीह नागरिक रिफ्यूजियों जैसा जीवन जी हैं। आपके एक फैसले से लाखों लोगों को सदमा लगा है। यह सदमा सदियों तक जारी रहेगा। कश्मीर में हिंसा का नंगा नाच करने वाले खुश हैं। कश्मीरियों का नरसंहार करने और उन्हें अपने ही घरों से बेघर करने वाले जश्न मना रहे हैं।  14 सौ साल पुराने सफो पर लिखी स्याई आपके लिए इतनी ही अहम थी तो कम से कम कश्मीरियों की पुनर्विचार याचिका रद्द न करके कोई लंबी डेट लगा देते। कम से कम एक उम्मीद तो रहती। आपने सारी उम्मीदों को एक झटके में धूल-धूसरित कर दिया।

जब भी बात 14 सौ साल पुराने सफों पर लिखी इबारत के मानने वालों की आती है को मीलॉर्ड आपको किसी खास साक्ष्य-सबूत की जरूरत नहीं होती। काशी के श्रंगार गौरी और विश्वेशवर महादेव के अभिषेक के लिए आपको सबूत चाहिए और जब सबूत दिए जाएं तो कश्मीरी जनसंहार के सबूतों की तरह वो आपके लिए अमान्य होते हैं?

बनारस के विशेश्वर महादेव मंदिर के सारे सबूत मिल गए हैं। ये सबूत 14सौ साल से भी पुराने दस्तावेजी सबूत हैं। इसके बावजूद मस्जिद हटाने और नमाज न पढ़ने का आदेश लिखने में कलम की स्याही सूख रही है। श्रंगार गौरी की पूजा और विश्वेशवर महादेव के अभिषेक पर हिम्मत नहीं दिखा पाए। क्यों कि हम शांत-सहिष्णु बहुसंख्यक हैं। एक समुदाय विशेष की वजह से भारत की  आबादी डेढ़ अरब के पार पहुंचने को तैयार है। वो लोग एक-एक घर में नौ-नौ ढइया पैदा कर रहे हैं उनपर सुप्रीम कोर्ट रोक लगाने के आदेश नहीं दे सकता। अपने ऊपर अंकुश लगाने वाले गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के कानून को रद्द कर सकते है लेकिन अवैध आवादी के सैलाव को रोकने के आदेश जारी नहीं कर सकते। अब तो इस देश के अधिकांश लोगों को ऐसी अनुभूति होने लगी है कि 14 सौ साल पुराने सफे पर लिखी इबारत, पत्थर पर खींची गई लकीर है, जिसे मीलॉर्ड लक्ष्मण रेखा मान बैठे हैं? क्या  इसीलिए समान आचार संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने से पहले 14 सौ साल पुराने सफों पर लिखी पुष्ट-अपुष्ट -कही-सुनी-सुनाई इबारतों संदर्भ-प्रसंग लेना जरूरी है।

आप न्याय के देवता हैं मीलॉर्ड!

14 सौ साल पहले जब वो सफा लिखा गया (जिसकी कोई पुष्टि नहीं, चश्मदीद नहीं केवल हर्फों की शक्ल में जुबानी सबूत हैँ) उससे कई हजार साल पहले हिंदुस्तान में न्याय और मीमांसा लिखी जा चुकी थीं मीलॉर्ड! 72 देशों का एक समूह हुआ करता था, नाम था जम्बूद्वीप था। उस जम्बूदीप में से हिंदुस्तान नाम का अब यह छोटा सा हिस्सा बचा है। योर हाईनेस, सनातनी इंडोनेशिया सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी बाला देश बनचुका है लेकिन उन्होंने अपनी सनातन संस्कृति नहीं छोड़ी है। इंडोनेशिया इस्लामिक रिपब्लिक नहीं है। डेमोक्रेटिक कंट्री है। वहां 15 साल की मुस्लिम बच्ची की शादी जायज नहीं है। मलेशिया में राजतिलक के समय वैदिक ऋचाओं का उच्चारण होता है। बाद में इस्लाम और मुहम्मद की बारी आती है।

कट्टरपंथी 14 सौ साल पुराने सफों को लेकर उछल रहे हैं

योर हाईनेस, भारत में कट्टरपंथी 14 सौ साल पुराने सफों को लेकर उछल रहे हैं। आपके बनाए हुए कानून को रौंद रहे हैं। समय बहुत तेजी से भाग रहा है मीलॉर्ड। अफगानिस्तान, नेफा, श्याम, तिब्बत पाकिस्तान और बांग्लादेश ये हिंदुस्तान के ही टुकड़े हैं योर ऑनर। मीलॉर्ड सिख, बौद्ध जैन में बांट दिया है। अब जातियों में बांटा जा रहा है। भील, कुरील, कोली उधर तो अहीर, गुज्जर इधर राजा थे। सब सनातनी हिंदू राजा, रजबाडे और कबीले थे। एक दूसरे की मदद करते और लेते थे। इतिहास में लिखा है मी लॉर्ड। हम तिजारत भी करते थे। हम सबसे धन संपन्न थे मी लॉर्ड हम कभी धोखेबाज नहीं थे। आपस में लड़ते थे फिर एक हो जाते थे।
आप जानते हीं हैं ने मीलार्ड 14 साल पुराने सफे को लेकर आए तुर्रमखाओं को धूल चटाई थी। खिलजी की जान बख्शी थी। हुमायुं कई साल फरार रहा। इसी बीच उसकी पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया हमने अकबर नाम दे दिया। एक अनपढ़ के हाथ देश की कमान देदी।

हम लगातार बांटे जा रहे हैं, घटाए जा रहे हैं

नतीजा यह हुआ महाराज, हमें लूटने, हमारे पैसे और मेहनत पर पलने वाले वो लोग जो 14 सौ साल पुराने सफे को ही सबकुछ मानते हैं हमें लगातार बांट रहे हैं। पहले जमीन के हिस्सों को बांटा। धर्म के मूल से लोगों को काटा। अब जातियों में बांट रहे हैं। योर हाईनेस, 14 साल पुराने सफे पर 15 साल की लड़की की शादी करने के पीछे एक कारण अपनी आबादी तेजी से बढाना। यहां के संसाधनों पर कब्जा करना। बहुसंख्यकों की जमीन-जायदाद और रोजगार पर कब्जा करना। 14 सौ साल पुराने सफे पर लिखा है (उनके मुताबिक) पूरी दुनिया एक मजहब को मानेगी और न मानने वाला काफिर या कुब्बल-ए-कत्ल होगा।

 एनसीडब्लू की याचिका एक्स्पीडाइट हो सकती है क्या

मीलॉर्ड, याचना है,  एनसीडब्लू की याचिका को एक्स्पीडाइट कराने का प्रयास करें। सरकार के जवाब पर ही न छोड़ें- स्वविवेक का इस्तेमाल करें। 14 सौ साल पुराने सफे लिखी चीजों को आज की रोशनी में पढने का हुक्म या फैसला सुनाएं। देश को पहले टुकड़ों में बाटंने की साजिश करने वाले तत्व अब देश जातियों में न बांट पाए ऐसा कुछ चमत्कार करें हे हमारे न्याय के देवता!

‘न्याय के सर्वोच्च मंदिर में बैठे न्याय के देवता एक प्रश्न और, जिन लोगों ने हमें लूटा, हमारे शिक्षण संस्थान तोड़े-जलाए, 11 साल से ज्यादा आयु के जो भी मर्द थे उन्हें कत्ल दिया, फांसी देदी या जिंदा दफ्नाए, जिन्होंने हमारे गुरुकुल तोड़े, हमारी अध्ययन-अध्यापन और रिसर्च व्यवस्था को भंग किया, जिन्होने हमारे पीढी दर पीढी अनपढ़ बनाया वो शोषक-शासक आज अल्प संख्यक कोटे का लाभ उठा रहे हैं। मस्जिदों के मुल्ला -मौलवियों को नकद पगार की थैलियां और मंदिरों-गुरुद्वारो में पुजारी-ज्ञानियों के हाथ में सिर्फ में घण्टा और चंवर।’

‘चौदह सौ साल पुराने पर सफों पर लिखी बातों को पत्थर की लकीर मानने वाले कट्टरपंथियों को आप ही सुधार सकते हैं मीलॉर्ड! ‘सरकार’  यानी लॉ मेकर्स तो आपका हनुमान बन कर मदद ही कर पाएंगे न! आप मानें या न मानें सच तो सही है। सच छुपाया नहीं जा सकता!

यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट में बना इतिहास, एक साथ 9 जजों ने ली शपथ, कोरोना के चलते हुआ खास आयोजन