भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी आज बिहार के लिए सबसे बड़ी मजबूती बन कर सामने आई और बिहार सातवीं कक्षा फेल युवा नेता के हाथों में जाने से  बाल-बाल बच गया। इंजीनियरिंग की डिग्री होल्डर और बिहार में  नई सोशल इंजीनियरिंग को जन्म देने वाले नितीश कुमार ने सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ (Nitish Kumar Takes Oath) ली। नितीश कुमार का अपना वोट बैंक नहीं है। यह सभी लोग कहते हैं। इसके पीछे की वजह यह है कि नितीश कुमार (Nitish Kumar) ने अब तक के अपने सभी कार्यकालों में बिहार का विकास किया हो या न किया हो लेकिन एक ऐसा बड़ा काम कर दिया है जो बड़े-बड़े तुर्रम खां नहीं कर पाए। वो काम यह बिहार की वोट राजनीति को जातिगत राजनीति से बाहर लाने में नितीश कुमार कामयाब रहे हैं। बीजेपी के बड़े नेता और संघ नेतृत्व ने शायद इसी पारितोषिक के रूप में उन्हें सातवीं बार बिहार का नेतृत्व सौंपा है। जबकि परिस्थितियां ऐसी बन गयीं थीं कि नितीश को चुनावी मंच से ऐलान करना पड़ा था कि यह उनका आखिरी चुनाव है। ऐसा भी सुना जाता है कि कम सीटें आने और राज्य में तीसरे नबंर की पार्टी रह जाने के बाद वो सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे।
बिहार राज्य की बीजेपी यूनिट की 'दूसरी पंक्ति' के नेता मुख्यमंत्री पद नितीश कुमार को दिए जाने के खिलाफ थे। कुछ ने पार्टी फोरम पर अपनी बात कही तो कुछ ने मीडिया में आकर बयानबाजी की। लेकिन बीजेपी नेतृत्व, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और इन सबसे ऊपर संघ के नेतृत्व ने स्पष्ट कह दिया कि बिहार को अतुलनीय स्थिति (जाति विहीन वोट राजनीति) में पहुंचाने का 'श्रेय और श्री' नितीश कुमार को ही मिलेगी। नितीश कुमार ने संकोच छोड़कर बीजेपी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और बिहार को 'सातवीं क्लास फेल' के हाथों में जाने से बचा लिया।
बिहार के चुनावों से एक और चेहरा चमकने की उम्मीद थी। संभवतः अतिमहत्वाकांक्षा की मृग मरीचिका में फंस कर उसने अपने करियर को कई साल पीछे धकेल दिया। यह चेहरा लोकजनशक्तिपार्टी के नए नेता चिराग पासवान का है। चिराग पासवान ने चालें तो चतुर चाणक्य की चरह चलने की कोशिश की। खुद को हनुमान दिखाने की कोशिश भी की। लेकिन हनुमार का 'अभिनय' उन पर उलटा पड़ गया। हनुमान तो इच्छा, अपेक्षा और आकांक्षा से परे रहने वाला किरदार है। भारतीय जनमानस उन्हें ऐसा भक्त सम्राट मानता है जिसने अपने स्वामी को खुश करने के लिए पूरे शरीर पर सिंदूर लपेट लिया। जो अपने स्वामी की आज्ञा का पालन पलक झपकने से पहले ही कर देता है। बिहार की राजनीति में मोदी का हनुमान बनना बहुत कठिन राह थी और है भी। संभवतः बिहार के वोटर्स को यही बात पसंद नहीं आई और चिराग पासवान राज्य की राजनीति में दूर किनारे पर चले गए।
कहा तो यह भी जाता है कि चिराग पासवान के एक गलत फैसले से बिहार 'सातवीं फेल' के हाथों में जाने से बाल-बाल बचा है। चिराग पासवान के उम्मीदवार खुद तो नहीं जीत पाए लेकिन उन्होंने जो वोट हासिल किए उनसे नितीश की पार्टी के उम्मीदवारों को मिले वोट का अंतर 'सातवीं फेल' की पार्टी के उम्मीदवारों को मिले वोट से कम हो गया। बीजेपी ने अच्छा किया…बहुत अच्छा किया शुद्ध 110 सीटों में से 74 उम्मीदवार जीत कर आए। इसीलिए बीजेपी ने इस बार सरकार में दो उप मुख्यमंत्री बनाएं हैं। नितीश के लिए कुछ असहज स्थिति हो सकती है, लेकिन बीजेपी को बिहार में दूसरी पंक्ति के नेताओं को खुश करने के लिए जरूरी था। हालांकि, पिछले शासनकाल में बीजेपी की ओर रहे उप मुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी को उनके योगदान का पुरस्कार मिलेगा, लेकिन वो क्या होगा यह अभी भविष्य के गर्त में है।
सुना ही नहीं दुनिया ने देखा भी कि 'सातंवी फेल' मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण का बहिष्कार कर दिया। अतिमहत्वाकांक्षी नेता ऐसा पहले भी करते रहे हैं, बिहार इसमें कोई अपवाद नहीं है। बिहार की जनता और बिहार की सरकार के लिए यह 'बहिस्कार ठीकई' है! लेकिन नितिस कुमार अपन भाग्य बहुत नीक लिखा के नहीं लाए हैं ना जी…सदन में सातवीं फेल रेलमपेल करिबे का करी…विपच्छ का नेता बन गइल हैं जी। बिहार की जनता ललुआ के लाल से पूंछी रहिल, बिहार में का बा…नितीसई बा…नितीसई बा…!!.
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