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म्यांमार में रोहिंग्या की वापसी पर चीन का रवैया साफ़ नहीं

बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में म्यांमार के रोहिंग्या भीड़ (तस्वीर: ट्विटर/@airnewsalerts के सौजन्य से)

ढाका: बांग्लादेश में कॉक्स बाज़ार के तटीय ज़िले में अवैध शिविरों में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रत्यावर्तन की समस्या ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है।

देश लगभग 1.2 मिलियन मुस्लिम रोहिंग्या रहते हैं।ये  एक सैन्य नरसंहार अभियान के दौरान पड़ोसी म्यांमार में जातीय धार्मिक संघर्ष से भागकर आये हुए हैं। 2017 के उस संघर्ष में कम से कम 9,000 लोग मारे गये थे।

सितंबर 2017 में ततमादॉ (म्यांमार सेना) समर्थित अभियान, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने “जातीय सफाई की सिलसिलेवार प्रणाली” क़रार दिया था, उसमें लाखों रोहिंग्या को सीमा पार बांग्लादेश में खदेड़ दिया गया।

दस लाख से अधिक शरणार्थी बांस, पतली प्लास्टिक की चादरों और नालीदार टिन की छतों से बनी हज़ारों अस्थायी झोपड़ियों में ठूंसे हुए हैं और जीर्ण-शीर्ण शिविरों में रहने की यह स्थिति खतरनाक है। अक्सर, शिविरों में आग लग जाती है, जिससे हज़ारों लोग बिना आश्रय के रह जाते हैं।

पिछले हफ़्ते म्यांमार के आव्रजन और जनसंख्या मंत्रालयों के एक 17-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने मार्च के मध्य में बांग्लादेश में प्रवेश किया और कॉक्स बाज़ार में रह रहे 480 रोहिंग्यों का साक्षात्कार लिया।यह साक्षात्कार उनके देश में संभावित प्रत्यावर्तन की योजना को लेकर था।

रखाइन राज्य के सामाजिक कल्याण मंत्री आंग मायो के नेतृत्व में म्यांमार का प्रतिनिधिमंडल पायलट ‘परिवार-आधारित प्रत्यावर्तन’ परियोजना को लेकर सदस्यों का चयन कर रहा था।

माना जाता है कि म्यांमार प्रतिनिधिमंडल की शिविरों की यह यात्रा चीन द्वारा मध्यस्थता और यूएनएचसीआर द्वारा उपलब्ध करायी गयी सुविधा का परिणाम थी।
कॉक्स बाज़ार में शरणार्थी राहत और प्रत्यावर्तन आयुक्त (आरआरआरसी) मोहम्मद मिज़ानुर्रहमान ने कहा कि म्यांमार जुंटा के अधिकारियों ने बांग्लादेश द्वारा अनुशंसित 1,140 में से 711 रोहिंग्याओं को मंज़ूरी दे दी है। नवजात और नवविवाहित जोड़ों को इस सत्यापन से बाहर रखा गया है।
जब पत्रकारों ने पूछा कि स्वदेश वापसी कब शुरू होने की उम्मीद है, तो रहमान ने कहा कि “म्यांमार प्रतिनिधिमंडल के पास संभावित प्रत्यावर्तन तिथि को लेकर निश्चित रूप से कुछ कह पाने का अधिकार नहीं था।”

इस प्रतिनिधिमंडल की यात्रा से पहले म्यांमार जुंटा ने 2017 की कार्रवाई के बाद पहली बार बांग्लादेश, भारत, चीन और पांच अन्य देशों के राजनयिकों को अशांत रखाइन राज्य का दौरा करने की अनुमति दे दी।

इसके बाद ही अधिकारियों ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत रोहिंग्या प्रत्यावर्तन शुरू करने के लिए सैन्य जुंटा की योजना को सामने रखा।

इससे पहले, बांग्लादेश ने विदेश मंत्री वांग यी की यात्रा के दौरान म्यांमार में रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस लाने के लिए औपचारिक रूप से चीन से सहयोग मांगा और चीन के राज्य पार्षद ने रोहिंग्या संकट के राजनीतिक समाधान को हल करने का वादा किया।
चीन ने रोहिंग्याओं को वापस लाने के लिए नवंबर, 2017 के समझौते में मध्यस्थता करने के लिए म्यांमार में अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया था।
बांग्लादेश में चीन के राजदूत याओ वेन ने उम्मीद जतायी थी कि विस्थापित रोहिंग्या के पहले बैच को जल्द ही म्यांमार वापस भेज दिया जाएगा, जबकि आधिकारिक समाचार एजेंसी बांग्लादेश संगबाद संगठन के अनुसार चीन ने मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका को जारी रखा।
17 मार्च 2023 को बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉ. एके अब्दुल मोमन ने भी इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के सदस्य देशों से सबसे अधिक सताये गये रोहिंग्याओं की उनकी मातृभूमि, म्यांमार में सुरक्षित और गरिमापूर्ण वापसी सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक ज़िम्मेदारी लेने का आग्रह किया।

दरअसल OIC ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के साथ नरसंहार के इस मामले को दर्ज करने के लिए गाम्बिया का समर्थन किया था। कॉक्स बाज़ार में रोहिंग्या शिविरों में केवल तुर्की की उपस्थिति दिखायी देती है।

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भारत ने म्यांमार से बांग्लादेश में बड़ी संख्या में रोहिंग्या शरणार्थियों के आने से उत्पन्न मानवीय संकट के जवाब में राहत सहायता प्रदान करने के लिए “ऑपरेशन इंसानियत” भी शुरू किया है।
बांग्लादेश और म्यांमार ने प्रत्यावर्तन के लिए बातचीत शुरू कर दी थी, लेकिन 2018 के बाद से अब तक कोई भी वापस नहीं लौटा है और हाल ही में पायलट प्रत्यावर्तन परियोजना के लिए कुछ सौ संभावित वापसी का सत्यापन अस्पष्ट है।
उन्हें वापस भेजने के प्रयासों के बावजूद म्यांमार में असुरक्षा की आशंका के कारण शरणार्थियों ने जाने से इनकार कर दिया।यह असुरक्षा पिछले साल सैन्य अधिग्रहण से बढ़ गया है।
इस स्थिति के बीच शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) ने 19 मार्च को एक बयान में कहा कि वे एक द्विपक्षीय पायलट परियोजना पर शरणार्थियों की संभावित वापसी पर चुने हुई संख्या को सत्यापित करने के लिए म्यांमार प्रतिनिधिमंडल की बांग्लादेश यात्रा के घटनाक्रम का अवलोकन कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संगठन ने दोहराया कि म्यांमार के रखाइन राज्य में स्थिति इस समय “रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थायी वापसी के अनुकूल नहीं है”।
बांग्लादेश ने मौजूदा संकट की शुरुआत के बाद से “स्वैच्छिक और स्थायी प्रत्यावर्तन” के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की लगातार पुष्टि की है, जो कि यूएनसीएचआर उस नीति को प्रतिध्वनित करता है,जिसके तहत प्रत्येक शरणार्थी को अपने देश में लौटने,एक अवगत विकल्प बनाने का अधिकार है और यह भी कि किसी भी शरणार्थी को प्रत्यावर्तित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
चीन हमेशा अपनी “फील गुड” कूटनीति को प्रभावित करना चाहता था, लेकिन अच्छे इरादों के बावजूद, ऐसा लगता है कि प्रत्यावर्तन एक नए गतिरोध में प्रवेश कर गया है क्योंकि बांग्लादेश और यूएनसीएचआर दोनों, जो विस्थापित रोहिंग्याओं की सुरक्षित वापसी के लिए ज़िम्मेदार हैं, रखाइन राज्य मेंउनकी सुरक्षा के बारे में चिंतित हैं।
रोहिंग्या मुद्दे को चीन द्वारा हल किया जाना चाहिए,क्योंकि इस देश [म्यांमार] पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव है। मॉडर्न डिप्लोमेसी में सुरक्षा विश्लेषक समीना अख़्तर लिखती हैं कि केवल चीन ही रोहिंग्याओं की सुरक्षित वापसी पर निर्णायक बातचीत कर सकता है।
इस तथ्य के अलावा कि चीन बांग्लादेश का शीर्ष व्यापार और विकास भागीदार है,बांग्लादेश और चीन के बीच क़रीबी राजनीतिक और सैन्य सम्बन्ध भी हैं।
पिछले हफ़्ते बांग्लादेश ने भारत और म्यांमार के साथ अपनी समुद्री सीमा के सीमांकन के बाद बांग्लादेश की नौसैनिक क्षमता को बढ़ाने के लिए 2016 में 205 मिलियन डॉलर में ख़रीदी गयी दो पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक संचालित नवीनीकृत चीनी पनडुब्बियों के साथ कॉक्स बाज़ार में एक नौसैनिक अड्डे का उद्घाटन किया है।
यह भी उतना ही सच है कि दो साल पहले तख़्तापलट कर सत्ता संभालने वाली म्यांमार की सैन्य जुंटा ने किसी भी शरणार्थी को वापस लेने का कोई इरादा नहीं दिखाया है।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि बांग्लादेश में स्थित रोहिंग्या शरणार्थी समूहों ने स्थायी और गरिमापूर्ण प्रत्यावर्तन के लिए कहा कि म्यांमार शासन रोहिंग्या को एक जातीय समुदाय के रूप में मान्यता दे; क़ानूनी नागरिकता प्रदान करे, जिसे 1982 में छीन लिया गया था; विद्यालय शिक्षा; स्वास्थ्य देखभाल सेवायें; आंदोलन और आजीविका की स्वतंत्रता भी मुहैया कराये।
रोहिंग्या के मानवाधिकार समूहों का मानना ​​है कि शरणार्थियों को वापस लाने के लिए चेहरा बचाने की यह क़वायद म्यांमार के सैन्य जुंटा पर “फ़ील गुड वाली नीति” प्रदर्शित करने के लिए दबाव डालने के बाद हुई, अन्यथा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) द्वारा घोषित अनुपालन का सामना करना पड़ता। 24 अप्रैल को आईसीजे में उस नरसंहार का मामला फिर से शुरू हो रहा है।
अराकान रोहिंग्या नेशनल एलायंस (एआरएनए) ने एक बयान में कहा, ” भले ही यह आबादी का एक प्रतिशत से भी कम हो, लेकिन कुछ शरणार्थियों को वापस लेने से म्यांमार को इस झूठे ढोंग के तहत एक प्रतिवाद के साथ आगे आने की अनुमति मिलेगी कि वे शरणार्थियों की वापसी को लेकर ईमानदार हैं।”