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Nepal Political Crisis: ओली-प्रचण्ड की लड़ाई में नेपाली कांग्रेस बनी किंग मेकर

Nepal Political Crisis Deepens

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नेपाल में सियासी घमासान बढ़ गया है। ओली-प्रचण्ड वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी दो हिस्सों में विभाजित हो गई है, किंतु निर्वाचन आयोग में अभी तक नेकपा एक ही दल है। नेकपा की कार्यकारिणी की बैठक के बाद ओली के साथ 16 सदस्य रहे प्रचण्ड-माधव गुट के साथ 28 सदस्यों ने प्रतिबद्धता जताई है। वहीं, पीएम ओली ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को मानते हुए संसद का सत्र नियत समय पर बुलाया जाएगा। पीएम ओली के इस कदम से इन कयासों पर विराम लग चुका है कि ओली ‘नैतिकता’के बहाने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे सकते हैं।

नेपाल के 275 सदस्यों वाले निचले सदन में अब नेपाली कांग्रेस किंग मेकर बन उभर सकती है। सदन में नेपाली कांग्रेस के 63 सदस्य हैं। संयुक्त नेकपा (नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी) के 173 सदस्य थे। इनमें से अब कम से कम 80 पीएम ओली के खेमे में खड़े हैं। संख्या बल के हिसाब से प्रचण्ड का पक्ष ओली के पक्ष से मजबूत नजर आ रहा है। प्रचण्ड गुट ओली के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी ला सकते हैं। क्यों कि नेपाली संसद में अविश्वास प्रस्ताव के लिए सदन के सदस्यों की कुल संख्या के 25 प्रतिशत सदस्यों के ही हस्ताक्षर होने जरूरी हैं।

अगले महीने 9 मार्च या उससे पहले जब भी नेपाली हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (निचला सदन) आहूत किया जाएगा तो निश्चित तौर पर पीएम ओली के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आएगा। इस प्रस्ताव पर वोटिंग के समय नेपाली कांग्रेस का रुख रहता है इस पर ही तय होगा की सरकार किसकी बनेगी। क्यों कि सरकार बनाने और बचाने के लिए 138 सदस्यों के मतों की आवश्यकता है। मौजूदा स्थिति में ओली और प्रचण्ड दोनों में से कोई भी नेपाली कांग्रेस के सहयोग के बिना कुछ नहीं कर पाएंगे। इसलिए नेपाल के सियासी घमासान पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने नेपाली कांग्रेस को किंग मेकर बना दिया है।

इस घटनाक्रम में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से नेपाली कांग्रेस ने एकदम चुप्पी साध ली है। हालांकि ऐसा कहा जा रहा है कि प्रचण्ड गुट नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन होने पर प्रधानमंत्री पद नेपाली कांग्रेस को देने का वचन दे चुके हैं। प्रचण्ड किसी भी तरह ओली को सत्ता से बाहर कर प्रतिशोध लेना चाहते हैं। लेकिन नेपाली कांग्रेस से अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। ऐसा भा कहा जा रहा है कि उठापठक के दौर में नेपाली कांग्रेस सत्ता में नहीं आना चाहती है। क्यों कि संख्या बल के आधार पर सदन के अंदर और सदन के बाहर हमेशा सहयोगी दल सरकार पर हावी रहेंगे। कांग्रेस के प्रधानमंत्री  को प्रचण्ड या ओली गुट का चाटुकार ही बनकर रहना पड़ सकता है।

नेपाल के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किसी भी गुट को समर्थन देने के बजाए मध्यावधि चुनावों में जाना पसंद करेगी। चुनाव में नेपाली कांग्रेस नेकपा के दोनों गुटों की प्रतिद्वंदिता का लाभ उठाकर सत्ता में वापसी का रास्ता चुनेगी। ऐसा कहा भी जा रहा है कि ओली और प्रचण्ड गुट की लड़ाई ने नेपाली जनता का भरोसा तोड़ दिया है। नेपाल की जनता के सामने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही एक मात्र विकल्प बाकी है।