सउदी अरब की देखरेख मे बनी यमन की नई सरकार को यमन के अदन एयरपोर्ट पर रेड कार्पेट वेलकम के वक्त पूरी तरह से नेस्तनाबूद करने की नाकाम कोशिश पर सवाल उठ रहे हैं। पूछा जा रहा है कि ये किन लोगों की कार्रवाई है। उंगली साफ-साफ ईरान और ईरान समर्थित विद्रोही गुट हूती की तरह उठ रही है। दुनिया भर के देश इसके लिए ईरान को ही जिम्मेदार मान रहे हैं। हालांकि ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के हमले की वारदात में हाथ नहीं होने के एलान के बाद मामला पेचीदा हो गया है। हूती विद्रोही कह रहे हैं जब यमन सरकार और दक्षिण इलाके में मौजूद विद्रोहियों में सरकार में हिस्सेदारी पर समझौता हो गया है तो वो हमले क्यों करेंगे। विद्रोहियों को यह हमला करना ही था तो फिर उस जहाज पर क्यों नहीं किया जिससे यमन की पूरी सरकार उतर रही थी? जो ताकतें जहाज से कुछ दूर धमाका कर सकती थीं वो जहाज को भी निशाना बना सकती थीं। इस हमले में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि निशाना चूक गया, बल्कि हमले का तरीका बताता है कि हमला करने वाली ताकत यमन की नई सरकार को अपनी मौजूदगी अहसास कराना चाहती थी।
गनीमत रही कि सऊदी अरब से चर्चा कर यमन लौट रही वहां की सरकार का कोई भी मंत्री हमले में हताहत नहीं हुआ। हालांकि एयरपोर्ट पर मौजूद 25 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 50 से ज्यादा लोग घायल हो गए। माना जा रहा है कि मिसाइल उस वक्त के हिसाब से दागी गई जब यमन के प्रधानमंत्री समेत दूसरे मंत्री विमान से उतर रहे हों. मगर फ्लाईट में देर होने से मिसाइल हमले का सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। विस्फोट के बाद इसमें सवार लोगों को वापस विमान की तरफ जाता देखा गया। प्रधानमंत्री मइन अब्दुलमलिक और मंत्रियों को सुरक्षा घेरे में माशीक पैलेस ले जाया गया। एयरपोर्ट पर हर तरफ धुआं ही धुआं नजर आया और खिड़की और दरवाजों के शीशे टूट गए।
प्रधानमंत्री ने खुद ऐलान किया कि उनके कैबिनेट के सभी मंत्री सुरक्षित हैं और हमले के टार्गेट वो खुद और उनके कैबिनेट के सहयोगी थे। खास बात है कि बाद में उस महल के पास भी बाद में धमाका हुआ जहां यमन की सरकार के नुमाइंदे ठहरे हुए थे। बम से लदे एक ड्रोन को भी महल के पास मिसाइल दाग कर गिरा दिया गया। विमान में मौजूद यमन में सऊदी अरब के राजदूत मोहम्मद अल जबेर ने इसे एक कायराना आतंकी हमला बताया जो यमन के लोगों, उनकी सुरक्षा और स्थायित्व के विरोध में है। उन्होंने कहा कि लाख हमलों के बाद भी यमन की सरकार और अलगाववादियों के बीच के समझौते को कोई खत्म नहीं कर पाएगा। ये शांति समझौता जारी रहेगा भले ही कोई आतंकी हमले कर मौत का तांडव करे या अव्यवस्था फैलाने की कोशिश करे।
यमन में मौजूदा उथल-पुथल का दौर 2014 में शुरू हुआ जब शिया बहुल हूती विद्रोहियों ने ईरान की शह पर यमन की सु्न्नी सरकार और वहां से सबसे बड़े शहर और राजधानी सना पर कब्जा कर लिया। उनकी मांग नई सरकार और कम दाम पर पेट्रोलियम पदार्थ थीं। वार्ता के दौरान 2015 में उन्होंने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया और तत्कालीन सुन्नी सरकार को इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया। मार्च 2015 में सऊदी अरब की अगुवाई में खाड़ी के देशों के गठबंधन ने ना सिर्फ हूती विद्रोहियों पर हवाई हमले करने शुरू किये बल्कि उन पर आर्थिक नाकेबंदी भी की। अमेरिका खुले तौर पर इस गठबंधन को लॉजिस्टिक और खुफिया जानकारी मुहैया कराता रहा। अप्रैल 2015 के बाद से ईरान से यमन के हूती विद्रोहियों के लिए हथियार ले जा रहे जहाजों को सऊदी अरब की नौसेना ने अदन की खाड़ी में ही पकड़ लिया। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने भी अपनी नौसेना को अदन का खाड़ी के पास तैनात कर दिया है जिससे स्थिति और विस्फोटक हो गई है। साफ है यमन की लड़ाई के पीछे शिया और सुन्नी का झगड़ा भी है।
यमन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार अब तक ज्यादातर रियाध में ही निर्वासित रूप से काम करती रही है। हर काम के लिए यमन की सरकार सऊदी अरब से विचार विमर्श करती है। मगर विस्फोट के पीछे यमन के राष्ट्रपति आबेद रब्बो मंसूर हादी और यूनाइटेड अरब अमीरात समर्थित दक्षिण के हूती विद्रहियों के बीच कोई ना कोई संबंध जरूर है। अदन एयरपोर्ट पर हमला कर यमन के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार और दक्षिणी इलाके के अलगाववादियों के बीच जारी डील को भी खत्म करने की कोशिश थी।
पिछले साल भी यमन में हूती विद्रोहियों ने मिलिट्री परेड के दौरान मिसाइल हमला किया था जिसमें दर्जनों रंगरूटों की मौत हो गई थी। यहां सऊदी अरब की देख-रेख में यमन के लोगों को सैन्य शिक्षा दी जा रही थी। यमन में जारी गृह युद्ध में अब तक एक लाख बारह हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जिनमें आम लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है।
खाड़ी देशों में शांति स्थापना के लिए सबसे पहले यमन में शांति स्थापित करने की जरूरत है ताकि वो विकास के रास्ते पर चल निकले। मगर वहां जारी गृह युद्ध से मानवता के लिए दुनिया का सबसे बड़ा जोखिम बन गया है। दक्षिण और उत्तरी यमन 1990 में एक होकर यमन देश बना और ये भी वहां की समस्या के मूल में है। जरूरी है कि वहां के मुस्लिम फिरके एक दूसरे के साथ भाईचारे के साथ रहें नहीं तो अदन एयरपोर्ट जैसे हमले आगे भी होते रहेंगे चाहे इसके पीछे कोई भी गुट हो।.
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