CIA को Al Zawahiri का सुराग किसने दिया, मुखबिर कौन- पाकिस्तान ISI या खुद तालिबान- देखें Exclusive Report

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अल जवाहिरी मारा गया। भारत के मुसलमानों को भड़काने और भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने वाले आतंकी सरगना का अंत हो गया। अलजवाहिरी के मारे जाने के मतलव आतंकवाद की रीढ़ पर हमला है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आतंकवाद पूरी तौर पर खत्म हो गया। अमेरिका को अलजवाहिरी के मारे जाने पर संतोष होगा। ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद अलजवाहिरी ने ही अलकायदा की कमान संभाली थी। उसके मारे जाने की खबरें अक्सर उड़ती रहीं। हर बार वो एक ऑडियो या वीडियो जारी करके अपनी मौत की खबरों को झुठला देता था। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने अलजवाहिरी को मारने के बाद उसका डीएनए टेस्ट करवाया। कई अन्य तरीकों से ऑपरेशन की सफलता को कसौटी पर कसने के बाद बाइडन ने अलजवाहिरी की मौत का ऐलान किया। लेकिन सवाल यह कि अमेरिका को अलजवाहिरी की मुखबिरी किसने की? खुद तालिबान ने या फिर आईएसआई-पाकिस्तान ने?</p>
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एक कहानी तो यहां पूरी हो जाती है कि देर से सही मगर अलकायदा कुख्यात आतंकी अलजवाहिरी मारा गया। अब दूसरी कहानी शुरू होती है। कहानी यह कि काबुल में अलजवाहिरी की मौजूदगी की खबर अमेरिका को कैसे मिली? अफगानिस्तान से अमेरिका के भागने के बाद क्या अब भी अमेरिकी एजेंट अफगानिस्तान में एक्टिव हैं। तालिबानी सत्ता में अमेरिकी एजेंट दो ही परिस्थितियों में काबुल में शरण पा सकते हैं। पहली परिस्थिति यह कि तालिबान और सीआईए में कोई गुप्त समझौता हुआ या काबुल में मौजूद पाकिस्तानियों ने तालिबान के साथ धोखा किया और डॉलर के लिए तालिबान की महत्वपूर्ण और गोपनीय जानकारी अमेरिका को बेच दीं। ठीक उसी तरह से जैसे ओसामा बिन लादेन को एबोटाबाद के सेफ हाउस में रखने के साथ ही अमेरिका को उसके ठिकाने की सटीक जानकारी दी गई।</p>
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ओसामा बिन लादेन के मारने और उसकी लाश को अपने साथ लेजाने तक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां, खुफिया रडार यहां तक जमीन और आसमान से एक साथ निगरानी करने वाले भी आंखें मूंद कर पड़े रहे। जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अलकायदा के मारे जाने का ऐलान किया तब पाकिस्तानी सरकार और आईएसआई और पाकिस्तानी आर्मी नींद से जागी थी। एबोटाबाद पाकिस्तान का केंटोनमेंट इलाका है। हर केंटोनमेंट की सुरक्षा और निगरानी असाधारण होती है, लेकिन अमेरिकी सील कमाण्डो तीन अपाचे हेलिकॉप्टरों से आते हैं, एबोटाबाद के कम्पाउंड में उतरते हैं लादेन को मारते हैं और उसकी लाश को अपने साथ ले जाते हैं। हेलिकॉप्टरों की गड़गड़ाहट से भी एबोटाबाद में पाकिस्तानी आर्मी के संतरियों की नींद नहीं खुलती। वो तो एक चॉपर वहां दुर्घटनाग्रस्त न होता तो लादेन एबोटाबाद में ही मारा गया यह कोई साबित नहीं कर पाता।</p>
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अलजवाहिरी का मारा जाना एक अच्छी खबर है। अमेरिका और भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए अच्छी खबर है। अच्छी ही नहीं बल्कि महत्वपूर्ण भी। जवाहिरी की मौत की खबर की महत्ता की इसी बात से अंदाजा लग जाता है कि सीआईए ने जवाहिरी को मारने के बाद दो दिन तक इंतजार किया। उसकी मौत को दो दिन तक छुपाए रखा। अलजवाहिरी की डीएनए रिपोर्ट के अलावा उसके फैमिली मेंबर्स और तालिबान सबसे कन्फर्म करने के दो दिन बाद उसकी मौत का ऐलान किया।</p>
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अच्छा यह बताईए, पाकिस्तान के भीतर इतना बड़ा ऑपरेशन अमेरिकी फोर्सेस पाकिस्तानी आर्मी और आईएसआई की ‘लीक’किए बिना कर सकतीं थी क्या? जवाब है ‘असंभव’। लेकिन पाकिस्तान सरकार और आर्मी  ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया। अलजवाहिरी की मौत भी ठीक उसी तरह से की गई है। लादेन को मारने के लिए अमेरिकी सील कमाण्डो के तीन हेलिकॉप्टर तो अफगानिस्तान बेस से उड़ कर आए थे। जवाहिरी को मारने वाला अमेरिकी आर-9 ड्रोन कहां से उड़ा?  उसे कहां से कंट्रोल किया जा रहा था?ध्यान रहे, आर-9 ड्रोन का आकार एक सामान्य फाइटर जेट के बराबर होता है। ये ड्रोन हेलफायर मिसाइलों के साथ दो दिन तक हवा में रह सकते हैं।  </p>
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सीधी सी बात है कि अलजवाहिरी की मौजूदगी पुष्टि जमीनी और आसमानी तौर पर करने के बाद कंट्रोल रूम ने ड्रोन को कमाण्ड दिया और मिसाइल फायर कर दी। ध्यान रहे, अफगानिस्तान की अंदरूनी सुरक्षा का जिम्मा हक्कानी नेटवर्क के हाथों में है। हक्कानी नेटवर्क को आईएसआई ने खड़ा किया था। अमेरिकी फोर्सेस के अचानक अफगानिस्तान छोड़ने के बाद काबुल और बरगाम जैसे एयरपोर्ट की सुरक्षा और निगरानी के लिए पाकिस्तान ने अपने रडार सिस्टम इंस्टॉल किए थे। आजकल भी तालिबान के पास जितने भी निगरानी सिस्टम हैं वो या तो पाकिस्तानी हैं या फिर अमेरिकी फौज के छोड़े हुए हैं।</p>
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अमेरिकी एजेंटो का काबुल में होना सामान्य बात हो सकती है, लेकिन अफगानिस्तान में ड्रोन उड़ाना, शेरपुर के सुरक्षित इलाके की रैकी करना और प्रिसाइज स्ट्राइक कर अलजवाहिरी को मार गिराना असामान्य-असाधरण है। यह तब तक संभव नहीं है जब तक खुद तालिबान अमेरिकी को इसकी जानकारी न दे या फिर पाकिस्तान यानी आईएसआई तालिबान के साथ दगा न करे। पाकिस्तान के आर्थिक हालात बेहद खराब हैं। अभी कुछ दिन पहले यह खबर भी आई थी कि पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल बाजवा ने अमेरिकी अफसरों से बात भी की थी। यह संभव है कि अलजवाहिरी को ठिकाने लगाने से पहले जनरल बाजवा ने अमेरिका से लेन-देन कर लिया हो।</p>
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तालिबान ने अमेरिकी ड्रोन स्ट्राइक में अलजवाहिरी के मारे जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और अफगान तालिबान की संप्रभुता पर हमला करार दिया है। लेकिन अभी तक पाकिस्तान की ओर से किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं मिली है। अलजवाहिरी की अमेरिकी ड्रोन स्ट्राइक में मारे जाने से अफगान तालिबान क्रेडिबिलिटी पर दाग लग रहा है। काबुल पर कब्जा करने से पहले अलकायदा ने तालिबान को मदद की थी। इसी मदद के एवज में तालिबान ने अलजवाहिरी और उसके नजदीकी लोगों को सेफ हाउस दिया था। तालिबान के अलावा पाकिस्तान की आईएसआई को ही अलजवाहिरी के संभावित सुरक्षा ठिकाने की जानकारी थी।</p>
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अब सवाल यह उठता है कि अगर अलवाहिरी की मुखबिरी तालिबान के भीतर से नहीं हुई है तो पाकिस्तान को आने वाले दिनों में इसके नतीजे भुगतने पड़ेंगे।   </p>

Rajeev Sharma

Rajeev Sharma, writes on National-International issues, Radicalization, Pakistan-China & Indian Socio- Politics.

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