सलीम समद
अगले संसदीय चुनाव नज़दीक हैं। जनवरी 2024 में होने की उम्मीद है। कट्टरपंथी इस्लामी राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) ने 10 साल के अंतराल के बाद 10 जून को ढाका में अपनी पहली रैली आयोजित की।
तीन घंटे तक चलने वाला यह कार्यक्रम राजधानी के मध्य में स्थित सभागार में सशस्त्र दंगा पुलिस की भारी तैनाती और सादे कपड़ों में सैकड़ों सशस्त्र अधिकारियों के बीच आयोजित किया गया था। इसके हज़ारों सदस्य, जिन्हें हॉल में जगह नहीं मिल पायी, वे परिसर में घुस गए और आधी सड़कों पर भी जम गये । क़ानून-व्यवस्था किसी स्थिति में नहीं थी।
<blockquote class=”twitter-tweet”><p lang=”en” dir=”ltr”>𝓐 𝓱𝓲𝓼𝓽𝓸𝓻𝓲𝓬𝓪𝓵 𝓶𝓮𝓮𝓽𝓲𝓷𝓰 𝓸𝓯 𝓑𝓙𝓘 𝓱𝓪𝓼 𝓫𝓮𝓮𝓷 𝓱𝓮𝓵𝓭 𝓲𝓷 𝓓𝓱𝓪𝓴<br><br>"Establish caretaker form of government by amending constitution and under that government a fair, free and credible election will have to be arranged. "<br><br>-<a href=”https://twitter.com/drabdullahtaher?ref_src=twsrc%5Etfw”>@drabdullahtaher</a> <a href=”https://t.co/o8aYPjGsyU”>pic.twitter.com/o8aYPjGsyU</a></p>— Bangladesh Jamaat-e-Islami, Narayanganj City (@BjiNc41) <a href=”https://twitter.com/BjiNc41/status/1667557048203223040?ref_src=twsrc%5Etfw”>June 10, 2023</a></blockquote> <script async src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” charset=”utf-8″></script>
अचानक ही राजधानी ढाका के पुलिस प्रमुख ने कुछ शर्तों पर सभा की अनुमति दे दी थी, जिससे पत्रकारों, राजनीतिक पर्यवेक्षकों, नागरिक समाज और वामपंथी दलों की भौंहें तन गयी।
गृह मंत्री असदुज्जमां ख़ान ने रविवार को कहा कि जमात-ए-इस्लामी के संबंध में अवामी लीग को लेकर हमारी नीति ” यथावत।”
कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का तर्क है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की वीज़ा नीति के ख़तरे ने इस अनुमति को प्राप्त करने में अतिरिक्त लाभ दिया है। बांग्लादेश के लिए अमेरिकी वीज़ा नीति में कहा गया है कि यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए अधिकारियों, सत्ताधारी पार्टी के नेताओं और विपक्ष पर प्रतिबंध लगायेगा। इसमें मतदाताओं को डराने-धमकाने, वोट में हेराफेरी करने, स्वतंत्र भाषण या सभा की स्वतंत्रता से इनकार करने और हिंसा के लिए ज़िम्मेदार लोग शामिल हैं, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को कमज़ोर करना चाहते हैं।
विपक्ष के ख़िलाफ़ सख़्त दमनकारी उपायों से हटकर स्थानीय सरकार के चुनाव या संसद के उप-चुनाव कराने में ज़िला नागरिक अधिकारी और पुलिस प्रशासन 3 मई को अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा बताये गये अनुपालन का उल्लंघन करने में अतिरिक्त रूप से सतर्क हैं।
इस प्रकार, पुलिस द्वारा उसी स्थान पर एक अन्य राजनीतिक दल की युवा शाखा के एक कार्यक्रम को रद्द करने के बाद इस्लामवादी पार्टी को उनकी रैली की पूर्व संध्या पर वांछित “मौखिक अनुमति” मिल गयी।
जेईआई की इस रैली ने पार्टी नेताओं और सदस्यों को तीन सूत्री मांग पर एक साथ ले आया है, जिसमें शामिल हैं: एक कार्यवाहक सरकार के तहत चुनाव; जेल में बंद उनके नेताओं और सदस्यों की रिहाई; आवश्यक किराना वस्तुओं की क़ीमतों पर नियंत्रण।
जेईआई नेताओं ने दावा किया है कि अवामी लीग दौर के 14 वर्षों में लगभग 1.5 लाख क़ानूनी उत्पीड़न के मामले उनके सिर पर हैं, और लगभग 14,000 नेता और सदस्य जेलों में बंद हैं, जिनमें उनके राष्ट्रीय अमीर (प्रमुख) डॉ. शफ़ीकुर्रहमान, नायब-ए-अमीर (उपाध्यक्ष) ,एएनएम शम्सुल इस्लाम और महासचिव मिया गोलम पोरवार भी शामिल हैं।
उनकी मांगों की सूची में देश भर में जेईआई के पार्टी कार्यालय खोलना और राजनीतिक सभा की अनुमति देना शामिल है, जिसके बारे में उन्होंने बताया कि इसकी गारंटी संविधान द्वारा दी गयी है,ये वही संविधान है, जिसे वे मान्यता नहीं देते हैं।
जेईआई नेताओं ने स्वतंत्र, निष्पक्ष, समावेशी और विश्वसनीय चुनाव कराने और सभी राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए एक अंतरिम सरकार के लिए एक रूपरेखा विकसित करने पर सरकार के साथ बातचीत की पेशकश की है।
इस्लामवादी जेईआई को एक राजनीतिक दल बताया जाता है, लेकिन बांग्लादेश में अधिकांश लोग इस संगठन की पृष्ठभूमि से अवगत हैं और वह है- स्वतंत्रता के क्रूर युद्ध के दौरान उनकी बेरहम भूमिका।
सड़कों पर हिंसा के डर से पुलिस मुख्यालय ने इस पार्टी के राष्ट्रीय अमीर मतिउर्रहमान निज़ामी, महासचिव अली अहसान मोहम्मद मुजाहिद, सहायक महासचिव अब्दुल क़ादिर मोल्ला और सहायक महासचिव एटीएम अज़हरुल इस्लाम सहित पार्टी के प्रमुख नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद फ़रवरी 2013 से जेईआई को अनुमति देना बंद कर दिया। 1971 में युद्ध अपराधों के लिए इन्हें दोषी ठहराया गया था।
2008 के चुनाव में शेख़ हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग भारी जीत के बाद सत्ता में लौटी थी। राष्ट्र से उनका चुनावी वादा था कि 1971 में हुए युद्ध अपराधों और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए ज़िम्मेदार लोगों के मुक़दमे को न्याय की कसौटी पर कसा जाना चाहिए।
<blockquote class=”twitter-tweet”><p lang=”tl” dir=”ltr”>Bangladesh war criminal Ghulam Azam dead at 92 <a href=”http://t.co/Dng5NXQb2B”>http://t.co/Dng5NXQb2B</a> <a href=”http://t.co/9PlXsYdeng”>pic.twitter.com/9PlXsYdeng</a></p>— DNA (@dna) <a href=”https://twitter.com/dna/status/525495648854876160?ref_src=twsrc%5Etfw”>October 24, 2014</a></blockquote> <script async src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” charset=”utf-8″></script>
बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय (युद्ध) अपराध न्यायाधिकरण ने कई जेईआई, अन्य मुस्लिम दलों और इस्लामी नेताओं को मृत्युदंड दिया। ट्रिब्यूनल ने एक बुज़ुर्ग व्यक्ति पर विचार करते हुए 1971 में पूर्व जेईआई प्रमुख ग़ुलाम आज़म को लुटेरी पाकिस्तानी सेना में भर्ती करने, सहायता करने और सहयोग करने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनायी।
अभियोजक बैरिस्टर तपश कांति बाउल का कहना है कि 1971 में न्यायाधिकरण द्वारादक्षिणी बांग्लादेश में सैकड़ों हिंदू समुदाय और स्वतंत्रता-समर्थक हमवतन लोगों की मौत और बलात्कार के लिए जेईआई और उनके मुस्लिम मिलिशिया के एक प्रमुख व्यक्ति, इस्लामिक प्रचारक नेता देलवर हुसैन सईदी को ज़िम्मेदार ठहराया गया था।
बांग्लादेश की आज़ादी के पहले वर्ष में मुक्ति संग्राम के नायक, बंगबंधु शेख़ मुजीबुर्रहमान ने मुस्लिम बहुसंख्यक तुर्की के बाद दुनिया का दूसरा धर्मनिरपेक्ष संविधान पारित किया।
उस संविधान में धार्मिक राजनीतिक दलों पर पूर्ण प्रतिबंध था। खूंखार जमात-ए-इस्लामी पार्टी को डिफ़ॉल्ट रूप से हटा दिया गया था।
यह नवोदित देश तब ख़ूनी मुक्ति युद्ध की पीड़ा से गुज़रा है, जब पाकिस्तानी सेनाओं ने युद्ध के हथियार के रूप में प्रचंड युद्ध अपराध और बलात्कार को अंजाम दिया था। कट्टरपंथी मुस्लिम पार्टी जेईआई के उनके गुर्गों ने इस्लाम के नाम पर एक गुप्त मौत दस्ते अल बद्र द्वारा सैकड़ों बुद्धिजीवियों का नरसंहार और न्यायेतर हत्यायें की थीं।
1 अगस्त, 2013 को एक ऐतिहासिक फ़ैसले में बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने इस्लामवादी पार्टी, जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण रद्द कर दिया था, जिससे उसे भविष्य के चुनावों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
अदालत ने बांग्लादेश संविधान के साथ जेईआई पार्टी के घोषणापत्र (उनकी वेबसाइट और मुद्रित दस्तावेज़ों पर उपलब्ध) के सिद्धांतों के बीच कई विरोधाभास पाये थे।
जेईआई एक धर्मनिरपेक्ष देश के बजाय एक इस्लामिक गणराज्य (बांग्लादेश) की स्थापना करना चाहता है, जिसके लिए उसने 1971 में अपना ख़ून बहाया था। इसमें शामिल है-क़ुरान और सुन्नत राज्य के संविधान को ख़त्म कर देना; सख़्त इस्लामी शरिया क़ानूनों को लागू करना और एक इस्लामी देश में हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करना।
उच्च न्यायालय में बांग्लादेश चुनाव आयोग (ईसी) के साथ जेईआई के पंजीकरण को रद्द करने के लिए जनहित याचिका के याचिकाकर्ता मौलाना जियाउल हसन यह समझने में विफल हैं कि चुनाव आयोग अपंजीकृत होने के बाद चुनावों में भाग लेने के लिए जेईआई की योजनाओं पर कैसे कार्य करेगा।
हसन बांग्लादेश सोमिलिटो इस्लामी जोटे (यूनाइटेड इस्लामिक एलायंस) के अध्यक्ष भी हैं, राजनीतिक इस्लाम के ख़िलाफ़ एक समान विचारधारा वाला मंच और एक मुखर धर्मनिरपेक्षतावादी स्पष्ट रूप से इस्लामवाद के उदय के बारे में चिंतित हैं।
जेईआई दस्तावेज़ों में दावा किया गया है कि उनके संस्थापक विवादास्पद इस्लामी नेता सैयद अबुल आला मौदुदी थे, जो पाकिस्तान में जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक थे। वह विभाजन के बाद 1953 में सबसे ख़राब नस्लीय दंगों को भड़काने के लिए ज़िम्मेदार है, जिसमें मौदुदी के शिष्यों द्वारा उसका ‘फ़तवा’ सुनने के बाद 200 अहमदिया मुसलमानों की हत्या कर दी गयी थी, जो पाकिस्तान में सुन्नी मुसलमानों को विधर्मियों और काफ़िरों को मारने का आदेश देता है।
प्रमुख मानवाधिकार वकील बैरिस्टर तानिया अमीर ने जेईआई पंजीकरण के ख़िलाफ़ जनहित याचिका की ओर से अदालत में तर्क दिया कि, “जमात सैद्धांतिक रूप से गणतंत्र की शक्तियों को मान्यता नहीं देती है, जो लोगों से संबंधित है, न ही यह निर्विवाद शक्ति को स्वीकार करती है। जनता के प्रतिनिधि क़ानून बनायें। यह पार्टी धर्म के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करती है और इसलिए इसका पंजीकरण बहुत पहले ही रद्द कर दिया जाना चाहिए।”
दिसंबर 2018 में जैसे ही आम चुनाव नज़दीक आ रहा था, वैसे बांग्लादेश चुनाव आयोग ने उच्च न्यायालय के फ़ैसले के अनुसार अपना पंजीकरण रद्द कर दिया। इस प्रकार, जेईआई मुश्किल हालात में डगमगा रहा था, क्योंकि वे चुनाव में भाग लेने के पात्र नहीं थे और पार्टी ख़तरे में थी।
जेईआई सदस्यों ने 20 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने में सक्षम होने के लिए अपने हमेशा के सहयोगी, दक्षिणपंथी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के साथ जल्दबाजी में बातचीत की और वे ख़त्म हो गये।
पिछले 12 वर्षों से अवामी लीग के कई शीर्ष नेताओं और वरिष्ठ मंत्रियों की बयानबाज़ी ने जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक क़ानून बनाने के लिए अपनी पार्टी की स्थिति को दोहराया, जिसने पाकिस्तान के कब्ज़े वाले युद्ध अपराधों में शामिल होकर बांग्लादेश की स्वतंत्रता का बेरहमी से विरोध किया था।
नीति निर्माताओं को यह कहने में कोई संकोच नहीं हुआ कि जेईआई पर प्रतिबंध लगाना समय की बात है। अब ऐसा लगता है कि वे खोखले वादे थे।
इस हृदय परिवर्तन को राजनीतिक विश्लेषक सोहराब हसन ने समझा है। उन्होंने सबसे बड़े प्रसारित समाचार पत्र प्रोथोम अलो में लिखा कि जेईआई हाल ही में बीएनपी गठबंधन से अलग हो गया है। अगर बीएनपी आगामी चुनावों का बहिष्कार करती है, तो जेईआई को सरकार का विकल्प माना जायेगा।
ऐसा लगता है कि उन्हीं वरिष्ठ मंत्रियों ने जेईआई के ख़िलाफ़ अपनी बयानबाज़ी पर यू-टर्न ले लिया है। जैसा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्री और अवामी लीग के संयुक्त महासचिव डॉ. हसन महमूद ने रविवार को कहा कि जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। उनका कहना है, “कोई भी राजनीतिक दल रैलियां कर सकता है। जब तक यह प्रतिबंधित नहीं है, उन्हें रैलियां आयोजित करने का अधिकार है।”
जबकि क़ानून मंत्री अनीसुल हक़ ने रविवार को कहा कि जमात-ए-इस्लामी को “जब तक पार्टी को दोषी नहीं ठहराया जाता, तब तक दोषी नहीं कहा जाना चाहिए।”
न्यायाधीशों ने अपनी राय दी है कि युद्ध अपराध न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए फ़ैसले में आए पर्याप्त सबूतों के आधार पर जेईआई पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
शनिवार की घटना ने यह संदेश दे दिया है कि जेईआई कमज़ोर नहीं है और वह कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा में हज़ारों युवाओं का ब्रेनवॉश करने में सक्षम है।
युद्ध अपराध न्यायाधिकरण द्वारा जेईआई के प्रमुख नेतृत्व को दोषी ठहराये जाने के बाद पार्टी हतोत्साहित हो गयी थी, लेकिन अशांत राजनीतिक माहौल में लगता है कि बच गयी।
अगस्त, 1975 के मध्य में एक सैन्य हमले में शेख़ मुजीब की दुखद हत्या के बाद मई 1976 में जनरल जियाउर्रहमान (बाद में राष्ट्रपति) के शासन ने संविधान के खंड 38 को निरस्त कर दिया था, जो एक धार्मिक पार्टी के गठन पर रोक लगाता है।
इससे रातों-रात खूंखार जेईआई फिर से जीवित हो उठा और उसने राजनीति शुरू कर दी, लेकिन देश के लोगों के ख़िलाफ़ अपने संलिप्तता के दागदार इतिहास के कारण उन्होंने रणनीतिक रूप से अपना रुख़ बदल दिया।
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