India Russia Ties: भारत और रूस के बीच दोस्ती कितनी गहरी है ये बताने की जरूरत नहीं है। हर मौके पर दोनों देशों ने एक दूसरे का साथ दिया है। जब भारत को जरूरत थी को रूस उसके लिए खड़ा रहा और जब रूस को जरूरत पड़ी तो भारत ने अपनी दोस्ती निभाई। लेकिन, आज जो समीकरण बने हैं, उसके बाद हर कोई जानना चाहता है कि ये दोनों कब तक एक साथ रहेंगे। यूक्रेन की जंग जो साल 2022 में शुरू हुई थी, उसके बाद तो हर कोई इस सवाल का जवाब जानना चाहता है। दरअसल, अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। जहां यूक्रेन को हथियार और डॉलर देकर मदद की गई तो वहीं रूस से आने वाले तेल की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल तक तय कर दी गईं। भारत इन स्थितियों में भी रूस के साथ रहा और उसने अपने दोस्त का साथ छोड़ने से साफ इनकार कर दिया।
भारत निंदा प्रस्ताव से गायब
रूस के यूक्रेन पर हमले की निंदा का प्रस्ताव जब संयुक्त राष्ट्र (UAN) में पेश किया गया तो भारत अनुपस्थित रहा। इसके अलावा पिछले वर्ष रूसी कच्चे तेल के आयात में दस गुना तक इजाफा हुआ है। साथ ही रूसी हथियार और सैन्य उपकरणों की खरीददारी भी भारत ने जारी रखी है। वहीं पिछले दिनों भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ कर दिया कि भारतीय कंपनियों पर रूसी तेल खरीदने के लिए सरकार की तरफ से कोई दबाव नहीं डाला जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘हम अपनी कंपनियों से तेल खरीदने के लिए कहते हैं और उन्हें सबसे अच्छा विकल्प है चुनने की सलाह देते हैं। भारतीयों के हित में जहां हमें सबसे अच्छी डील मिलती है, उस तरफ जाने में ही समझदारी है। हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं।’ रूस से तेल खरीदे जाने पर भी भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों से दूर रखा गया है। साथ ही भारत आयातित रूसी कच्चे तेल को रिफाइन करके तीसरे देशों को बेच रहा है।
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क्या सच होंगे सपने
विदेश नीति के जानकरों के मुताबिक अमेरिका और उसके सहयोगी, भारत को रूस से अलग करने के सपने देख रहे हैं। उनका मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो उनका खेमा मजबूत हो सकता है। मगर वो भी इस बात से वाकिफ हैं कि व्यावहारिक तौर पर यह संभव नहीं है। दक्षिण एशिया में अपने शक्ति संतुलन के लिए उन्हें भारत की जरूरत है। अमेरिकी सुरक्षा जानकार बोरिस रिवकिन ने द टेलीग्राफ में लिखा है कि फिलहाल भारत को रूस से अलग करना नामुमकिन है। अमेरिका अगर ऐसा चाहता है तो फिर उसे बहुत उच्च स्तर की कूटनीति अपनानी होगी, जो थोड़ी मुश्किल है। वहीं बोरिस ने याद दिलाया कि भारत की सेनाओं में 70 से 80 फीसदी तक हार्डवेयर सोवियत संघ या फिर रूस का है। साल 1992 के बाद से हथियारों का दो-तिहाई आयात रूस से हुआ है। अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों को शीत युद्ध के समय से चली आ रही सोच पर काबू पाना होगा। अमेरिका ने भारत पाकिस्तान युद्ध में हमेशा उसके दुश्मन का समर्थन किया था। साथ ही आजादी के बाद से औद्योगीकरण के शुरुआती प्रयासों में भारत को जो मदद चाहिए थी, उसे देने में भी वह असफल रहा था।
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