तिब्बत की पहली (संभावित) महिला पीएम ने चीन पर दिया बेहद चौंकाने वाला बयान!

'चीन धोखेबाज है उसका व्यवहार बेहद संशयात्मक है। उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता। एक तरफ वो आपको बातचीत में उलझाकर रखना चाहता है और दूसरी ओर अपनी सेनाओं को सीमा पर इकट्ठा कर रहा है। इस समय लद्दाख में जो हो रहा है, उसमें कुछ भी नया नहीं है। सिर्फ 1962 की घटनाका दोहराव है। चीन की विस्तारवादी नीति और मानसिकता ही कब्जा करना है। चीन एशिया में अपनी मौजूदगी 'दादा' की हैसियत से दिखाना चाहता है, लेकिन भारत की प्रतिक्रिया से चीन भौचक्क रह गया है, चीन को गहरा सदमा लग गया है।' यह कहना है  तिब्बत की निर्वासित सरकार में गृह मंत्री रही डोलमा ग्यारी का। डोलमा तिब्बत की अगली प्रधानमंत्री हो सकती हैं। लद्दाख के घटनाक्रम को डोलमा चीन की विस्तारवादी नीति का एक हिस्सा मानती हैं। डोलमा ग्यारी का कहना है कि अगर एक बार भारत-तिब्बत सीमा फिर से अस्तित्व में आ जाए तो भारत के सामने फिर कभी ऐसी समस्या नहीं आएगी। इसका मतलब यह है कि भारत सहित दुनिया को औपचारिक तौर पर यह मानना पड़ेगा कि तिब्बत का अलग अस्तित्व  है।मगर तिब्बत पर चीन ने कब्जा कर लिया है। डोलमा कहती है कि 'तिब्बत इस ऑक्युपाइड लैण्ड'। इस तथ्य को स्वीकारना ही पड़ेगा।

भारत सरकार और जनता ने चीन की हिमाकत को गंभीरता से लिया है, और दुनिया के सामने भारत की सरकार से बहुत मजबूती से स्पष्ट कर दिया है इंडियन सरकार अपनी जनता, अपनी सेना की परवाह करती है और देश की सेना सीमाओं की सुरक्षा भी अच्छी तरह कर सकती है। भारतीय सरकार अपने सेना और जवानों के हितों के लिए बेहद संवेदनशील है। यह देखकर आजाद तिब्बत की आशाएं फिर से जागृत हो गयी हैं।

डोलमा कहती हैं, हम तिब्बतियों को मौजूदा भारत सरकार से बहुत उम्मीद है… हम समझते हैं कि तिब्बत का मसला सुलझने पहले भारत की सुरक्षा सर्वोपरी है। मैं ही नहीं दुनिया भर में फैले तिब्बती कहते हैं कि भारत इस समय धर्म और सत्य के साथ खड़ा होना ही पड़ेदा। भारत-चीन सीमा एक मिथ्या है। है भारत-तिब्बत वास्तविकता तो यह है कि भारत और चीन के बीच तिब्बत है। शिमला समझौते की रोशनी में इस को देखा जाना और स्वीकार किया जाना चाहिए। जब भारत-तिब्बत के बीच हैं सीमा रेखा अस्तित्व में आ जाएगी तो भारत-चीन के बीच विवाद खत्म हो जाएंगे। यहीं से रास्ता निकलता है कि तिब्बती अपने नेता दलाई लामा को तिब्बत वापस दिला सकेंगे। ऐसा मेरा विश्वास है।

युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। बातचीत से ही समस्याओं का हल निकाला जा सकता है और बातचीत के लिए मध्यम मार्ग सबसे उचित है। मध्यम मार्ग यानी ऐसी स्थिति जहां सभी के हितों की रक्षा होती हो। लेकिन मध्यम मार्ग का यह मतलब नहीं कि एक प्रपोजल जाए और सालों तक चीन के जवाब का इंतजार करते रहें

चीन व्यवहार बेहद संशयात्मक है। उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता। एक तरफ वो आपको बातचीत में उलझाकर रखना चाहता है और दूसरी ओर अपनी सेनाओं को सीमा पर इकट्ठा कर रहा है।डोलाम ग्यारी कहती हैं कि भारत को तिब्बत कार्ड का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर भारत वन चाईना पॉलिसी को तवज्जोह देरहा है तो क्या चीन भी ऐसा ही कर रहा है, भारत सरकार कोअरुणाच, लद्दाख और सिक्किम के मद्देनजर यह सोचना होगा।

हम 1930 की सीमा को स्थाई सीमा बनाने की बात नहीं करते लेकिन 1951 से पहले जो सीमाएं थीं वो वहाल होनी चाहिए। 1951 में चीन ने दबाव डालकर एकतरफा दबाव डालकर 17 सूत्रीय अवैध समझौता किया था। इस समझौते को दुनिया का कोई देश वैधानिक नहीं मानता है। हम चीन के फ्रेम वर्क में ही तिब्बत स्वायत्तशासी देश चाहते हैं। जहां हमारी सार्वभौमिकता बनी रहे। डोलमा कहती है कि सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि सभी तिब्बतियों को विश्वास है कि भारत त्रिपक्षीय वार्ता की टेबल पर तिब्बत को ला सकता है। भारत को सक्रिए तौर पर तिब्बत कार्ड का इस्तेमाल करना चाहिए। साठ साल हो चुके हैं। भारत सरकार ने कभी तिब्बत कार्ड का इस्तेमाल नहीं किया। अब परिस्थितियां हैं। अगर अब भी ऐसा नहीं हुआ तो फिर अगले 50 साल 60 साल पता नहीं कितने साल इंतजार करना पड़ सकता है। <strong>(साभार-Start News Global पर प्रसारित इंटरव्यू पर आधारित)</strong>

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सतीश के. सिंह

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