ड्रैगन के जाल में फंस गया तालिबान, 31 मिलियन के लालच में अफगानियों का खरबों डॉलर का खजाना लूटने की छूट

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तालिबान ने अफगानिस्तान में कब्जा अकेले के दम पर नहीं किया है इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ चीन और पाकिस्तान का रहा है। ये दोनों देश भारत के खिलाफ हैं और अफगानिस्तान की धरती से भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहते हैं। तालिबान ने जब अफगानिस्तान में कब्जा किया तो सबसे पहले इन्हीं दोनों देशों ने इन्हें मान्यता देने की घोषणा की। पाकिस्तान तो अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी जो-जोर से चिल्ला रहा है को बाकी देश भी तालिबान सरकार को मान्यता दे। चीन के अधिकारी लगातार तालीबानियों के साथ मिल रहे हैं और अब चीन ने अपनी चाल चलते हुए तालिबान को मदद की पहली खेप भेजने की बात कही है।</p>
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चीन ने तालिबान सरकार को मान्यता देने के बाद कहा था कि, वह 310 लाख (31 मिलियन) अमेरिकी डॉलर देगा। अह चीन के राजदूत वांग यू ने कहा है कि इस मदद की पहले खेप कुछ दिनों में काबुल पहुंच जाएगी। राविवार को अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के साथ बैठक के बाद वांग यू ने ये घोषणा की। उन्होंने कहा कि, अफगानिस्तान के लिए चीन की सहायता की पहली खेप आने वाले दिनों में अफगानों को एक भीषण सर्दी से गुजरने में मदद करेगा।</p>
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चीन के राजदूत वांग यू ने कहा कि चीन अफगानों की जरूरतों पर पूरा ध्यान देता है। उसने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देने का फैसला किया है, सहायता के पहली खेप के बाद दूसरी खेप में जरूरत की सामग्री और भोजन भी पहुंचेगा। चीन की इस सहायता के लिए तालिबान के अंतरिम विदेश मंत्री मुत्ताकी ने धन्यवाद किया है। मुत्ताकी ने कहा है कि, यह सही समय पर आया है, दोनों देश हमेशा मित्रवत रहे हैं और एक दूसरे की मदद की है। अफगान सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सहायता उन लोगों तक पहुंचाई जाएगी जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।</p>
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इसके आगे मुत्ताकी न कहा कि, अफगानिस्तान आगे भी चीन के साथ ऐसा दोस्ताना रिश्ता बरकरार रखेगा। मुत्ताकी ने ये भी कहा कि अफगानिस्तान को इस वक्त दूसरे देशों से भी आर्थिक सहायता की जरूरत है। पड़ोसी देशों को इसके लिए आगे आना चाहिए।</p>
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बताते चलें कि, चीन की नजर अफगानिस्तान के खजाने पर भी है। अफगानिस्तान में मौजूद खरबों डॉलर मूल्य की दुर्लभ धातुओं पर चीन की नजर है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि,, अफगानिस्तान में मौजूद दुर्लभ धातुओं की कीमत 2020 में एक हजार अरब डॉलर से लेकर तीन हजार अरब डॉलर के बीच लगाई गई थी। इन कीमती धातुओं का इस्तेमाल हाई-टेक मिसाइल की प्रणाली जैसी उन्नत तकनीकों में प्रमुख तौर पर किया जात है और चीन की नजर इसी पर है। वहीं, चीनी कंपनियों ने पहले ही खदान और निर्माण संबंधित परियोजनाओं में सैकड़ों मिलियन डॉलर का निवेश कर चुकी हैं।</p>
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आईएन ब्यूरो

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