“चीन खेल रहा है उइगरों की मौत का खेल, लेकिन दुनिया चुप है। हालात काफी खराब है..जितना मिडिया में आ रही हैं, उससे भी कहीं ज्यादा। उइगर इलाके में लोग लापता है..वहां हर तरफ मौत है..मौत का सन्नाटा है।" यह कहना है उइगर-अमेरिकन डॉ. अर्किन सिडिक का। डॉ. सिडिक अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में इंजीनियर है।
<strong>जेम्सटाउन फांउडेशन</strong> और एसोसिएट प्रेस की रिपोर्ट्स भी इन खुलासों का समर्थन करते हैं। जेम्स फांउडेशन ने कई ऐसी महिलाओं से से बातचीत की, जिन्हें इन कैंपों में रखा गया था। उनका कहना था, कि महिलाओं का जबरदस्ती गर्भपात और सर्जिकल नसबंदी कराया जाता है। इस रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह है कि चीन की सरकार उइगरों के अंगों की दुकान भी चला रही है। उनकी सबसे ज्यादा बिकने वाली चीज है हलाल किडनी, जिसकी जबरदस्त मांग है।
खाड़ी और मुस्लिम देशों के लोग चाहते हैं कि किडनी प्रत्यारोपण के लिए मुसलमानों की किडनी ही मिले, जिसे हलाल किडनी कहा जाता है। चीन के शिनजियांग राज्य में ऐसे कई अस्पताल हैं, जहां विदेशों से आए मुसलमानों को हलाल किडनी दी जाती है। गवाहों के मुताबिक यह सब कुछ ताजा होता है।
शिनजियांग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों के पास उइगर मुसलमानों के ब्लड ग्रुप के साथ-साथ बाकी जानकारी का डाटा बेस है। जब भी कोई हलाल किडनी का खरीदार आता है, तो उइगरों के कैंप से एक शख्स को हलाल कर दिया जाता है। पाकिस्तान, सउदी अरब, टर्की जैसे देशों से लोग हलाल किडनी के लिए वहां जाते हैं।
चीन के शिनजियांग प्रांत के अक्सू में उइगर परिवार में जन्में डॉ. अर्किन सिडिक ने शिनजियांग विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। बाद में आगे की पढ़ाई के लिए 1990 में अमेरिका गए लेकिन वापस नहीं लौटे। वजह साफ थी, उन्हें पता था कि उइगरों का भविष्य चीन में सुरक्षित नहीं है। आज सिडिक, उइगरों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई संस्था <strong>उइगर प्रोजेक्ट फाउंडेशन</strong> के प्रेसीडेंट और <strong>वर्ल्ड उइगर कांग्रेस</strong> के सलाहकार भी हैं और चीन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। डॉ. सिडिक पूर्वी तुर्किस्तान भी कहे जाने वाले शिनजियांग प्रांत के मूल निवासी हैं और इस्लाम को मानते हैं।
यूरोपियन संसद और ब्रिटेन की सरकार ने लोगों से कहा है कि किडनी के लिए चीन जाने से परहेज करें। उइगरों से संबधित कई संस्थाओं , मानवाधिकार से जुड़ी एजेंसियों ने संयुक्त राष्ट्र के साथ साथ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में चीन की सरकार के खिलाफ गुहार लगाई है। डॉ. सिडिक का दुख यह भी है मुस्लिम हितों की बात करने वाले तमाम इस्लामिक देश उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार पर चुप हैं। क्योंकि वो राष्ट्रपति शी के बेल्ट रोड के प्रोजेक्ट में शामिल हैं और एवज में उन्हें चीन से मोटी रकम मिल रही है।
चीन ने उइगरों को क्षेत्रीय जाति का दर्जा दिया हुआ है। शुरू से ही चीन में उनसे अल्पसंख्यक समुदाय के तौर पर भेद-भाव किया जाता रहा था। लेकिन चीन में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद उइगर समुदाए पर कहर टूट पड़ा। 2014 में चीन कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो की बैठक में यह तय किया गया कि उइगरों के अलगाव की नीति को पूरी तरह से कुचलने के लिए उनकी पहचान, उनकी संस्कृति, उनकी सभ्यता को ही जड़ से खत्म करना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले बुर्का पहनने, दाढ़ी रखने और पांच वक्त की नमाज पढ़ने पर पाबंदी लगा दी गई। कई मस्जिदों को तोड़ कर वहां सर्वजानिक शौचालए बनाए गए। जिन जगहों पर उइगरों की संख्या ज्यादा थी, वहां पर दूसरे राज्यों से लाकर हान जाति को बसाया गया।
चीन सरकार की तरफ से उइगर और हान जाति बीच विवाह को भी बढ़ाया दिया जाने लगा। मकसद साफ था, उइगरों की पूरी नस्ल का सफाया। जब उइगरों ने इसका विरोध किया तो चीनी सरकार ने उनको बेरहमी से कुचल दिया। शिनजियांग प्रांत में यातना शिविर (concentration camps) खोले गए। लेकिन चीन सरकार ने कहा कि ये स्कूल हैं, जहां उइगरों को स्किल ट्रेनिंग दी जाती है। उइगरों का दावा है इन स्कूलों में यातनाएं दी जाती हैं।
सिडिक का दावा है कि राष्ट्रपति शी ने 2014 में ही एक नीति बना ली थी कि उइगर नस्ल को कमजोर करना है और इसकी शुरुआत में उइगरों की मौजूदा जनसंख्या को कम करना है। “उइगर के एक-तिहाई लोगों के मारने, एक-तिहाई को नजरबंद करने और एक-तिहाई को कम्युनिस्ट पार्टी की विचार में शामिल करने का एक गोपनीय फैसला लिया गया था।”
सिडिक के मुताबिक इस वक्त शिनजियांग के कैंपों में उइगरों की संख्या सेकेन्ड वर्ल्ड वॉर के दौरान हिटलर के कैंपों में बंद यहूदियों की संख्या से कहीं ज्यादा है। और जितने यहूदी मारे गए थे, उससे उइगरों की संख्या काफी ज्यादा है। 2016 में क्षेत्र में उइगर मुसलमानों की संख्या 1 करोड़ से भी ज्यादा है। ह्यूमन राईट्स वाच की 1918 की रिपोर्ट के अनुसार करीब 10 लाख लोगों को चीन की सरकार ने इन कैंपों में कैद रखा है। सिडिक का कहना है, “यह आंकड़े तो दो साल पुराने हैं..सही संख्या तो इससे कहीं ज्यादा है।”
सिडिक का कहना है कि चीन में उनके कई स्रोत हैं, जिनसे सही खबरें मिलती हैं, “एक कस्बे में जहां 2016 में 92000 मुस्लिम रहते ते आज वहां सिर्फ 20000 लोग बचे हैं। बाकी 80 फीसदी गायब हैं। कासगर और होतान में तो और भी बुरा हाल है..वहां तो 90 फीसदी कहां हैं किसी को कोई पता नहीं।”
सिडिक का कहना है कि “चीनी सरकार काफी चालाकी से काम कर ही है। जब भी इंटरनेशल मिडिया में खबरें आती हैं, चीनी सरकार (प्रुफ विडियो) जारी करती है। जिसमें उइगरों को कैंप से बाहर खुशी खुशी बाहर आते हुए दिखाया जाता है, अपने परिवारों के साथ गले मिलते दिखाया जाता है..मामला शांत हो जाता था।”
लेकिन चीन की तरह उइगर के लोग भी चालाकी से आधुनिक तकनीक जैसे इंटरनेट प्रौक्सी के सहारे सरकार की करतूतों का कच्चा-चिट्ठा दुनिया के सामने ला रहे हैं। पिछले महीने कैंप से रिहा हुए ओलेबिनूर सिडिक ने बताया कि दो साल के कैंप की जिंदगी में उन्होंने देखा कि कि किस तरह लड़कियों का बलात्कार किया जाता है। पुरुषों और महिलाओं की जबरन नसबंदी कराई जाती है। हर तरह से टॉर्चर किया जाता है और इस दौरान अगर कोई मर जाता है तो उन लाशों को केमिकल के जरिए गला दिया जाता है, ताकि कोई सबूत न रहे।
करोना वायरस के मुद्दे के बाद चीन अब करोना वैक्सीन का परीक्षण बेकसूरों पर कर रहा है। सिडिक की रिपोर्ट के मुताबिक “राजधानी उरुम्शी में एक बड़ा कांप्लेक्स बनाया गया है। जहां हजारों उइगरों को लॉकडाउन में रखा है। हरेक परिवार से एक-एक नौजवान लड़कों को दूर किसी हॉस्पिटल में रखा जा जाता है। पहले उन्हें करोना वायरेस से संक्रमित किया जाता है और फिर उन पर करोना वैक्सीन का टेस्ट किया जा रहा है।”
जानकारों का कहना है कि पुराने जमाने में सिल्क रोड पूर्वी तुर्कीस्तान यानि शिनजियांग से गुजरता था। मौजूदा बेल्ट रोड भी इसी राज्य से गुजरता है। यही वजह है कि चीनी सरकार उइगर जाति का नामो-निशान मिटाना चाहती है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से जब पूछा गया कि वह कश्मीर के मुसलमानों की बात करते हैं और क्यों उइगर मुसलमानों का जिक्र नहीं करते। इमरान खान ने कहा, “..मुझे पूरी घटना का पता नहीं है।”
लेकिन जब बार-बार सवाल दोहराया गया तो खीज कर उन्होंने कहा, “क्या बात करते हैं..कैसे चीन के खिलाफ..चीन ने हमारी मदद की है उस वक्त जब हमारे साथ कोई खड़ा नहीं था।”
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