नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल का चीन (China) दौरा जारी है। प्रचंड ने चीन (China) के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से लेकर प्रधानमंत्री ली कियांग से मुलाकात की है। चीन और नेपाल के बीच 13 सूत्री संयुक्त बयान जारी हुआ है। विशेषज्ञों के मुताबिक प्रचंड के दौरे से नेपाल और चीन के बीच रिश्तों में कोई बड़ी या उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली है। आलम यह रहा है कि चीन और नेपाल के बीच किसी नए समझौते पर भी हस्ताक्षर नहीं हुआ। यही नहीं चीन चाहता था कि नेपाल उसके सैन्य गठबंधन जीएसआई में शामिल हो जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यही नहीं बीआरआई पर भी चीन को कोई खास सफलता नहीं मिली। नेपाली पीएम ने चीन के साथ देश के नए नक्शा का मुद्दा उठाया या नहीं, यह भी अभी पता नहीं चल पाया है।
प्रचंड की यात्रा में जो सबसे अहम पहलू निकलकर आया, वह है कि नेपाल ने ताइवान की स्वतंत्रता का विरोध खुलकर किया है। इससे पहले तक नेपाल केवल ‘एक चीन नीति’ की बात करता था, अब वह ‘एक चीन सिद्धांत’ पर सहमत हो गया है। एक चीन सिद्धांत कहता है कि चीन की सरकार ही ताइवान का कानूनी प्रतिनिधित्व करती है। नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री नारायण खडका कहते हैं, ‘क्या प्रधानमंत्री प्रचंड ने चीनी नेतृत्व से नक्शे का मुद्दा उठाया जो देश के क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता से जुड़ा हुआ है? अगर उन्होंने ऐसा किया तो इसका संयुक्त बयान में जिक्र होना चाहिए था ताकि देश को यह पता चलता।’
खड़का ने कहा कि प्रचंड की यह यात्रा बेहद साधारण रही और ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसे महत्वपूर्ण कहा जा सके। नेपाल और चीन के बयान में बीआरआई का जिक्र है और कहा गया है कि दोनों देश सहयोग को बढ़ाएंगे। चीन (China) बीआरआई के लिए लोन देना चाहता है लेकिन प्रचंड इसके लिए तैयार नहीं हुए। प्रचंड ग्रांट की मांग कर रहे हैं। चीन के काफी दबाव के बाद भी नेपाल ने जीएसआई को मंजूरी नहीं दी। इसके कई विशेषज्ञ चीन का नाटो मानते हैं। नेपाल के साथ जारी संयुक्त बयान में जीएसआई का कोई जिक्र नहीं किया गया। नेपाल ने साफ कर दिया कि जीएसआई एक सैन्य गठबंधन है जो उसकी गुटनिरपेक्षता की नीति का विरोध करता है। नेपाल ने चीन के जीडीआई समर्थन किया है।
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चीन (China) के पूर्व विदेश मंत्री प्रदीप ग्यवली ने कहा कि पीएम प्रचंड चीन दौरे पर उन वादों को भी पूरा नहीं कर पाए जिनका उन्होंने संसद में वादा किया था। उन्होंने कहा कि संसद में प्रचंड ने कहा था कि इस चीन दौरे पर नए बिजली व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होगा और बीआरआई का क्रियान्वयन होगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ग्यवली ने कहा कि पिछले कुछ समय से चीन के साथ भरोसा बहुत नीचे चला गया है लेकिन हम नहीं जानते हैं कि प्रचंड इस भरोसे को वापस ला पाए या नहीं। उन्होंने कहा कि ट्रांसमिशन लाइन का समझौता नया नहीं है और न ही यह सफलता है।
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