यूएन में भारत को वीटो नहीं मिलने पर भारत ने अपनी दावेदारी की ठोस बुनियाद दिखानी शुरु कर दी है। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कम्बोज और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूएन में धमाकेदार ऐलान कर दिया,जिसके बाद सुरक्षा परिषद के 5 वीटो वाले देश ख़ासकर चीन की बेचैनी बढ़ गई है। रुचिरा कम्बोज ने खुलेआम ऐलान कर दिया है कि सिर्फ 5 स्थायी सदस्यों की राय को 188 देशों पर नहीं थोपा जा सकता।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की ओर से स्थायी प्रतिनिधि के तौर पर तैनात रुचिरा कम्बोज ने कहा कि 77 साल पुराने इस क़ानून को बदलने का वक्त आ गया है। साथ ही उन्होंने कहा कि आज भी अगर 1945 के हिसाब से काम किया जाएगा, तो संयुक्त राष्ट्र संघ की कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाएगी।रुचिरा कम्बोज ने वीटो राष्ट्र को जमकर लताड़ लगाई। वहीं, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कड़े रुख़ अख़्तियार करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र 77 साल पुराना हो चुका है,लिहाजा इसे नए रूप और नियम दिए जाने की जरूरत है।
हिन्दुस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों को स्पष्ट रूप से संदेश दे दिया है कि अब भारत का सब्र टूट चुका है,या तो भारत की मांग पर कोई ठोस कार्रवाई की जाए,या फिर भारत के विरोध को सहने के लिए सुरक्षा परिषद तैयार रहे। भारत की ओर से एस जयशंकर और रुचिरा कम्बोज के बयान के बाद सभी सदस्य देशों में अफरा तफरी मची हुई है।
भारत लम्बे अर्से से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है। साथ ही भारत यूएनएससी में कई बदलाव की मांग भी कर रहा है। लेकिन हर बार भारत की इस मांग को दरकिनार कर दिया जाता रहा है। इस अनदेखी को भारत बखूबी समझ गया है,लिहाजा भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कम्बोज ने शख्त लह़जे में कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्य देश 188 देशों के ऊपर दादागिरी कर रहे हैं,जो अब चलने वाला नहीं है।रुचिरा कम्बोज ने सुरक्षा परिषद के इन पांच देशों पर आरोप लगाते हुए कहा कि ये पांचो देश एक-दूसरे को ताक़त देते हैं और 188 देशों के हितों को नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के स्थापना के समय से ही भारत इसका हिस्सा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर 26 जून 1945 को भारत ने हस्ताक्षर किये थे,तब से लेकर आज तक दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से बाहर रखने की साजिश रची जा रही है। अफ्रिका और लैटिन अमेरिका के पूरे कॉन्टिनेन्ट को अभी तक कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है,जो बेहद गंभीर विषय है। लिहाजा ऑस्ट्रिया में एस जयशंकर ने खुले तौर पर कह दिया है कि संयुक्त राष्ट्र में बदलाव लाना भारत के विदेश नीति का अहम हिस्सा बन चुका है।
भारत की इस दहाड़ से पूरी दुनिया में खलबली मच गई है,चूंकि भारत 140 करोड़ आबादी वाला देश है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश के साथ-साथ दुनिया की 5वीं अर्थव्यवस्था वाला देश है। जल्द ही तीसरी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जायेगा। इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र को भारत सबसे ज्यादा मदद देने वाला देश है,जो प्रत्येक साल 44 मिलियन डॉलर मदद करता है। और तो औऱ भारत सबसे ज्यादा यूएन की पीस किपिंग मिशन में भी हिस्सा ले चुका है।
हालांकि भारत को लेकर फ्रांस,ब्रिटेन ,रूस औऱ अमेरिका जैसी महाशक्तियां अपना सपोर्ट पहले से ही दे रखी है। इन देशों ने भारत को वीटो देने का ऐलान भी कर चुकी हैं।लेकिन हर बार चीन इसका विरोध करता है। लेकिन इस बीच जो भारत के लिए सबसे अच्छी बात है,वह यह कि संयुक्त राष्ट्र के 90 प्रतिशत से ज्यादा देश भारत को वीटो देने के पक्ष में एकजुट हो चुके हैं। लिहाजा अब चीन की दादागिरी ज्यादा दिन तक चलने वाली नहीं । क्योंकि भारत इसबार एक साथ न सिर्फ अपने लिए बात कर रहा है,बल्कि 188 देशों के हितों की आवाज़ बन रहा है। भारत के सपोर्ट में जो सबसे आगे खड़ा है, वे हैं- अफ़्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे ग़रीब कन्ट्री।
भारत की मांग है कि संयुक्त राष्ट्र में स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या को बढ़ाई जाए,क्योंकि वर्तमान समय में स्थिति और परिस्थिति दोनों बदल चुकी है। भारत का कहना है कि 1945 के मुकाबले अब नई दुनिया आ चुकी है,दुनिया की आबादी भी काफी बढ़ चुकी है,दुनिया में अलग-अलग तरह की टेक्नॉलोजी आ चुकी है, और क्राइम के नए तरीके भी उपद्रवियों ने अख्तियार कर लिये हैं। लिहाजा अब यूएनएससी के नियमों मे बदलाव लाने की खासा जरुरत है।
दुनिया में कई ऐसे देश हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खुद को बेहतर साबित कर रहे हैं,भारत उन्हीं देशों में से एक है,जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनायी है।जापान भी टेन्क्नॉलोजी के मामले में काफी आगे बढ चुका है,तो वहीं फ्रांस की तुलना में जर्मनी भी एक मजबूद इकॉनोमी पावर बन चुका है। यानी अब दुनिया का विस्तार हो चुका है,इसलिए संयुक्त राष्ट्र को भी अपना विस्तार करना होगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के नियम के मुताबिक इसके स्थायी सदस्य को 9 सदस्य तक बढ़ाया जा सकता है। भारत इसी बात की मांग कर रहा है। अगर भारत की इस मांग को पूरा नहीं किया गया, तो भारत कोई बड़ा कदम उठा सकता है,जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े बदलाव की संभावनायें बन सकती है। बता दें कि भारत ,ब्राजिल और जर्मनी ने मिलकर एक G-4 का गठन किया है,जिससे युनाइटेड नेशन भी घबरा गया है।
जिस दौरान संयुक्त राष्ट्र का निर्माण किया गया,उस समय ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति हुआ करता था, चीन ताइवान और भारत समेत 23 देशों की जमीन को जबरन कब्जाने में लगा हुआ है,और रूस खुद अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को भंग करने में लगा हुआ है। अमेरिका ने अफगानिस्तान ,इराक समेत वियतनाम पर जबरन जंग थोप दी। जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का काम है कि दुनिया में शांति और सुरक्षा बहाल करना,लेकिन इसी काउंसिल के स्थायी सदस्य इसके नियम को बार बार भंग करने में लगे हुए हैं। ऐसे में भारत का कहना है कि जब इस परिषद के सभी 5 स्थायी सदस्य देश अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए दुनिया को गर्त में धकेल रहा हो, तो फिर इस परिषद में बदलाव क्यों नहीं ।
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