सलमान रुश्दी पर फतवा जारी होने के 33 साल बाद जानलेवा हमला, कट्टरपंथियों के निशाने पर क्यों है यह लेखक

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सिर्फ दो दिन और जब 15अगस्त को भारत अपनी आजादी के 75साल पूरे करने जा रहा है। भारत को ये आजादी 15अगस्त 1947को मिली और इससे लगभग दो महीने पहले 19जून 1947को मुंबई में सलमान रुश्दी का जन्म हुआ। जो आज एक बड़े लेखक के रूप में पहचाने जाते हैं। आजादी के दिन आधी रात को पैदा होने वाले बच्चों पर उन्होंने 'मिडनाइट चिल्ड्रन' जैसी कालजयी कहानी रची और इसी उपन्यास ने उन्हें 1981में पहले उन्हें बुकर अवार्ड दिलाया और बाद में वह 'बुकर ऑफ द बुकर्स' जैसा सम्मान पाने वाले लेखक भी बने।</p>
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<strong>सलमान रुश्दी पर हमला</strong></p>
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हाल ही में सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में चाकू से जानलेवा अटैक किया गया है। फ़िलहाल वो  जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहे हैं, लेकिन इस तरह का हमला करने और जान से मारने की धमकी उन्हें काफी पहले से मिलती रही है। सलमान रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज' किताब ने ऐसे विवादों को जन्म दिया, जो जिंदगीभर उनके साथ बने रहे। उनकी इस किताब को इस्लाम विरोधी और ईश निंदा करने वाला माना गया। इसी वजह से 1980के दशक में उन्हें ईरान से जान से मारने की धमकियां मिलीं। ये किताब 1988से ही ईरान में बैन है, लेकिन इसकी वजह से सलमान रुश्दी हमेशा चरमपंथियों के निशाने पर रहे।</p>
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<strong>ईरान से निकाला था फतवा</strong></p>
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दरअसल, सलमान रुश्दी को ईरान से मिली और ये धमकी किसी भी हालत में मामूली नहीं थी, क्योंकि उन्हें मारने वाले को 30लाख डॉलर इनाम देने का ऐलान हुआ था। वहीं ईरान में गणतंत्र के संस्थापक और देश के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह रुहोल्ला ख़ुमैनी ने उनके खिलाफ 1989में फतवा भी जारी किया था। हालांकि बाद में ईरान की सरकार ने इसे उनका निजी विचार बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया था। साल 2012में भी सलमान रुश्दी को जान से मारने की धमकी मिली और ईरान के एक धार्मिक संगठन ने ईनाम की राशि को बढ़ाकर 33लाख डॉलर कर दिया।</p>
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भारत में सलमान रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज' पहले से बैन थी और जब 1989 में ईरान ने उनके खिलाफ फतवा जारी किया, उसके कुछ ही दिन बाद मुंबई में एक दंगे में 12 लोगों की मौत हो गई। इंग्लैंड की सड़कों पर ना सिर्फ सलमान रुश्दी के पुतले जलाए गए। बल्कि उनकी किताब की प्रतियां भी जलाई गईं। इस किताब की वजह से रुश्दी लगभग एक दशक से भी ज्यादा समय तक 'सेफ हाउस' में रहने को मजबूर रहे। लेकिन उन्होंने लिखना बंद नहीं किया। धीरे-धीरे उन्होंने वापस सामान्य जनजीवन जीना शुरू किया। वह पार्टियों और समारोहों में नजर आने लगे।</p>
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आईएन ब्यूरो

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