Demon Dragon: तिब्बतियों का नरसंहार कब रुकेगा, कैसे बचेगा तिब्बती सांस्कृतिक ताना-बाना, अगला दलाई लामा कौन?

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तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा 6 जुलाई को 87 साल के हो जाएंगे। उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट (CHASE) और तिब्बती यूथ कांग्रेस ने संयुक्त रूप से 3 जुलाई को "दलाई लामा के सामने चुनौतियां" विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया। इस आयोजन में दुनिया के कई देशों के लोगों ने भाग लिया जिसमें, पैनलिस्ट विशेषज्ञ बर्लिन से जर्मनी के लिए तिब्बत के लिए अंतर्राष्ट्रीय अभियान (ICT) के कार्यकारी निदेशक श्री काई मुलर। इनके अलावा उइगर फ्रिडम फोरम (UFF) और कैनबरा नेता नर्गुल सॉवत साथ ही ऑस्ट्रेलिया से उइगर फ्रीडम फोरम (यूएफएफ) की कार्यकारी अध्यक्ष लग्यारी नामग्याल डोलकर जो एक लोकप्रिय तिब्बती नेता और धर्मशाला से तिब्बती संसद सदस्य हैं। इनके अलावा चेस के अध्यक्ष और एक अनुभवी तिब्बत विज्ञानी श्री विजय क्रांति ने चर्चा में अहम भाग लिया।</p>
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<strong>तिब्बितियों की आजादी के लिए दुनिया को चीन के खिलाफ आना होगा एक साथ</strong></p>
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तिब्बत में चीन इस वक्त अंदर ही अंदर कई खेल, खेल रहा है। यह दुनिया के सामने आना जरूरी है। आज दुनिया अन्य मुद्दाओं में उलझी हुई है लेकिन, तिब्बत में चीन के बढ़ते कदम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। तिब्बत के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती यह है कि दलाई लामा के बाद यहां का धर्मगुरु कौन होगा। क्योंकि, चीन पूरी ताक में है कि वो यहां पर अपने किसी को धर्मगुरु की उपाधी दे जिसके बाद वो अपने मन मुताबिक यहां पर अपने नीतियों को लागू कर सके और तिब्बित के लो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकेंगे। ऐसे में दुनिया को एक साथ, एक स्वर में तिब्बत को लेकर आवाज बुलंद करनी होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो तिब्बत भी चीन के शिजियांग प्रांत की तरह सर्विलांस में बदल जाएगा और पूरे तिब्बती नागरिक चीन की कैद में होंगे।</p>
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<strong>तिब्बती बच्चों का ब्रेनवॉश कर रहा ड्रैगन</strong></p>
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इस आयोजन में चर्चा हुई की दलाई लामा के बाद अगले धर्मगुरु का चयन कैसे होगा। क्योंकि, चीन अब दावा करने लगा है कि दलाई लामा के बाद उसके चयन किए गए तिब्बत के धर्म गुरु होंगे। इस मुद्दे पर दलाई लामा के रुख शामिल थे जिसमें, तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान (शिनजियांग), दक्षिण मंगोलिया (आंतरिक मंगोलिया), हांगकांग और चीन के अंदर लोकतंत्र आंदोलन के लोगों के लिए दलाई लामा का सामान्य महत्व। चीनी कब्जे वाले तिब्बत के अंदर चल रहे सांस्कृतिक नरसंहार और तिब्बती भाषा पर बीजिंग सरकार की दमनकारी नीतियां, तिब्बती बौद्ध धर्म, तिब्बती बच्चों का जबरन ब्रेनवॉश करना और तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण तिब्बत में गंभीर पारिस्थितिक क्षति हो रही है।</p>
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<strong>पूर्वी तुर्किस्तान और दक्षिण मंगोलिया के साथ ही तिब्बत का भी दुश्मन एक</strong></p>
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इस कार्यक्रम के दौरान सुश्री नर्गुल सावत ने बताया कि पिछले छह दशकों के निर्वासन में दलाई लामा द्वारा अर्जित सम्मान और प्रभाव न केवल तिब्बत के लोगों और चीनी उपनिवेशवाद के खिलाफ उनके स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक महान संपत्ति है, बल्कि वह अन्य राष्ट्रों के लिए एक समान संपत्ति है। इसके आगे उन्होंने कहा कि, जैसे पूर्वी तुर्किस्तान और दक्षिण मंगोलिया जो अपनी आजादी के लिए एक ही दुश्मन से लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह और उनके साथ उइगर लोग दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बती लोगों द्वारा निर्वासित सरकार की स्थापना और कामकाज में प्रदर्शित अनुशासन और संगठन कौशल से अत्यधिक प्रभावित हैं। उइगर लोग भी पूर्वी तुर्किस्तान पर चीन के औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ने के लिए समान रूप से प्रभावी निर्वासित सरकार स्थापित करने की उम्मीद कर रहे हैं।</p>
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<strong>दलाई लामा के चलते पूर्वी तुर्किस्तान में चीन द्वारा किया गया नरसंहार दुनिया की नजरों में आया</strong></p>
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इसके आगे उन्होंने कहा कि, चीन इससे पहले पूर्वी तुर्किस्तान में धार्मिक और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों को नष्ट करने और उइगर और अन्य तुर्क लोगों की व्यापक नजरबंदी के अपने मौजूदा अभियान को शुरू किया। यही उसने तिब्बत में भी किया था। तिब्बत की आबादी बहुत ही काम है जिसके चलते दुनिया को तिब्बत पर ड्रैगन के नीतियों के प्रभाव का ज्यादा पता नहीं चलता है। लेकिन, प्रभावित आबादी के विशाल आकार के कारण पूर्वी तुर्किस्तान में नजरबंदी शिविर और मस्जिदों को तोड़ने पर ये विश्व की नजरों में आया। उन्होंने 2009 के उस भायनक दौर को याद किया किया जिस दौरान चीन सेना और पुलिस ने पूर्वी तुर्किस्तान के उरुमकी शहर में बिजली बंद कर दी थी, हजारों उइगर नागरिकों को उनके घरों से बाहर निकाल कर सड़कों पर उनका नरसंहार किया। इस मुद्दों को उठाने वाले कोई और नहीं दलाई लामा ही थे जिन्होंने विश्व स्तर पर इस मुद्धे को उठाया जिसके बाद चीन की आलोनचा हुई और उइगरों के पक्ष में लोगों ने बात की और समर्थन किया।</p>
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<strong>तिब्बती बच्चों को जबरन चीनी बोर्डिंग स्कूलों में डाल रहा ड्रैगन</strong></p>
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वहीं, श्री काई मुलर ने तिब्बत में चल रहे सांस्कृतिक-नरसंहार पर आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि, आज दलाई लामा और उनके देशवासियों के सामने प्रमुख चुनौतियों में से ये एक है। "तिब्बती संस्कृति पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) पूरे प्लान के साथ हमला कर रही है। उन्होंने बताया कि, चीन तिब्बत में शिक्षा-भाषा, धर्म और तिब्बती जीवन शैली को पूरी तरह से बदलना चाहता है। स्कूलों में तिब्बती भाषा को चीनी भाषा के साथ बदलने की बीजिंग की नीति ने तिब्बती समाज को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। साथ ही, बहुत छोटे तिब्बती बच्चों को जबरन चीनी बोर्डिंग स्कूलों में डालने के लिए चीन के नए अभियान का उद्देश्य चीनी कम्युनिस्ट प्रचार के साथ तिब्बतियों की एक पूरी पीढ़ी का ब्रेनवॉश करना है।</p>
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<strong>तिब्बती नेता, बुद्धिजीवी और लेखकों को गायब कर रहा ड्रैगन</strong></p>
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चीन अपनी चालबाजी के लिए जाना जाता है। चीन इस वक्त लगभग दो मिलियन से भी ज्यादा तिब्बती नागरिकों की जमिनों को हथिया लिया है। उन्हें उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक जड़ों से अलग कर किसी दूसरे जगह पर रहने के लिए मजबूर कर दिया है। मुलर ने कहा कि, चीन इन सब के पीछे पर्यावरण को बचाने या उसके सामाजिक सुधारे जैसे झूठे बहाने का तर्क देता है। उन्होंने आगे कहा कि, कई तिब्बती नेता, बुद्धिजीवी और लेखक जो तिब्बती नागरिकों के हित में शांतिपूर्व मांग करते हैं चीन उन्हें ही गायब कर देता है। यहां पर CPC अब अपने अधिकार का दावा कर रहा है। उन्होंने कहा कि, चीन अगले दलाई लामा की नियुक्ति करना चाहता है। यह तिब्बती बौद्ध धर्म के दिल पर प्रहार करता है।</p>
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इस बीच तिब्बती सांसद सुश्री लग्यारी नामग्याल डोलकर ने दृढ़ता से दावा किया कि तिब्बत के लोग दलाई लामा के बाद चीन के योजना को सफल नहीं होने देंगे। तिब्बती व्यवस्था में दलाई लामा की संस्था की केंद्रीयता और वर्तमान 14वें दलाई लामा की उपलब्धियों पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने तिब्बत के अंदर और साथ ही निर्वासन में तिब्बतियों और तिब्बती राष्ट्र को इतना सशक्त बनाया है कि वे खड़े रह सकें। चीनी शासन से सभी चुनौतियों तक के सामने डट कर खड़े रह सके। उन्होंने कहा कि, एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना और दुनिया भर में लाखों लोगों का दिल जीतकर दलाई लामा ने सभी तिब्बती पीढ़ियों को एक नया आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प दिया है, खासकर अपने छह दशकों के दौरान। उन्होंने कहा कि, वर्तमान दलाई लामा के खिलाफ चीनी नेता लगातार अपमानजनक और आक्रामक भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसा कर वो अपने ही पैरों पर कुल्हाणी मार रहे हैं।</p>
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उन्होंने कहा कि, चीन चाहता है कि तिब्बत के लोग भी मान ले की ये चीन का हिस्सा रहा है और उसके सारे दावों को स्वीकार कर लें। उन्होंने कहा कि चीन के कम्युनिस्ट शासक चाहते हैं कि हम उस इतिहास को बदल दें जिसे तिब्बतियों ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। इस वेबिनार के अंत में इसके सह-मेजबान और टीवाईसी के महासचिव श्री सोनम त्सेरिंग ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि वर्तमान दलाई लामा के व्यक्तित्व की न केवल तिब्बती लोगों ने बल्कि पूरे विश्व समुदाय ने प्रशंसा की है। उनका जो व्यक्तित्व है उसके लिए पूरी दुनिया की सहानुभूति उनके साथ है। उनका शांति, अहिंसा और सार्वभौमिक उत्तरदायित्व का संदेश आज विश्व समुदाय के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश बन गया है। उन्होंने कहा कि, दलाई लामा स्वयं और तिब्बती समुदाय, जिन्हें उन्होंने हाल के दशकों में अत्यधिक सशक्त बनाया है, तिब्बत पर चीनी हमले से सफलतापूर्वक निपटने में सक्षम हैं।</p>

Vivek Yadav

Writer

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