अंतर्राष्ट्रीय

भारत-पाक बंटवारे से अलग हुए सिख भाई ने मुस्लिम बहन को करतारपुर में लगाया गले

मुस्लिम बहन: भारत का बटंवारा हुए 75 साल का समय पूरा हो गया है। लेकिन आज भी कुछ ऐसे जख्म हैं, जिन्हें कुछ परिवारों की ओर से लगातार सहा जा रहा है। गौरतलब है, भारत का बंटवारा होने और पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के समय कई परिवारों के सदस्य बिछड़ गए थे। बंटवारे के बाद आज भी कई ऐसे परिवार हैं, जो एक दूसरे से मिलने की ख्वाहिश में हैं। ऐसी ही ख्वाहिश भारत में रहने वाले अमरजीत सिंह और पाकिस्तान में रहने वाली उनकी बहन कुलसुम अख्तर की पूरी हुई है।

वैसे भारत में रहने वाले अमरजीत सिंह और पाकिस्तान (Pakistan) में रहने वाली उनकी बहन कुलसुम अख्तर की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। भाई-बहन की इस कहानी में जहां फिल्मी स्क्रीप्ट की तरह बिछड़ना और फिर किसी के जरिए 75 साल बाद मिलने वाला इमोशन है तो वहीं बंटवारे के समय कई परिवारों के एक-दूसरे से बिछड़ने वाला ड्रामा भी है।  दरअसल, कहानी पंजाब के जालंधर में रहने वाले सिख अमरजीत सिंह और पाकिस्तान फैसलाबाद में रहने वाली कुलसुम अख्तर की है। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त अमरजीत अपनी एक बहन के साथ जहां भारत में ही छूट गए थे जबकि उनके माता-पिता अपने अन्य बच्चों के साथ पाकिस्तान चले गए। उस वक्त कुलसुम का जन्म भी नहीं हुआ था।

बुधवार को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के करतारपुर (Kartarpur) स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब में 75 सालों बाद अमरजीत सिंह की अपनी बहन कुलसुम अख्तर से मुलाकात हुई। अमरजीत सिंह वीजा के साथ अटारी-वाघा सीमा से पाकिस्तान पहुंचे थे, जबकि उनकी बहन 65 साल की कुलसुम फैसलाबाद से अपने भाई से मिलने आई थी। दोनों की जब मुलाकात हुई तो उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया और दोनों कुछ देर तक रोते रहे। कुलसुम अख्तर अपने बेटे शहजाद अहमद और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अमरजीत से मिलने के लिए फैसलाबाद से आई थी।

उम्मीद नहीं थी हो पाएगी मुलाकात

कुलसुम बेटे शहजाद अहमद और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने भाई से मिलने के लिए फैसलाबाद से करतारपुर (Kartarpur) पहुंची थीं। अखबार से बात करते हुए कुलसुम ने कहा कि उनके माता-पिता 1947 में जालंधर के एक उपनगर से पाकिस्तान चले आये थे जबकि उनके भाई और एक बहन वहीं छूट गए थे। कुलसुम ने कहा कि वह पाकिस्तान में पैदा हुई थीं और भारत में छूटे अपने भाई और बहन के बारे में अपनी मां से सुनती थीं। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि वह कभी अपने भाई और बहन से मिल पाएंगी।

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उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले उनके पिता के एक दोस्त सरदार दारा सिंह भारत से पाकिस्तान आये और उनसे भी मुलाकात की। उन्होंने बताया कि इस दौरान, उनकी मां ने सरदार दारा सिंह को भारत में छूटे अपने बेटे और बेटी के बारे में बताया। दारा सिंह को उनके गांव का नाम और अन्य जानकारी भी दी। उन्होंने बताया कि इसके बाद दारा सिंह पडावां गांव स्थित उनके घर गए और उनकी मां को सूचित किया कि उनका बेटा जीवित है लेकिन उनकी बेटी की मौत हो चुकी है। कुलसुम के अनुसार दारा सिंह ने उनकी मां को बताया कि उनके बेटे का नाम अमरजीत सिंह है जिसे 1947 में एक सिख परिवार ने गोद ले लिया था।

पाकिस्तान माता-पिता के बारे में जानकर हुए हैरान

उन्होंने बताया कि भाई की जानकारी मिलने के बाद कुलसुम ने सिंह से व्हाट्सऐप पर संपर्क किया और बाद में मिलने का फैसला किया। सिंह ने कहा कि जब उन्हें पहली बार पता चला कि उनके असली माता-पिता पाकिस्तान में हैं और मुसलमान हैं, तो यह उनके लिए एक झटका था। उनके अनुसार हालांकि, उन्होंने खुद को दिलासा दिया कि उनके अपने परिवार के अलावा कई अन्य परिवार भी विभाजन के दौरान एक-दूसरे से अलग हो गए थे। सिंह ने कहा कि वह हमेशा से अपनी सगी बहन और भाइयों से मिलना चाहते थे। उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि उनके तीन भाई जीवित हैं। हालांकि, एक भाई, जो जर्मनी में था, उसका निधन हो चुका है।

बता दें कि ये दूसरी बार है कि जब करतारपुर कॉरिडोर के जरिए एक परिवार फिर से एक-दूसरे से मिला है। इससे पहले मई में एक सिख परिवार में जन्मी एक महिला जिसे एक मुस्लिम दंपति ने गोद लिया और पाला था, करतारपुर में भारत के अपने भाइयों से मिली थी।

आईएन ब्यूरो

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