अंतर्राष्ट्रीय

Press Freedom Index: रैंकिंग पर विदेशमंत्री ने उठाया सवाल, बताया भारत को नीचा दिखाने का हथकंडा

विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने रविवार को प्रेस इंडेक्स पर भारत की निम्न रैंकिंग के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत में प्रेस सबसे बेक़ाबू है।

मोदी सरकार की विदेश नीति पर संवाद सत्र के दौरान जयशंकर ने कहा, ‘मैं भारत की रैंकिंग देखकर दंग रह गया। मुझे लगा कि हमारे पास तो सबसे बेक़ाबू प्रेस है, और कहीं तो कुछ मौलिक रूप से कुछ ग़लत हो रहा है। अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत की रैंक की तुलना करते हुए ईएएम ने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान हमसे ज़्यादा स्वतंत्र है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं ? देखिए, मेरा मतलब है कि मैं लोकतंत्र सूचकांक, स्वतंत्रता सूचकांक, धार्मिक स्वतंत्रता सूचकांक और प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक ये सब देखता हूं।

प्रेस इंडेक्स को “माइंड गेम” क़रार देते हुए जयशंकर ने कहा कि ये माइंड गेम खेलने के ऐसे तरीक़े हैं, जो उस देश के रैंक को कम करने जैसा है, जिसे आप पसंद नहीं करते हैं, जबकि अन्य के साथ ऐसा नहीं होता।

यह बयान रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा अपना प्रेस इंडेक्स जारी करने और भारत को 161वें स्थान पर रखने के कुछ दिनों बाद आया है। चकित करने वाली बात है कि अफ़ग़ानिस्तान इस लिहाज़ से 152वें स्थान पर है।

पिछले साल भारत 150वें स्थान पर था। इस बार भारत की रैंकिंग 11 पायदान नीचे गिरी है।

इस सत्र के दौरान जयशंकर ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा कि वह चीनी राजदूत से चीन में क्लास ले रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा चीन के साथ संबंधों को हैंडल करने की कांग्रेस नेता की आलोचना का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “मैंने राहुल गांधी से चीन पर क्लास लेने की पेशकश की होती, लेकिन मुझे तो यही पता चला कि वह स्वयं ही चीनी राजदूत से चीन पर क्लास ले रहे हैं।”

जयशंकर ने डोकलाम संकट के दौरान भारत में चीनी राजदूत के साथ राहुल गांधी की मुलाक़ात का ज़िक़्र किया। उन्होंने यह कहते देते हुए सरकार पर हमला किया था कि चीन की धीरे-धीरे ज़मीन पर कब्ज़ा करने से नया क्षेत्र गवा दिया गया है।

“मुझे पता है कि राजनीति में सब कुछ राजनीतिक होता है। मुझे यह मंज़ूर है। लेकिन, मुझे लगता है कि कुछ मुद्दों पर हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी भी है कि हम कम से कम इस तरह से व्यवहार करें कि हम विदेशों में अपनी (भारत की) सामूहिक स्थिति को कमज़ोर न करें, जो हमने पिछले तीन वर्षों में चीन के सम्बन्ध में देखा है कि “अक्सर बहुत भ्रामक नैरेटिव बनाये जाते हैं।”

जयशंकर ने भ्रामक नैरेटिव और ग़लतबयानी पर भी प्रहार करते हुए कहा, “उदाहरण के लिए हमारे पास… एक पुल था, जिसे चीनी पैंगोंग त्सो पर बना रहे थे। अब वास्तविकता यह थी कि यह विशेष क्षेत्र पहले चीनी 1959 में आये, और फिर उन्होंने 1962 में इस पर कब्ज़ा कर लिया। कुछ तथाकथित आदर्श गांवों के मामले में भी ऐसा ही हुआ है कि वे उन क्षेत्रों पर बने हुए थे, जिन्हें हमने 62 में या 62 से पहले खो दिया था। या तो ऐसा नहीं हुआ है, या फिर आप ग़लत हैं, या आप ज़िम्मेदार है। जो हो गया सो हो गया। यह हमारी सामूहिकता है, मैं कहूंगा कि असफलता या ज़िम्मेदारी। ज़रूरी नहीं कि इसे मैं राजनीतिक रंग दे रहा होऊं। मैं देखना चाहता हूं कि यह वास्तव में चीन को लेकर गंभीर बात है। मैं यह स्वीकार करने के लिए तैयार हूं कि उस पर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, लेकिन यदि आप इसे एक तरह के असहमति से भी नीचे ले जाते हैं, तो फिर उसके बाद मैं क्या कह सकता हूं?

Upendra Chaudhary

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