अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कभी कहा था कि “इस्लाम दुनिया का सबसे अच्छा मज़हब है,लेकिन मुसलमान इस दुनिया के सबसे बुरे नागरिक हैं।” कुछ सिरफ़िरे मुसलमान जॉर्ज बर्नाड शॉ के इस कथन को बार-बार सही साबित कर देते हैं। द टेलीग्राफ़ ने एक स्टडी के हवाले से ब्रिटेन की स्टोरी को दुनिया के सामने रखा है,उससे यही ज़ाहिर होता है कि जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का वह कथन एक बार फिर प्रासंगिक हो गया है।
द टेलीग्राफ़ ने हेनरी जैक्सन सोसाइटी के एक अध्ययन के हवाले से बताया है कि मुस्लिम विद्यार्थियों ने “काफ़िर” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए हिंदुओं को धर्मांतरित करने के लिए कहा। उन्होने यह भी कहा कि अगर वे हिंदू छात्र-छात्रायें “इस्लाम पर इमान नहीं लाते,तो उन्हें नरक के ख़तरों” का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।
लंदन स्थित एक थिंक टैंक का भी मानना है कि ब्रिटेन में हिंदू छात्र-छात्रायें अपनी कक्षाओं में डराये-धमकाये जाने और नस्ली भेदभाव का शिकार होते हैं और मुस्लिम छात्र उन्हें अपने जीवन को आसान बनाने के लिए अपना धर्म बदल डालने के लिए लगातार कहते रहते हैं।
इस बारे में जो सर्वेक्षण किया गया,उसमें शामिल आधे हिंदू माता-पिता ने बताया कि उनके बच्चे ने स्कूलों में हिंदू-विरोधी नफ़रत को गंभीरता के साथ महूसस किया है, जबकि सर्वेक्षण में शामिल 1 प्रतिशत से भी कम स्कूलों ने पिछले पांच वर्षों में चल रहे हिंदू-विरोधी इन घटनाओं की सूचना उनतक पहुंचायी है।
देश भर के 988 हिंदू माता-पिता और 1,000 से अधिक स्कूलों को शामिल करने वाले इस सर्वेक्षण में पाया गया कि लीसेस्टर में “हिंदू समुदायों के प्रति अपमानजनक संदर्भों के कई उदाहरण मिले, जैसे कि उनके शाकाहार का मज़ाक उड़ाया जाता है और उनके देवताओं का अपमान किया जाता है। ये वही हरक़ते हैं, जो इस्लामवादी चरमपंथी करते हैं।
इस अध्ययन में एक मामले का ज़िक़्र करते हुए कहा गया है कि “एक हिंदू छात्रा को गोमांस खाने के लिए कहा गया,उस छात्रा के इन्कार किये जाने पर उसके ऊपर गोमांस फेंका गया।” एक दूसरे उदाहरण का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि “एक छात्र को हिंदू विरोधी धमकी कुछ इस क़दर दिया गया कि उसे तीन बार पूर्वी लंदन के स्कूलों को बदलना पड़ा । उस पर आठ बार शारीरिक हमले किए गये ।”
एक अन्य उदाहरण देते हुए बताया गया है कि एक बच्चे को धार्मिक रूप से “उत्पीड़ित करते हुए कहा गया कि यदि वे इस्लाम में धर्मांतरित हो जाते हैं, तो उनका जीवन बेहद आसान हो जायेगा” और वहीं दूसरे छात्र से कहा गया: “ऐसा लगता है कि तुम बहुत लंबे समय तक ज़िंदा नहीं रह पाओगे…यदि तुम जन्नत में जाना चाहते हो , तो तुम्हें इस्लाम में आना होगा…फ़ूड चेन यानी खाद्य श्रृंखला के निचले भाग में शाकाहोरी होते हैं और तुम हिंदू लोग शाकाहारी होते हो, इसलिए हम तुम्हें खा जायेंगे।
द टेलीग्राफ़ की रिपोर्ट के अनुसार, एक अन्य माता-पिता ने बताया कि बच्चों को एक इस्लामिक उपदेशक के वीडियो देखने और अपना “धर्म बदल लेने के लिए इसलिए कहा गया, क्योंकि मुसलमान बच्चों की नज़र में हिंदू धर्म का कोई मतलब ही नहीं है।”
एक थिंक टैंक के अनुसार, दी जा रही धार्मिक शिक्षा भारतीय जाति व्यवस्था के अनुचित संदर्भों और देवताओं की पूजा की ग़लत धारणाओं के साथ हिंदुओं के ख़िलाफ़ उस “भेदभाव को बढ़ावा” दे रही थी, जिसने छात्रों को “उपहास” का पात्र बना दिया था।
यह पाया गया कि इस सर्वेक्षण में शामिल केवल 15 प्रतिशत अभिभावकों का मानना था कि ये स्कूल हिंदू-विरोधी घटनाओं को पर्याप्त रूप से रोक पाने में सक्षम हैं।
मिल्टन कीन्स के कंज़र्वेटिव एमपी बेन एवरिट ने द टेलीग्राफ़ को बताया कि इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष ख़तरनाक़ होने की हद तक “नुक़सानदेह” थे और उन्होंने धार्मिक शिक्षा में तत्काल सुधार की मांग की।
उन्होंने कहा, “इस रिपोर्ट के निष्कर्ष बेहद ख़तरनाक़ हैं और उन विभिन्न विषयों और उनके रूपों पर प्रकाश डालते हैं, जो कक्षा में हिंदू-विरोधी भेदभाव को मूर्त रूप देते हैं।”
हालांकि,आदर्श रूप में सनातन में किसी तरह के भेदभाव का कोई स्थान नहीं है। सनातन इस तरह संवेदनशील है कि उसे हर जीव में ही नहीं,बल्कि कण-कण में ईश्वर नुमाया होता है। जयुर्वेद के 40वें अध्याय के पहला श्लोक है :
ईशावास्यामिदं सर्वं यत्किञ्च च जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीयाथामा गृध: कस्य स्विद्धनम् ।।
यानी सपूर्ण ब्रह्माण्ड में जो भी कुछ भी जड-चेतन स्वरूप में विद्यमान है, समस्त ईश्वर से व्याप्त है। उस ईश्वर को साथ रखते हुए त्यागपूर्वक उपभोग करो,परंतु आसक्त मत होओ, क्योंकि कुछ भी किसी का नही है।
छन्दोग्य उपनिषद् के 6ठे अध्याय के भाग 2 के पहले श्लोक(ब्रह्मसूत्र) में कहा गया है:
‘एकम् ब्रह्म, द्वितीय नास्ते, नेह-नये नास्ते, नास्ते किंचन’
अर्थात ईश्वर एक ही है, दूसरा नहीं है, नहीं है, नहीं है, अंशभर भी नहीं है। उस ईश्वर को छोड़कर, जो अन्य की प्रार्थना, मंत्र और पूजा करता है, वह अनार्य है, नास्तिकता है या धर्म विरोधी है।
ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 164वें सूक्त की 46वीं ऋचा है:
इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्।
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:॥
इसका अर्थ है-जिसे लोग इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि कहते हैं, वह सत्ता केवल एक ही है, ऋषि लोग उसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं।
इस्लाम का भी मूल सिद्धांत यही एकेश्वरवाद है। सांस्कृतिक विविधता के कारण जब इबादत की पद्धतियों पर विवाद हो,तो उस समय क्या करना चाहिए,इसके लिए इस्लाम में व्यवस्था दी गयी है,जिसे सुरह काफ़िरुन में बख़ूबी दर्शाया गया है:
ये कुछ इस तरह हैं:
कुल या अय्युहल काफिरून
ला अ अबुदु मा ताबुदून
वला अन्तुम आ बिदूना मा अ अबुद
वला ना आबिदुम मा अबद्तुम
वला अन्तुम आबिदूना मा अअ बुद
लकुम दीनुकुम वलिय दीन
यानी
आप कह दीजिये ऐ काफ़िरों
न तो मैं उस की इबादत करता हूं जिस की तुम पूजा करते हो
और न तुम उसकी इबादत करते हो जिसकी मैं इबादत करता हूं
और न मैं उसकी इबादत करूंगा,जिसको तुम पूजते हो
और न तुम ( मौजूदा सूरते हाल के हिसाब से ) उस ख़ुदा की इबादत करने वाले हो, जिसकी मैं इबादत करता हूं
तो तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और मेरे लिए मेरा दीन
द टेलीग्राफ़ में छपी ख़बर के हवाले से यह बात सामने आती है कि ब्रिटेन के स्कूलों में हिंदू छात्र-छात्राओं के साथ धार्मिक रूप से भेदभाव किया जाता है और मुसलमान छात्र-छात्रायें उन्हें धार्मिक रूप से तंग और परेशान करते हैं। मुस्लिम छात्र-छात्राओं का हिंदू छात्र-छात्राओं को इस्लाम में धर्मांतरण के लिए इस तरह दबाव डालना सरासर ग़ैर-इस्लामिक है,क्योंकि इस्लाम इस तरह के दबाव की इजाज़त बिल्कुल नहीं देता। यह स्थिति ब्रिटेन की धर्मनिर्पेक्ष हुक़ूमत पर भी एक गहरा सवाल पैदा करती है कि आख़िर वह इस तरह की नफ़रत फैलाने वाली हक़ीक़त से बेपरवाह क्यों है ?
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