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खूनी पाकिस्तान का इतिहास!’दिल्लीवाले’ पीएम के मौत की यादें हुईं ताजा

Liaquat Ali Khan: पाकिस्तान का इतिहास आजादी के बाद से ही खुन से सना रहा है। यहां पर आम नागरिक तो छोड़ें प्रधानमंत्री तक सुरक्षित नहीं हैं। खास मामला पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान है जिनपर जानलेवा हमला हुआ है। सरकार और आर्मी के खिलाफ उन्होंने लॉन्ग मार्च निकाली तो उनपर हमला हो गया। इमरान खान पर हमले के बाद पाकिस्तान में अन्य प्रधानमंत्रियों और बढ़े चेहरों पर हुए हमले को याद किया जाने लगा है। जिसमे से एक पहले प्रधानमंत्री नवाबजादा लियाकत अली खान (Liaquat Ali Khan) हैं, जिनके मारे जाने की यादें ताजा हो गई है। उन्हें दिल्ली वाला भी कहा जाता था। लियाकत अली (Liaquat Ali Khan) को रावलपिंडी में 16 अक्टूबर 1951 को सार्वजनिक सभा के दौरान मार दिया गया था।

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दिल्ली में लियाकत अली का है बंगला
नवाबजादा लियाकत अली खान दिल्ली से थे, ITO से इंडिया गेट जाने के लिए बढ़ते ही तिलक मार्ग पर पाकिस्तान हाउस है जो उनका बंगला था। वह 1946 में पंडित जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार के वित्त मंत्री भी थे। वो पाकिस्तान में मोहम्मद अली जिन्ना की पहली कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे। 16 अक्टूबर 1951 को उनकी रावलपिंडी में उसी जगह पर हत्या हुई थी जहां 2017 में बेनजीर भुट्टो की हत्या हुई थी। दोनों के ही हत्या का राज कभी नहीं खुला। तिलक मार्ग स्थित पाकिस्तान हाउस में वहां के उच्चायुक्त रहते हैं।

दिल्ली से खास रिश्ता
लियाकत अली का दिल्ली शहर से गहरा नाता था। वो अजमेरी गेट स्थित एंग्लो ऐरबिक स्कूल की प्रबंध समिति के भी प्रमुख रहे। उनकी पैतृक संपत्ति करनाल और मुजफ्फरनगर में भी थी। वह मुजफ्फरनगर से यूपी असेंबली के लिए चुनाव भी लड़ते थे। लियाकत अली खान की पत्नी गुल-ए-राना दिल्ली यूनिवर्सिटी के IP कॉलेज में अंग्रेजी की टीचर थीं।

Liaquat Ali Khan

हिंदुओं के खिलाफ बजट पेश करने का लगा था आरोप
लियाकत अली खान ने 2 फरवरी 1946 को अंतरिम बजट पेश किया था। वह बजट पेपर अपने हार्डिंग लेन (अब तिलक मार्ग) के घर से संसद भवन लेकर गए थे। उनपर हिंदू विरोधी बजट पेश करने के आरोप लगे थे। उन्होंने व्यापारियों पर एक लाख रुपये के कुल मुनाफे पर 25% टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा। कॉरपोरेट टैक्स को दोगुना कर दिया। चाय के निर्यात पर भी एक्सपोर्ट ड्यूटी दोगुनी कर दी। गृह मंत्री सरदार पटेल की राय थी कि लिय़ाकत अली खान हिंदू व्यापारियों जैसे घनश्यामदास बिड़ला, जमनालाल बजाज और वालचंद के खिलाफ सोची-समझी रणनीति के तहत कार्रवाई कर रहे हैं। सरदार पटेल और बाबू जगजीवन राम भी उस अंतरिम सरकार में थे। दुर्भाग्यवश लियाकत अली खान के बजटीय प्रस्तावों के बाद देश के विभाजन को टालने की सभी संभावनाएं खत्म हो गईं।

Liaquat Ali Khan Wife

बंटवारे के वक्त परेशान थी लियाकत की पत्नी
देश के बंटवारे के वक्त उनकी पत्नी गुल-ए-राना काफी परेशान थीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि, वो IP कॉलेज की नौकरी छोड़ें या फिर कुछ दिनों की छुट्टी लेकर पाकिस्तान चली जाएं। हालांकि, जुलाई 1947 में वो कराची के लिए रवाना हो गईं। जाने से पहले वो कॉलेज की प्रधानाचार्य डॉ. वीणा दास को दो माह के अवकाश की अर्जी देकर गईं। उन्होंने अपनी प्रधानाचार्य से वादा किया कि सितंबर के दूसरे या अंतिम हफ्ते तक लौट आएंगे और उनके इस वादे को प्रधानाचार्य ने स्वीकार कर छुट्टी दे दी। इतना लंबा अवकाश मिलने के पीछे कारण था कॉलेज में उनका अध्यापिका के रूप में अच्छी छवि। उन्होंने कश्मीरी गेट और चांदनी चौक इलाकों में शराब की दुकानों को बंद करवाने के लिए चले आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था।

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कराची से लेटर लिखा की लौट कर आऊंगी…
जब वो IP कॉलेस से दो महीने का अवकास लेकर कराची पहुंची तो गुल-ए-राना ने वहां से पत्र लिखा कि वो लौट आएंगी। हालांकि वो नहीं आईं। वो आगे चलकर पाकिस्तान में औरतों को स्वावलंभी बनाने के लिए चले आंदोलन की सबसे प्रखर नेता के रूप में उभरीं। पति की हत्या के बाद वह पाकिस्तान की कई देशों में राजदूत भी रहीं। उनकी 13 जून 1990 को मौत हो गई।

Vivek Yadav

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