अंतर्राष्ट्रीय

जलमार्ग के ज़रिए म्यांमार से जुड़ने में तत्परता दिखाता भारत

India-Myanmar Waterway:भारत रणनीतिक रूप से स्थित म्यांमार के साथ लंबित उन कनेक्टिविटी परियोजनाओं को पूरा करने का हर संभव प्रयास कर रहा है, जो चार पूर्वोत्तर राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिज़ोरम के साथ अपनी सीमा साझा करता है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत इस साल तक म्यांमार के साथ तटीय शिपिंग समझौता करने का इच्छुक है। भारत इस कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए न केवल भूमि मार्गों का उपयोग करने पर विचार कर रहा है, बल्कि जलमार्गों का भी लाभ उठा रहा है।

जयशंकर ने कहा, ”सितवे बंदरगाह चालू है और हमें इस साल (म्यांमार के साथ) तटीय शिपिंग समझौता संपन्न होने की उम्मीद है।” हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि पड़ोसी देश में सीमा की स्थिति चुनौतीपूर्ण है।

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन की एक रिपोर्ट में पहले कहा गया था कि “समुद्री आदान-प्रदान के लिए बहुत सारी अप्रयुक्त संभावनायें हैं” जैसे कि प्राकृतिक गैस, बल्क कार्गो और हब-एंड स्पोक कार्गो वाले कार्गो।

जहां सितवे बंदरगाह, महत्वाकांक्षी कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (केएमटीटीपी) का हिस्सा है, वहीं यह कोलकाता को जोड़ता है, यह भारत बांग्लादेश प्रोटोकॉल (आईबीपी) मार्ग के माध्यम से त्रिपुरा को भी जोड़ सकता है।

अक्टूबर, 2020 में हस्ताक्षरित इस तटीय शिपिंग समझौते का उद्देश्य भारतीय जहाजों को सितवे बंदरगाह और कलादान नदी मल्टी-मोडल लिंक का उपयोग करके मिज़ोरम तक पहुंचने की सुविधा प्रदान करना है।

म्यांमार के लिए सितवे के अलावा, यांगून देश के अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार को अंजाम देने वाला एक और प्रमुख बंदरगाह है। अन्य बंदरगाह जैसे पाथिन, मावलामाइन और मायिक भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार को अंजाम देते हैं, लेकिन ऐसा छोटे पैमाने पर होता है। देश का घरेलू व्यापार मुख्य रूप से क्याउकफ्यू, थंडवे और दावेई बंदरगाहों के माध्यम से किया जाता है।

2, अक्टूबर 2014 को चेन्नई से शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (एससीआई) द्वारा भारत-म्यांमार डायरेक्ट शिपिंग सेवा शुरू की गयी थी। यह सेवा कोलंबो-चेन्नई-कृष्णापट्टनम-यांगून मार्ग पर चलती थी, हर पखवाड़े में एक बार चेन्नई बंदरगाह पर कॉल करती थी। हालांकि, 2016 में भारत और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस सेवा को रोक दिया गया था। ओआरएफ़ की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सेवा को पुनर्जीवित करना दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद होगा।

ओआरएफ़ ने कहा,“लगभग पांच साल पहले उस समय तक विशाखापत्तनम की म्यांमार के साथ अच्छी कनेक्टिविटी थी, जब म्यांमार बड़ी मात्रा में लकड़ी का निर्यात कर रहा था। हालांकि, इस  समय विशाखापत्तनम बंदरगाह और म्यांमार के बीच कोई सीधी कनेक्टिविटी नहीं है।”

पिछले महीने मेकांग गंगा सहयोग (एमजीसी) की 12वीं बैठक में भाग लेने के लिए बैंकॉक की अपनी यात्रा के दौरान जयशंकर ने अपने समकक्ष यू थान स्वे के साथ इन कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिए चुनौतियों का सामना करने वाले मुद्दों पर चर्चा की। दोनों मंत्री मौजूदा परियोजनाओं में तेजी लाने पर भी सहमत हुए।

 

कलादान परियोजना के काम में तेज़ी

मेगा केएमटीटीपी के हिस्से के रूप में सितवे को कलादान नदी पर अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से म्यांमार के सबसे पश्चिमी शहर पलेतवा से जोड़ा जायेगा। इसके बाद पलेतवा को मिज़ोरम में ज़ोरिनपुई के साथ 62 किमी लंबी सड़क के माध्यम से जोड़ा जायेगा। इस योजना के मुताबिक़ ज़ोरिनपुर और आइजोल के बीच 110 किलोमीटर लंबी सड़क का भी निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा, रेल नेटवर्क को भी आगे बढ़ाया जा रहा है।

विदेश नीति पर नज़र रखने वालों ने इस बात को नोट किया है कि भारत के लिए चल रही परियोजनाओं को समय पर पूरा करना महत्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नई दिल्ली चीन की चालों का मुक़ाबला करते हुए अपनी शीर्ष स्थिति बरक़रार रखे।

बीजिंग ने पहले ही राखीन राज्य में चीन समर्थित क्याउकफू गहरे समुद्र बंदरगाह परियोजना के कार्यान्वयन पर ज़ोर दिया है, जो अब गति में है। रेडियो फ्री एशिया के अनुसार, चीन उन निवासियों की चिंताओं के बावजूद गहरे समुद्र में बंदरगाह परियोजना को पूरा करने में ज़बरदस्त तेज़ी ला रहा है, जो बीजिंग के बेल्ट और रोड पहल का हिस्सा है और जो इस क्षेत्र के जलमार्गों पर भरोसा करते हैं और कहते हैं कि यह उनकी आजीविका को नष्ट कर देगा।

चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे (सीएमईसी) पर काम, जो कि बीआरआई छत्रछाया के तहत एक प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना है, जिसका उद्देश्य चीन और म्यांमार के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है, तख़्तापलट के बाद के इस दौर में भी पूरे जोरों पर चल रहा है।

म्यांमार के मुख्य व्यापारिक साझेदार चीन और थाईलैंड हैं। लेकिन, भारत को म्यांमार में अपने दखल को बढ़ाने की ज़रूरत है, ख़ासकर इसलिए, क्योंकि इस पड़ोसी राज्य में कोई भी अस्थिर स्थिति सीधे पूर्वोत्तर में राजनीतिक और आर्थिक रूपरेखा पर असर डालेगी।

दोनों देशों की आर्थिक वृद्धि के लिए पड़ोसियों के बीच 1,623 किमी लंबी भूमि सीमा और उनकी 725 किमी लंबी समुद्री सीमा का लाभ उठाना महत्वपूर्ण है।

Mahua Venkatesh

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