अंतर्राष्ट्रीय

भारत तो इस क्षेत्र का रक्षक है: श्रीलंका अध्यक्ष

श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि उनका देश इस क्षेत्र में शांति चाहता है।

 

कोलंबो: श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि भारत पूरी तरह से सुरक्षा प्रदाता और इस क्षेत्र का रक्षक है।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन साक्षात्कार में शामिल होते हुए राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने कहा कि “एक मज़बूत लोकतांत्रिक परंपरा और एक खुली अर्थव्यवस्था वाले एक छोटे से देश के रूप में श्रीलंका ने हमेशा अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता बनाये रखी है और श्रीलंका सबसे लंबे सम्बन्धों वाले अपने निकटतम पड़ोसी भारत को इस क्षेत्र के रक्षक के रूप में सबसे दीर्घजीवी रिश्तों के रूप में देखता है।”

“दूसरे संघर्ष का मुद्दा, जिसे हमें ध्यान में रखना चाहिए वह हिंद महासागर में सुलगती बड़ी शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता है। जहां हमारे द्वीप ने हमेशा अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता को बनाये रखा है, वहीं भारत को इस क्षेत्र में शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में देखा जाता है और यह श्रीलंका का निकटतम पड़ोसी और ऐसा देश है, जिसके साथ हमारे सबसे लंबे सम्बन्ध हैं।” मुश्किल वक़्त में श्रीलंका का राष्ट्रपति का पदभार संभाले वाले विक्रमसिंघे ने कहा कि गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल के बीच शक्तिशाली गोटबाया राजपक्षे को देश से भागने के लिए मजबूर कर दिया और सबसे ख़राब आर्थिक संकट से श्रीलंका अपनी आज़ादी के बाद से गुज़र रहा है।

विक्रमसिंघे ने कहा कि श्रीलंका का उद्देश्य इस क्षेत्र में बड़ी शक्ति की प्रतिद्वंद्विता में शामिल होना नहीं है।

उन्होंने कहा, “हम सभी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हम भारत, चीन, अमेरिका, जापान और अन्य सभी के साथ काम करें।”

उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि श्रीलंका चाहेगा कि भारत और चीन तथा भारत और पाकिस्तान के बीच कोई टकराव न हो।

“अब तक तो स्थिति ठीक बनी हुई है। हालांकि, यह तीन परमाणु शक्तियों वाली यह दुनिया की सबसे तनावपूर्ण जगह है। हममें से कोई भी ऐसी स्थिति में नहीं आना चाहता कि टकराव होने पर हमें भारत और चीन में से किसी एक को चुनना पड़े।”

“फिर श्रीलंका और भारत और चीन के बारे में तीसरा प्रश्न आता है। अब तक मुझे लगता है कि भारत और चीन चाहते हैं कि यह मुद्दा द्विपक्षीय हो और उन्होंने द्विपक्षीय बनाये भी रखा है। संभवत: रूस और अन्‍य देशों द्वारा परोक्ष रूप से हस्‍तक्षेप किया गया है।

राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने स्पष्ट किया, “हमारा काम यह सुनिश्चित करना है कि कोई टकराव न हो और सम्बन्धों में सहजता हो। अब ऐसा उस समय एक कठिन कार्य होता जा रहा है,जहां एक तरफ़ क्वाड काम कर रहा है और दूसरी तरफ़ चीन, और यूक्रेन ने वास्तव में पश्चिम, रूस और चीन के बीच टकराव के स्तर को बढ़ा दिया है, हालांकि हमने अपनी तरफ़ से यूक्रेन मुद्दे में शामिल नहीं हैं और किसी का पक्ष लेने से दूर रहे हैं।”

“लेकिन यही कारण है कि मैं चिंतित था कि हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र में यूके की उपस्थिति जहां कि उन्हें नहीं होना चाहिए और चूंकि वह एक सैन्य शक्ति है,इसलिए चीज़ें और ख़राब कर सकती है। मुझे लगता है कि इस क्षेत्र में हमारे बीच हम इसे किसी तरह प्रबंधित करें। इसलिए हम नहीं चाहते कि चीज़ें और ख़राब हों और हम सभी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हम सभी भारत, चीन, अमेरिका, जापान और अन्य सभी के साथ काम करें।

चीन और अन्य देशों के बीच इस क्षेत्र की बढ़ती प्रतिस्पर्धा पर एक सवाल का जवाब देते हुए राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने कहा कि श्रीलंका क्वाड और चीन के सभी सदस्यों के साथ भी घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है।

उन्होंने कहा,”श्रीलंका भी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का सदस्य है। हालांकि, चीनी समुद्री बेड़े के जहाज़ों की उपस्थिति और क्वाड के गठन, ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के बीच सुरक्षा संवाद ने हिंद महासागर में शांति और सुरक्षा को जटिल बना दिया है। हमारे क्वाड के साथ-साथ चीन के सभी सदस्यों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध हैं।”

“चीन और क्वाड के बीच प्रतिस्पर्धा का बढ़ता स्तर ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन के बीच नवगठित ‘ऑकस’ समझौते से और बढ़ गया है। श्रीलंका, भारत-प्रशांत क्षेत्रों पर आसियान दृष्टिकोण को स्वीकार करता है। हम भारत-प्रशांत को दो अलग-अलग महासागरों से मिलकर देखते हैं। हमारा देश नौवहन की स्वतंत्रता और हिंद महासागर में समुद्र के नीचे केबल की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कहा, “इसलिए, श्रीलंका के भविष्य के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि एशिया प्रशांत, विशेष रूप से ताइवान के मुद्दे हिंद महासागर में न फैले।”

उन्होंने कहा कि श्रीलंका की बढ़ती भारतीय बाज़ार तक पहुंच के साथ-साथ अफ़्रीकी बाज़ारों के खुलने को बाधित नहीं किया जा सकता और इसे बड़ी शक्ति, प्रतिद्वंद्विता या संघर्ष से बाधित नहीं किया जाना चाहिए।

” यह तो एक देश की कहानी है, एक छोटा सा देश, लेकिन एक मज़बूत लोकतांत्रिक परंपरा वाला देश, एक खुली अर्थव्यवस्था वाला देश, जो गुटनिरपेक्ष रहा है, अपनी पुरानी अर्थव्यवस्था की राख से उत्पन्न होने वाला देश एक नई अर्थव्यवस्था का निर्माण करने के लिए एशियाई क्षेत्र और भारत में विकास के साथ-साथ चल रहा है।

राष्ट्रपति ने बल देकर कहा कि पुरानी अर्थव्यवस्था से हटकर एशियाई क्षेत्र और भारत के विकास के साथ सहयोग करके एक नई अर्थव्यवस्था के निर्माण में श्रीलंका की भूमिका है।

श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बताया कि भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते को आर्थिक सहयोग और तकनीकी समझौते के रूप में उन्नत किया जाना चाहिए और इसमें दाखिल होने की भी इच्छा व्यक्त की।

राष्ट्रपति ने बल देकर कहा कि पुरानी अर्थव्यवस्था से हटकर एशियाई क्षेत्र और भारत के विकास के साथ सहयोग करके एक नयी अर्थव्यवस्था का निर्माण श्रीलंका की भूमिका है।

श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते को एक आर्थिक सहयोग और तकनीकी समझौते के रूप में उन्नत किया जाना चाहिए और उन्होंने एशिया के सबसे बड़े व्यापार समूह, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी वाले देश के साथ एक ऐसे समझौते में प्रवेश करने की इच्छा व्यक्त की, जो कि श्रीलंका को दुनिया के सबसे बड़े व्यापार समूह के साथ व्यापार जारी रखने दे।

विक्रमसिंघे ने यह भी कहा कि दक्षिण एशिया में आर्थिक एकीकरण की कमी है और कुछ सामान्य प्रयासों को छोड़कर इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं को एक शक्तिशाली व्यापारिक ब्लॉक में समाहित करने के लिए कोई ईमानदार राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है।

“भारत-पाकिस्तान के गिरते सम्बन्धों से यह और जटिल हो गया है। आगे बढ़ने के लिए श्रीलंका को अपने कई पड़ोसी देशों के साथ व्यापारिक एकीकरण की आवश्यकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि पहले प्रयास के रूप में हिंद महासागर के द्वीपीय राष्ट्र भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते को आर्थिक सहयोग और तकनीकी समझौते में अपग्रेड करेंगे।

“ऐसा करना ज़रूरी है। भारत अगला विकास केंद्र बनने जा रहा है और यह दक्षिण एशिया में विकास को गति प्रदान करेगा। हम सिर्फ़ 22 मील दूर हैं और हमें विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए काम करना है कि श्रीलंका और तमिलनाडु की सहक्रियाओं को एक साथ लाया जाए।

राष्ट्रपति ने कहा,”दूसरी बात, हम एशिया के सबसे बड़े व्यापार ब्लॉक,यानी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी के साथ एक समझौता करना चाहते हैं। इससे हमें दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार ब्लॉक बनाने में मदद मिलेगी। और अंत में, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, हम व्यापक प्रगतिशील व्यापार समझौते में भी शामिल होना चाहेंगे। इसके साथ श्रीलंका को तीन सबसे बड़े व्यापार ब्लॉकों, भारत, आरसीईपी और ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौते के साथ एकीकृत किया जाएगा।”

दक्षिणी श्रीलंका में विवादास्पद चीन संचालित बंदरगाह पर पूछे गये एक सवाल के जवाब में विक्रमसिंघे ने कहा कि चीन इस बंदरगाह का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं कर सकता।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा, “मैं इसके लिए एक सैन्य उपयोग नहीं देख सकता और चीन के पास भारत और अमेरिका का मुक़ाबला करने के लिए हिंद महासागर में किसी भी तरह से बड़ी संख्या में युद्धपोत रखने की क्षमता भी नहीं है।”

उन्होंने कहा, ‘हमने इस बंदरगाह के साथ-साथ चीनियों के साथ बर्ताव के सम्बन्ध में अमेरिका के साथ नियमित परामर्श किया है।’

विक्रमसिंघे ने उस बंदरगाह का उल्लेख करते हुए कहा, जो चीन द्वारा बनाया गया था और 99 साल के लिए पट्टे पर दिया गया था, “लेकिन, अफ़्रीका और कहीं बंगाल की खाड़ी में चीन द्वारा बनाए जा रहे बंदरगाहों की व्यवस्था को देखते हुए निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जहां तक व्यावसायिक गतिविधियों का सम्बन्ध है, तो एक महत्वपूर्ण बंदरगाह होगा। मुझे लगता है कि यह उन बंदरगाहों में से एक होगा. जहां माल इकट्ठा किया जाता है और अन्य गंतव्यों के लिए फिर से भेजा दिया जाता है।”

आईएएनएस

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