अंतर्राष्ट्रीय

जानिए S. jaishankar के पिता के बारे में कुछ खास बाते जिनके मनमोहन सिंह भी थे कायल

नौकरशाह परिवार से ताल्लुक रखने वाले विदेश मंत्री एस जयशंकर के पिता के सुब्रमण्यम एक बार फिर जमकर सुर्खियां बटोर रहे हैं। इसकी वजह विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दावा किया है कि जब 1980 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) दोबारा प्रधानमंत्री चुनी गईं तो पीएम इंदिरा ने उनके पिता के सुब्रह्मण्यम को सचिव पद से निकाल दिया गया। वह पहले सचिव थे, जिस पर ऐसी कार्रवाई हुई। इसके बाद राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान भी उन्हें बाहर रखा गया। जयशंकर ने बताया कि उनके पिता बहुत ईमानदार थे, हो सकता है समस्या इसी वजह से हुई हो। जब उनकी मृत्यु हुई तो तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने उनकी तारीफ की थी। कहा कि भारत की रक्षा, सुरक्षा और विदेश नीतियों के विकास में उनका योगदार अविस्मरणीय है। विदेश मंत्री एस जयशंकर के पिता सुब्रह्मण्यम एक आईएएस अधिकारी थे और भारत के सबसे प्रतिष्ठित रणनीतिक विचारकों में से एक थे, जो भू-राजनीति पर एक विशाल अनुभव भी रखते थे।

विदेश मंत्री जयशंकर ने एएनआई के साथ एक साक्षात्कार में, कहा, मैं सबसे अच्छा विदेश सेवा अधिकारी बनना चाहता था। और मेरे विचार से, सर्वोत्तम की परिभाषा जो आप कर सकते हैं वह थी एक विदेश सचिव के रूप में ही करियर समाप्त होना। हमारे घर में दबाव भी था, मैं इसे प्रेशर नहीं कहूंगा, लेकिन हम सभी इस बात से वाकिफ थे कि मेरे पिता जो कि एक ब्यूरोक्रेट थे, सेक्रेटरी बन गए थे, लेकिन उन्हें सेक्रेटरीशिप से हटा दिया गया। वह उस समय 1979 में जनता सरकार में संभवत: सबसे कम उम्र के सचिव बने थे। जयशंकर ने कहा, लेकिन तथ्य यह था कि एक व्यक्ति के रूप में उन्होंने नौकरशाही में ही अपना करियर देखा। उसके बाद वे फिर कभी सचिव नहीं बने। राजीव गांधी काल के दौरान जूनियर को कैबिनेट सचिव बनाने के लिए उन्हें हटा दिया गया था जो बाद कैबिनेट सचिव बन गए थे। यह कुछ ऐसा था जिसे उन्होंने महसूस किया… हमने शायद ही कभी इसके बारे में बात की हो। इसलिए जब मेरे बड़े भाई सचिव बने तो उन्हें बहुत गर्व हुआ।

ये भी पढ़े: S. jaishankar ने मारा तमाचा फिर भी भारत को दुलार रहा यूरोप- आखिर क्यों

मनमोहन सिंह ने की थी तारीफ

सिविल सेवक और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ के रूप में अपने लंबे करियर में उपलब्धियों के अलावा, कारगिल युद्ध समीक्षा समिति की अध्यक्षता करने और भारत की परमाणु निरोध नीति का समर्थन करने के लिए जाना जाता है। 2011 में जब उनका निधन हुआ, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि सुब्रह्मण्यम ने भारत की रक्षा, सुरक्षा और विदेश नीतियों के विकास में महत्वपूर्ण और स्थायी योगदान दिया है। तत्कालीन पीएम ने कहा था, सरकार के बाहर उनका काम शायद और भी प्रभावशाली है पर उन्होंने देश में रक्षा अध्ययन के क्षेत्र को आगे बढ़ाया और विकसित किया।

पद्मभूषण लेने से इनकार

जनवरी 1929 में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में जन्मे, सुब्रह्मण्यम मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज गए, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश किया। सुब्रह्मण्यन सुरक्षा थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (IDSA) के संस्थापक निदेशक थे, जो अब मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस है। 1999 में, सुब्रह्मण्यम ने पद्म भूषण के सम्मान को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि नौकरशाहों और पत्रकारों को सरकारी पुरस्कार स्वीकार नहीं करना चाहिए।

आईएन ब्यूरो

Recent Posts

खून से सना है चंद किमी लंबे गाजा पट्टी का इतिहास, जानिए 41 किमी लंबे ‘खूनी’ पथ का अतीत!

ऑटोमन साम्राज्य से लेकर इजरायल तक खून से सना है सिर्फ 41 किमी लंबे गजा…

1 year ago

Israel हमास की लड़ाई से Apple और Google जैसी कंपनियों की अटकी सांसे! भारत शिफ्ट हो सकती हैं ये कंपरनियां।

मौजूदा दौर में Israelको टेक्नोलॉजी का गढ़ माना जाता है, इस देश में 500 से…

1 year ago

हमास को कहाँ से मिले Israel किलर हथियार? हुआ खुलासा! जंग तेज

हमास और इजरायल के बीच जारी युद्ध और तेज हो गया है और इजरायली सेना…

1 year ago

Israel-हमास युद्ध में साथ आए दो दुश्‍मन, सऊदी प्रिंस ने ईरानी राष्‍ट्रपति से 45 मिनट तक की फोन पर बात

इजरायल (Israel) और फिलिस्‍तीन के आतंकी संगठन हमास, भू-राजनीति को बदलने वाला घटनाक्रम साबित हो…

1 year ago

इजरायल में भारत की इन 10 कंपनियों का बड़ा कारोबार, हमास के साथ युद्ध से व्यापार पर बुरा असर

Israel और हमास के बीच चल रही लड़ाई के कारण हिन्दुस्तान की कई कंपनियों का…

1 year ago