यूरोप का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले इटली (Italy) ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ड्रीम प्रॉजेक्ट बेल्ट एंड रोड से अपने कदम पीछे कर लिए हैं। इटली के इस फैसले को चीन के लिए ‘बहुत बड़े अपमान’ के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल, चीन ने प्लान बनाया था कि इटली को अपने पाले में लाकर यूरोप में घुसने का रास्ता साफ कर लिया जाए। चीन के इस प्लान को अब इटली ने फेल कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इटली का यह ऐलान यूरोप की सरकारों के चीन पर बढ़ती आर्थिक निर्भरता के प्रति चिंता को दर्शाता है।
अमेरिकी पत्रिका फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट के मुताबिक इटली ने जब बीआरआई पर हस्ताक्षर पर किया था तो इसे अमेरिका के खिलाफ चीन की बड़ी राजनीतिक जीत के रूप में देखा गया था। असल में चीन लंबे समय से यूरोप में अपने आर्थिक ‘साम्राज्य’ को बढ़ाना चाहता था। इसके लिए उसने बीआरआई के जरिए यूरोप में आधारभूत ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में जमकर पैसा भी लगाया।
चीन के लिए बड़ा अपमान
साल 2019 में इटली ने अपने साथी यूरोपीय देशों से अलग रुख अपनाते हुए BRI का हिस्सा बनने का ऐलान किया था। इटली ऐसा करने वाला जी7 का अकेला सदस्य देश था। अब इटली ने बीआरआई से हटने का ऐलान करके चीन के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा है। वह भी तब जब चीन बीआरआई के 10 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है। अमेरिका के स्टिमंसन सेंटर में चाइना प्रोग्राम के डायरेक्टर यून सून कहते हैं, ‘यह चीन के लिए बहुत बड़े अपमान की तरह से है।’ उन्होंने कहा कि चीन दुनिया को यह दिखाता था कि उसके बीआरआई पर यूरोपीय देश ने भी हस्ताक्षर किया है और इसमें उसे गर्व की अनुभूति होती थी।
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इटली के लिए विफल रहा चीन का BRI
श्रीलंका डिफॉल्ट हो गया है और पाकिस्तान पर यह खतरा मंडरा रहा है। इटली के अलावा यूरोपीय संघ के दो तिहाई सदस्य देश बीआरआई में शामिल हुए हैं जिसमें ज्यादातर पूर्वी इलाके के देश हैं। ये देश चीन के निवेश का फायदा उठाकर तेजी से विकास करना चाहते थे। इनमें से इटली भी एक देश था। अब 4 साल के बाद इन देशों को बीआरआई से जुड़कर कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। चीनी कंपनियां 2.8 अरब डॉलर के आधारभूत ढांचे से जुड़े प्रॉजेक्ट में निवेश को सहमत हुईं। इटली को लगा कि इससे तेजी से विकास होगा लेकिन वह दिन कभी नहीं आया। अब इटली को अपनी गलती का अहसास हो गया है और वह चीन के प्रति कठोर रवैया अपना रहा है।
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