Long march to miranshah: पाकिस्तान में सुलग रही है पश्तून विद्रोह की चिंगारी

"यह जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे वर्दी है।" रविवार, 15 नवंबर को पाकिस्तान का उत्तरी वजीरिस्तान इलाका पाकिस्तानी आर्मी और इमरान खान की सरकार के खिलाफ नारों से गूंज उठा। इसके पहले पाकिस्तानी आर्मी के खिलाफ पश्तूनों की इतनी बुलंद आवाज यहां कभी नहीं सुनी गई थी। पश्तूनों के संगठन पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (पीटीएम) ने पाकिस्तानी आर्मी की बर्बरता के खिलाफ (पश्तून लांग मॉर्च टू मिरानशाह) रैली का आयोजन किया था। इसमें हजारों लोग, आर्मी द्वारा लगाई गई निषेधाज्ञा का विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आए।

"ये जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे वर्दी है" का यह नारा पिछले दो सालों से पाकिस्तान की फौज के लिए सिरदर्द बना हुआ है। दरअसल, यह पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (पीटीएम) से जुड़े पश्तूनों के दिलों की आवाज है। जिसने पाकिस्तान के हुक्मरानों और फौज की नींद हराम कर रखी है।

पिछले दो दशकों से पाकिस्तान की आर्मी के जुल्मों के तले पिसते पश्तून लोगों ने तय कर लिया है कि अब वो और बर्दाश्त नहीं करेंगे। पश्तूनों की अगुवाई कर रहे मंज़ूर पश्तीन इन दिनों सोशल मिडिया पर छाए हुए हैं। जमीन से जुड़े हुए मंजूर जुल्म के खिलाफ लड़ रहे पश्तूनों की आवाज बन कर उभरे हैं। उनके साथ एक ऐसी पीढ़ी है, जिसने गोलियों और तोपों की आवाज के अलावा कुछ नहीं सुना है, सिर्फ बरबादी देखी है।

पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (पीटीएम) की शुरुआत 2014 में एक छात्र आंदोलन की तरह मंजूर पश्तीन ने की और पिछले कुछ सालों में इसने सही मायने में एक आंदोलन का रुप ले लिया है। मंजूर सीमांत गांधी को आदर्श मानते हैं और पिछले दो सालों में पूरे पाकिस्तान में उन्होंने कई बड़ी रैलियां आयोजित की। अब पाकिस्तानी आर्मी उनकी दुश्मन बन गयी है। "मुझे गद्दार, रॉ एजेंट, इंडियन डॉग कहा जाता है लेकिन परवाह नहीं। तालिबान भी यहां हैं, हक्कानी भी हैं. टीटीपी भी हैं, अलकायदा भी यहीं हैं। हमें तो टीटीपी का सपोर्टर कह कर मारा जा रहा है।"

अफगानिस्तान की सीमा डूरंड लाइन से लगे इस क्षेत्र को सात जिलों में बांटा गया है और इसे फेडरल एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया-फाटा ( FATA) कहा जाता है। यहां की आबादी करीब 50 लाख है, जिसमें ज्यादातर पश्तून हैं। दुनिया का यह सबसे पिछड़ा इलाका है। जिसे पाकिस्तानी सेना, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बफर जोन की तरह इस्तेमाल करती रही है। पाकिस्तानी इसे बंदूकों और एके-47 की मंडी कहते हैं। साथ ही तालिबान की अफीम की मंडी भी यहीं है।

<img class="wp-image-17974" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/11/पीटीएम-की-रैली-1024×680.png" alt="PTM rally in Miranshah" width="444" height="295" /> मिरानशाह में पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट की रैली

1979 में जब रूसी सेना अफगानिस्तान में घुसी थी तो फाटा का इलाका दुनिया भर के आंतंकवादियों का गढ़ बन गया। ओसामा बिन लादेन ने यहीं से अपनी आतंकवाद की लड़ाई छेड़ी थी। लेकिन 9/11 के बाद इस इलाके की तस्वीर बदली, जब अफगानिस्तान में अमेरिकी हमला हुआ। तालिबान ने भागकर यहां के पहाड़ों में पनाह ली। अमेरिका ने कार्रवाई का दबाव बनाया तो 2002 में आजादी के बाद पहली बार पाकिस्तानी सेना इस इलाके में दाखिल हुई। कबीलों को यह भरोसा दिलाया गया कि उनके विकास के लिए पाकिस्तानी सरकार फंड देगी। लेकिन उल्टे सेना ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया। कबीलों का भरोसा टूटा और वे पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हो गए।

इसके बाद शुरुआत हुई एक नई लड़ाई की। इस इलाके की पहचान सीमांत गांधी यानी खान अब्दुल गफ्फार खान (सरहदी गांधी) से होती थी, जो महात्मा गांधी के नजदीकी लोगों में से थे। यहां के लोग आमतौर पर शांतिप्रिय रहे, लेकिन सियासत, पाकिस्तानी फौज और आतंकवाद ने इन्हें दुनिया के सबसे खतरनाक लोगों में शुमार कर दिया है। पाकिस्तान में कहीं भी हमला हो, लेकिन बमबारी यहीं होती है। इन इलाकों को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दुनिया का सबसे खतरनाक इलाका बताया था। 9/11 के बाद साबित भी हो गया कि पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का केंद्र है।

लेकिन अब पश्तून नौजवानों ने तय कर लिया है कि अब वो अपने इलाके पर लगे आतंक की नर्सरी का दाग हटाने के लिए खुद ही लड़ेंगे। इस मुहिम में इस इलाके के नौजवान सीनेटर मोहसिन दावर भी शामिल हैं और पीटीएम की रैलियों में उन्होंने पाकिस्तानी आर्मी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। "इमरान खान की सरकार और पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल कमर बाजवा ने हमारे कई नेताओं को देशद्रोही करार देकर जेल में डाला हुआ है। हजारों बेकसूर मारे गए हैं। हजारों गायब हैं। बलूचिस्तान की तरह हम पर भी जुल्म हो रहे हैं लेकिन दुनिया चुप है।"

दावर के मुताबिक पश्तून लोग शांति पूर्वक अपनी आवाज उठा रहे हैं। पहले इन्हें तालिबान और अलकायदा का सपोर्टर कहा जाता था। अब पाकिस्तानी फौज तहरीक-ए- तालिबान (टीटीपी) का सपोर्टर कह कर मार रही है। "पाकिस्तान ने पिछले दिनों आतंकवादी चीफ हेकमतयार को रेड कार्पेट वेलकम दिया था और पाकिस्तान से ही उसने अफगनिस्तान को धमकी दी। उसके लोग यहां वजीरिस्तान में रहकर अफगानिस्तान के खिलाफ लड़ाई कर रहे हैं। हमारा संगठन इसका विरोध कर रहा है। बहुत हो गया, हम पश्तून अब उनका चारा (कैनन फॉडर) नहीं बनेंगे।"
<blockquote class="twitter-tweet">
<p dir="ltr" lang="en">Pakistan start sponsored terrorism suffered the trible people very much .They gathered in PTM jalsa and demanded to recover their business and demolished homes<a href="https://twitter.com/hashtag/PashtunLongMarch2MiranShah?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#PashtunLongMarch2MiranShah</a> <a href="https://t.co/KHDIDJ4amN">pic.twitter.com/KHDIDJ4amN</a></p>
— Jessica Kröner (@JessPash2) <a href="https://twitter.com/JessPash2/status/1327932492414935041?ref_src=twsrc%5Etfw">November 15, 2020</a></blockquote>
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लेकिन पश्तूनों के लिए यह इतना आसान नहीं है। पाकिस्तानी आर्मी ने पीटीएम को सख्त चेतावनी दी है कि फौज के खिलाफ नारे बाजी बंद कर दें, वरना अंजाम खतरनाक होगा। इसी साल अप्रैल महीने में लापता लोगों की रिहाई की मांग करते हुए पश्तून तहफ्फुज आंदोलन (पीटीएम) ने पेशावर में एक विशाल रैली निकाली थी। जिसमे पश्तूनों की स्वतंत्रता की माँग उठ कर सामने आई। इस रैली में शरीक नेताओं का दावा है कि पिछले दशक में 32,000 पश्तून फाटा से गायब हो गए हैं।

भारत में दहशत फैलाने के मकसद से आतंकवादियों की परवरिश के लिए पाकिस्तान फाटा के कई इलाकों का इस्तेमाल करता रहा है। पाकिस्तान के पूर्व मंत्री और रिटायर्ड ले जनरल अब्दुल कादिर बलोच ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए लिखा था, "जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की लड़ाई को सपोर्ट करने के लिए अपनी सरजमीं को इस्तेमाल करने के वास्ते ‘दक्षिण वज़ीरिस्तान’ और ‘उत्तर वजीरिस्तान’ को चुना। तो इनको बतौर एक नर्सरी के इस्तेमाल किया गया। दहशतगर्दी की नर्सरी के लिए।".

डॉ. शफी अयूब खान

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