चीन (China) अपनी बहुत तगड़ी प्लानिंग लेकर चला था। लेकिन हमेशा की तरह चीन (China) की साज़िशें नाकाम हो जाती है। उसकी सारी प्लानिंग फ़ैल हो जाती है और हर मास्टर प्लान की पोल खुल जाती है। चीन के राष्ट्रपति आजकल सारे देशो के बीच दोस्ती करवाने की प्लानिंग में लगे हुए हैं। पहले उन्होंने ईरान और सऊदी के बीच शांति समझौता कराया फिर वह रूस यूक्रेन की भी डील करवाने की कोशिशों में लग गए। लेकिन सारी कोशिशें नाकाम होती नज़र आ रही है। मगर प्रधानमंत्री की एक वार ने पूरा नक्शा पलट दिया है।
पिछले दिनों जब पीएम मोदी जापान के शहर हिरोशिमा में थे तो उन्होंने यहां पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से मुलाकात की। इस मुलाकात से चीन इतना भड़क गया कि उसके एक विशेषज्ञ ने पीएम मोदी को ‘मौकापरस्त’ और ‘धोखेबाज’ तक कह डाला। पीएम मोदी ने यूक्रेन को जो भरोसा दिया है, उसके बाद चीन काफी परेशान होगा। इससे पता लगता है कि युद्ध की वजह से जो आर्थिक प्रभाव दुनिया पर पड़ रहे हैं भारत ने उसको दरकिनार करते हुए राष्ट्रीय हितों सबसे ऊपर रखा है। पीएम मोदी ने जब जेलेंस्की से मुलाकात की तो उन्होंने कहा, ‘मैं इसे एक राजनीतिक या आर्थिक मुद्दे के रूप में नहीं देखता। मेरे लिए, यह मानवता का मुद्दा है, मानवीय मूल्यों का मुद्दा है।’ पीएम मोदी का यह बयान दक्षिण एशियाई स्टडीज ग्रुप को नाराज कर गया। उसके विशेषज्ञों ने पीएम मोदी के ‘मानवता’ शब्द के प्रयोग को एक ‘चालाक स्क्रिप्ट’ का प्लान बताया है। चीन की माइक्रोब्लॉगिंग साइट वीबो पर इस ग्रुप के विशेषज्ञों ने अपनी भड़ास निकाली।
इस ग्रुप की तरफ से लिखा गया है, ‘मोदी के शब्दों के पीछे व्यावहारिक अर्थ है। पश्चिमी देशों को समझना चाहिए भारत इसका फायदा उठा सकता है। नहीं तो एक अरब ज्यादा लोग, रूस से तेल और यूक्रेन से गेहूं नहीं खरीद सकते, जो कि सच्ची मानवीय आपदा है।’ वीबो यूजर्स ने पीएम मोदी और जेलेंस्की की मीटिंग को पश्चिम को धोखा देने का एक तरीका बताया है। एक यूजर ने कहा, ‘ ‘भारतीय कुतर्क यूरोपीय और अमेरिकी पाखंड से बेहतर है।’ रेनमिन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ यूरेशियन स्टडीज के रिसर्चर लियू जू ने कहा कि मोदी ‘अपने राष्ट्रीय हित को अधिकतम’ करने की कोशिश कर रहे हैं। लियू ने कहा, ‘मुझे लगता है कि मोदी के लिए अपनी स्थिति बदलना मुश्किल है, लेकिन अपने राष्ट्रीय हितों को अधिकतम करना संभव हो सकता है।’
पीएम मोदी और जेलेंस्की की मुलाकात से चीन की वह रणनीति कमजोर होगी जिसके तहत वह युद्ध का अधिकतम फायदा उठा सकता है। चीन इसी वजह से असहज महसूस कर रहा है। चीन ने हाल ही में एक वरिष्ठ राजनयिक ली हुई को अपने दूत के रूप में यूक्रेन भेजा। उसका मकस यह संकेत देना था कि चीन, रूस को बुलाए बिना भी ‘शांति की मध्यस्थता’ में रुचि रखता है।
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