Chandrayaan-3 की सफलता के लिए जहां देश-दुनिया में सभी दुआ कर रहे हैं,वहीं चन्द्रयान -3 की सॉफ्ट लैंडिंग पर इस समय पूरी दुनिया की नजर टिकी हुई है। चन्द्रयान-3 को सफलता पूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग के लिए ISRO के साथ अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) भी काम कर रही है। इस मिशन की सफलता को लेकर सिर्फ भारत ही नहीं कई देशों की नजर है,क्योंकि इसके सफल होने से न सिर्फ भारत को फायदा होगा,बल्कि इसके कामयाब होने से कई देशों को इसका फायदा मिलेगा।
चंद घंटों की दूरी पर है चन्द्रयान-3
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का मिशन चंद्रयान-3 चंद घंटो में इतिहास रचने वाला है। कुछ ही घंटे बाद ISRO पूरी दुनिया के लिए एक मील का पत्थर साबित होने वाला है। इस बीच इसरो से एक बड़ी ख़बर सामने आ रही है।
ISRO ने जानकारी देते हुए कहा है कि चन्द्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए अब अमेरिका की स्पेस एजेंसी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) ने इस मिशन के लिए भारत का हाथ थाम लिया है। अब विश्व की तीन बड़ी स्पेस एजेंसियां कंधे से कंधा मिलाकर इस मिशन का सफल बनाएगी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस यान के लॉन्च के दौरान से ही दोनों एजेंसियों ने चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) को मॉनिटर किया है।
इसरो को NASA से मिल रही है मदद
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र (ISRO) को नासा की ओर से इस मिशन में काफी बड़ी मदद मिल रही है। जानकारी के मुताबिक, मिशन के लिए सबसे बड़ी मदद नासा के कैलिफोर्निया में डीएसएन कॉम्प्लेक्स से मिल रही है, क्योंकि यह पृथ्वी पर भारत के दूसरी ओर मौजूद है। ऐसे में जब भारत में स्पेस स्टेशन से चांद नहीं दिखेगा, तो यहीं से जानकारी इकट्ठा कर इसरो को मुहैया की जाएगी।
नासा डॉपलर इफेक्ट के लिए यान के रेडियो सिग्नल को भी मॉनिटर कर रहे हैं, जो स्पेसक्राफ्ट को नेविगेट करने में मदद करता है। चांद की सतह पर उतरने के दौरान यह जानकारी काफी अहम होती है, क्योंकि इससे पता चलता है कि रियल टाइम में स्पेसक्राफ्ट कैसे काम कर रहा है।
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ESA बना मैसेंजर
नासा के साथ-साथ यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) भी भारत की मदद कर रही है। स्पेस एजेंसी ESA का कौरौ, फ्रेंच गुयाना में स्थित 15 मीटर लंबा एंटिना और यूके के गोनहिली अर्थ स्टेशन में स्थापित 32 मीटर लंबे एंटिना को तकनीकी क्षमताओं के समर्थन के लिए चुना गया था।
ईएसए, एस्ट्रैक नेटवर्क में दो ग्राउंड स्टेशनों के माध्यम से उपग्रह को उसकी कक्षा में ट्रैक करता है। ये दोनों स्पेस स्टेशन लगातार चंद्रयान-3 मिशन को लेकर बेंगलुरु में मिशन संचालन टीम और चंद्रयान-3 उपग्रह के बीच एक संपूर्ण संचार चैनल उपलब्ध करा रहा है।”
लैंडिंग के दौरान यह चुनौती
ISRO के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान के लैंडर मॉड्यूल को चांद पर लैंड कराने में सबसे बड़ी चुनौती उसे मोड़ना होगा। दरअसल, लैंडिंग से पहले यान को मोड़ना है, उन्होंने बताया कि जब लैंडर चांद की सतह पर लैंड करने के लिए उतरेगा तो, उसे लैंडिंग से पहले 90 डिग्री सेल्सियस पर मोड़कर लंबवत करना होगा। यदि यह सफलतापूर्वक हो जाता है, तो चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की उम्मीद और बढ़ जाएगी।
मिशन के सफल होने से भारत को फायदा
इस मिशन के सफल होने से वैज्ञानिकों को चंद्रमा के वातावरण की जानकारी मिलेगी। चांद पर घर बसा सकते हैं या नहीं, इस सवाल का जवाब मिल जाएगा। इसके साथ ही, दक्षिणी ध्रुव पर मिट्टी का केमिकल विश्लेषण किया जाएगा और चांद पर मौजूद चट्टानों की भी स्टडी करना संभव हो जाएगा।
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